रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारी व मार्गदर्शक मंडल में शामिल महान आत्माएं अपने हृदय पर हाथ धर कर बताएं कि क्या रांची या प्रदेश के पत्रकार इतने भूखे-नंगे हो गये कि …
रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारी व मार्गