आई डोन्ट लाइक बीजेपी, आई कान्ट गिभ द वोट इन फेवर ऑफ बीजेपी
सन् 1974, सिपाही भगत मिड्ल स्कूल। यह स्कूल पटना जिले के दानापुर अनुमंडल में सुलतानपुर और नयाटोला मुहल्ले के मध्य में स्थित है। इसी स्कूल में, मैं पढ़ा करता था। मेरे बहुत सारे दोस्त थे। सभी मस्ती में रहा करते, एक दूसरे को सुख-दुख में ऐसे डूबे रहते कि क्या कहने। एक दिन मेरे दोस्त सुनील ने कहा, कि स्कूल से छुट्टी मिलते ही, हमलोग लालकोठी स्कूल चलेंगे, शाखा में, जहां बहुत आनन्द आता है। हमने सोचा – यह शाखा क्या होता है? फिर भी मजा आता हैं, ये सुनकर हमने स्कूल से छुटते ही किताब-कॉपी का झोला घर में रखा और चल दिया लाल कोठी स्कूल में।
उस वक्त संध्या के पांच बज रहे थे, गर्मी का दिन था, बड़ी संख्या में, सात साल से लेकर 60 साल तक के लोग जमे थे। मैदान के बीच में भगवा ध्वज लहरा रहा था। मेरे दोस्त ने जैसे ही मुझे देखा, वह तुरंत अपने साथ भगवा ध्वज के पास ले गया और दो बार ध्वज प्रणाम कर अपने साथ, अपने ग्रुप में ले लिया। शारीरिक व्यायाम, दौड़, खेल, बौद्धिक और गीत ने पहले दिन हम पर ऐसा प्रभाव डाला कि हम उसी दिन से सोच लिया कि प्रतिदिन स्कूल से छुटते ही लालकोठी में लगनेवाली शाखा में पहुंच जाना है। देखते ही देखते हमने शाखा में शामिल सभी लोगों के बीच अपना स्थान बना लिया था। लाल कोठी स्कूल में चलनेवाली इस शाखा का नाम था – अरविन्द सायं शाखा, जिसमें प्रतिदिन स्वयंसेवकों की संख्या 50 -60 रहती थी।
इस शाखा में बड़ी संख्या में मुस्लिम भी भाग लेते और सायंकाल का इंतजार भी करते, क्योंकि इसमें होनेवाली कबड्डी सभी का मुख्य आकर्षण होता। हर-हर बम-बम, रुद्र देवता – जय-जय काली का जब घोष होता तो बाल स्वयंसेवको का चेहरा देखते बनता। हम आपको बता दें पूरा सुलतानपुर दलित-पिछड़ा-अल्पसंख्यकों का मुहल्ला है, जबकि नयाटोला पूरी तरह यादव बाहुल्य। शाखा से सभी का लगाव रहता। कार्तिक में होनेवाली शरदपूर्णिमा की खीर, वनभोज में बननेवाली लिट्टी-चोखा के लिए सभी प्रेम और उदारता के साथ पैसे इक्ट्ठे करते और भोग लगाने में भी सबसे आगे रहते, कोई भेद-भाव नहीं, कोई वैमनस्यता नहीं, सभी के साथ समानता, सभी को भाता था।
जैसे ही शाखा समाप्त होती तो प्रार्थना के लिए आगे और संख्या के लिए पीछे रहनेवाले हम बच्चे खुब धूम मचाते। आनन्द ही आनन्द था। ये वह समय था, जब प्रख्यात चिन्तक गोविंदाचार्य यहां कभी-कभार कबड्डी खेलने के लिए भी आ जाया करते।
इसी बीच छात्र आंदोलन पूरे देश में धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा था, संघ और जनसंघ से जुड़े कई नेताओं पर आफत आ रही थी। 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू हो चुका था। स्कूलों में, कॉलेजों में पढ़ाई नियमित होने लगी थी। जिन प्लेटफार्मों पर ट्रेनें देर से आती थी, वह समय पर चलने लगी थी। आफिस में मजा मारनेवाले बाबूओं के दिन लद चुके थे, चारों तरफ काम ही काम, दिखाई पड़ रहा था, पर पुलिस की दबंगई बढ़ती चली गई, उस वक्त के कांग्रेसी नेताओं का चाल-चरित्र बदलता जा रहा था, महंगाई आकाश छू रही थी, लोगों के हाथों से राशन गायब हो रहा था, स्थिति ऐसी थी कि इसी वक्त सुप्रसिद्ध मनोज कुमार की फिल्म रोटी कपड़ा और मकान की गीत – हाय महंगाई, महंगाई, महंगाई, तू कहा से आई तेरी मौत न आई, पूरे देश के हिन्दी इलाकों में धूम मचा रही थी। जिससे आम जनता में इंदिरा जी के प्रति नफरत बढ़ती चली गई। बड़े-बड़े नेता जेल में ठूसे जा रहे थे। उस वक्त हमारी उम्र करीब 8 साल रही होगी। घर में रेडियो हुआ करता, अगल-बगल के लोग साढ़े सात बजे का प्रादेशिक समाचार और पौने नौ बजे का राष्ट्रीय समाचार सुने बिना घर नहीं जाया करते। इंदिरा जी के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, चूंकि हमारे दलान में मुहल्ले के लोगों का जमावड़ा होता और लोग जब बाते करते, तो मैं भी सुना करता और कब कांग्रेस के प्रति हमारी नफरत ने हमारे दिल में जन्म ले लिया, कह नहीं सकता।
इसी बीच 1975 में ही बदरीनाथ के पंडा बाबा हमारे घर में हमेशा की तरह वार्षिक यात्रा पर आये, पटना में छात्रों पर लाठी चार्ज हुआ था, उसी दरम्यान उन्हें भी गंभीर चोट लगी थी, जब वे घर आये तो हमलोगों ने देखा कि बेचारे बूढ़े पंडा बाबा चोट लगने से बहुत परेशान थे, और ये घटना आग में घी का काम कर गया, कांग्रेस हमारे नजर से निकलती चली गई।
1977 आ चुका था, और मैं ग्यारहवें वर्ष में प्रवेश कर रहा था। देश में जनता लहर का दौर था। कांग्रेस गाय-बछड़ा चुनाव चिह्न लेकर मैदान में थी, और सभी विपक्षी दल लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर जनता पार्टी के रुप में एकीकृत हो चुके थे। जनता पार्टी का चुनाव चिह्न चक्र बीच हल लिये किसान था। हम अपने मित्र बाल मंडली के साथ प्रतिदिन पूरे दानापुर का एक चक्कर जनता पार्टी का झंडा लेकर दौड़ लगा आते। इसमें अपने ही मुहल्ले के भिखारी साव और भरत साव (दोनो सहोदर भाई) जो बेहद गरीब थे, उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहती। नारे भी एक से एक जुबान पर थे। उस दिन नारा चलता था –
सन् 77 की ललकार, दिल्ली में जनता सरकार
देखो रे इंदिरा का खेल, खा गई राशन पी गई तेल
देखो रे इंदिरा का खेल, 12 रुपये कड़ुवा तेल
सत्ता कांग्रेस सीपीआई, चोर-चोर मौसेरा भाई
लोकनायक जयप्रकाश जिन्दाबाद, जिन्दाबाद
जनता पार्टी का क्या निशान, चक्र बीच हल लिये किसान
इधर हमारे बाबुजी जब सायं समय घर लौटते तो मां से हमारे बारे में पुछते, कहां गया? और वे मुझे ढूंढने के लिए निकल पड़ते, और जब पकड़ में आते तो मार पड़ती सो अलग। उस वक्त पटना लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से जनता पार्टी के टिकट पर महामाया प्रसाद सिन्हा चुनाव लड़ रहे थे। दानापुर के बस स्टैंड पर दिये गये उनके भाषण के पहले बोल – मेरे जिगर के टूकड़ों, युवाओं पर अपना कमाल दिखा चुका था, जब चुनाव परिणाम आया, तो महामाया प्रसाद सिन्हा रिकार्ड मतों से जीते, जबकि अपना इलाका पूरी तरह भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी का इलाका था। यहां से हमेशा कॉ. रामावतार शास्त्री जीता करते। हमारे मुहल्ले में उनके छोटे – छोटे पोस्टर खुब धमाल मचाते, जिस पर लिखा होता –
चम-चम चमके हसियां प्यारा,
झूमे बाली धान की
जय हो इसी निशान की
जय मजदूर किसान की
1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था, पर दक्षिण भारत में कांग्रेस के जलवे बरककार थे, पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण के मरते ही, जनता पार्टी ऐसी टूटी कि मध्यावधि चुनाव में इंदिरा पुनः सत्ता में आ गई। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद 1985 में हुए लोकसभा के चुनाव ने बता दिया कि भारत की जनता इंदिरा जी को कितना चाहती और कितना प्यार करती थी। इंदिरा जी के बेटे राजीव को यहां की जनता ने 400 से भी ज्यादा सीटे प्रदान कर दी। जनता पार्टी के टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी के रुप में उदय हुई भाजपा, उस दौरान अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही थी, उसे मात्र, उस दौरान दो सीटे मिले। कुछ लोगों ने इस दौरान भाजपा पर फब्तियां भी कसी, कि भाजपा हम दो, हमारे दो पर विश्वास करती है। उस वक्त यह नारा परिवार नियोजन को समर्पित था, फिर भी भाजपा ने कभी भी अपने विरोधियों को उस भाषा में जवाब नहीं दिया, जिस भाषा में उनसे लोग बातें किया करते। ये जमाना था, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का।
इधर समय बहुत तेजी से बदल रहा था, धीरे-धीरे वक्त बीतता गया। रेडियो के जमाने से लोग टीवी के जमाने की ओर बढ़ रहे थे। हमारे मुहल्ले में पहली बार टीवी सीताराम गुप्ता के यहां आया था, मैंने पहली बार टीवी कैसा होता है, उन्हीं के घर में देखा था। उस वक्त हर रविवार को एक फिल्म सायं के समय दिखाया जाता, जितने टीवी स्टेशन, उतने ही टीवी स्टेशनों से अलग-अलग फिल्में पर, आप एक ही टीवी स्टेशन की फिल्म देख सकते थे, जो आपके निकट होता।
जब भी कभी अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण होता, हम उनका भाषण सुनने अवश्य जाते। पटना का गांधी मैदान हो या दानापुर का मार्शल बाजार, जब भी कभी लोकसभा या विधानसभा के चुनाव होते, अटल बिहारी वाजपेयी का दानापुर या पटना आगमन जरुर हो जाता। कई कांग्रेसियों और अन्य वामपंथियों को भी मैने देखा कि उनके भाषण सुनने में रुचि दिखाते। कोई मैल नहीं होता, आज भी वाजपेयी जी की भाषण संबंधी लोकप्रियता के सभी लोग कायल है। भाजपा की शक्ति बढ़े, इसके लिए लालकृष्ण आडवाणी ने रामरथ निकाला, और भाजपा देखते ही देखते 2 से 82 पर पहुंच गई, इसके बाद 100 का आकड़ा पार किया और आज सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच गई, पर सच्चाई यह भी है कि यहीं भाजपा जो पार्टी विद् डिफरेंस थी, आज कांग्रेस के उन सारी बुराइयों को अंगीकृत कर ली, जिसके कारण भाजपा से जुड़े वे लोग, जो दिलोजां से इसे चाहते थे, देखते-देखते अलग होते गये।
हमें याद है कि जिस दिन संघ से जुड़े जगत नारायण लाल कॉलेज खगौल के प्रो. हृदया नन्द पांडेय की हत्या हुई थी, ठीक उसी दिन कई गुंडो का दल अर्द्धरात्रि में मेरी हत्या करने के लिए पहुंच गया था, पर ईश्वरीय कृपा कहे कि मैं बच गया। वो काली रात हमें अच्छी तरह याद है। उस वक्त मैं आर्यावर्त में दानापुर से अनुमंडलीय संवाददाता के रुप में योगदान दे रहा था, और हमे गर्व है कि हमने भी उन गुंडों के आगे घुटने नहीं टेके, और ठीक उसी सुबह अपने मतदान केन्द्र पर जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया और उसके बाद वहीं लिखा जो हमें लिखना चाहिए था। हमने दानापुर विधानसभा चुनाव में हुए गुंडागर्दी तथा बूथकैप्चरिंग की रिपोर्ट लिखी, और दानापुर विधानसभा का चुनाव रद्द हो गया।
इसी बीच मैने महसूस किया कि जो दुर्गुण अन्य पार्टियों में है, वहीं दुर्गुण भाजपा जैसी पार्टियों में आ गई है। फिर मैंने सोचा कि ये पार्टी अभी भी अन्य पार्टियों से अलग हैं, क्योंकि यहां अभी उतनी दुर्गंध नहीं मची हैं, पर रांची में आकर जो, मैं वस्तुस्थिति देख रहा हूं, वह गजब है, कल के जन्मे लोग आज हमें संघ और भाजपा के बारे में लेक्चर दे रहे हैं, जिन्होंने कभी भी देश से प्यार नहीं किया और अपने हिस्से की देश लूट रहे हैं, वे हमें देशभक्ति और धर्म का संदेश दे रहे हैं।
आज भी देख रहा हूं कि कि एक सामान्य सी बात के लिए, एक सामान्य सी काम के लिए लोग चप्पल घिस रहे हैं, लोग भूख से मर रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, लोगों को दवाएं मिल नहीं रही, गरीबों के बच्चे सरकारी स्कूलों में और बड़े-बड़े नेताओं व भाप्रसे के अधिकारियों के बेटे बंगलूरु और दिल्ली में पढ़ रहे हैं, अधिकारी हेलिकॉप्टर नहीं मिलने के कारण जांच नहीं कर रहे, चुनाव आयोग जिन पर कार्रवाई करने के लिए नोटिस भेजता है, उस नोटिस को हवा में उड़ा दिया जाता हैं और जो सच बोलता हैं, उसे जीने नहीं दिया जा रहा, उसे काम करने नहीं दिया जा रहा, उसे नौकरी से निकलवा दिया जा रहा हैं, जहां वह दो पैसों के लिए भी काम कर रहा है, वहां फोन करके उससे काम नहीं कराने को कहा जा रहा हैं, ऐसे में हम भाजपा को वोट कैसे करें? यानी हम अपनी ही हत्या का समान, भाजपा को वोट देकर क्यों तैयार करें?
अब आप पूछेंगे कि आपने ये सब क्यों लिखा? तो भाई हम आपको बता दें कि एक वरिष्ठ पत्रकार विनय चतुर्वेदी जी ने हमसे पूछा कि आपने ऐसा संकल्प क्यों लिया, कि आप भाजपा को वोट नहीं देंगे, हम जानना चाहेंगे तो लीजिये विनय चतुर्वेदी जी, आपको आपका उत्तर तैयार है।
और अब बात उनके लिए, एक अगर संकल्प ले लिया, कि वह भाजपा को वोट नहीं करेगा तो भाजपा क्या समाप्त हो जायेगी? तो भाई जान लो, एक ही सूरज, पूरी दुनिया को आलोकित करता है, एक ही चांद पूरी दुनिया को चांदनी देता हैं, एक ही पृथ्वी पूरी दुनिया को आश्रय देती है, एक ही चाणक्य घननन्द को नाश करता है, एक ही माचिस की तिल्ली प्रकाश भी फैलाती है और बड़ी-बड़ी इमारत को आग लगाकर धराशायी करने की ताकत रखती है, इसलिए बेकार की, बकवास करने की बजाय, अहं मत पालो, सत्य को स्वीकार करो, नहीं तो अहं क्या करता हैं, पता ही होगा, अगर नहीं पता तो मैं बता देता हूं, नाश के बीज को जागृत करता हैं, पोषित करता हैं, समझ गये न…
विनय भैया का बेमिशाल सवाल..
का विवेक पूर्ण उत्तर..वाह ।।
मुझे लगता है यह आम जन की ह्रदय ब्यथा है,जिसे सरस्वती ने आपकी कलम से उतार है।
और उनके लिए अंतिम विनय पत्र की अहंकार त्याग करें।
।।सत्यम शिवम् सुंदरम।।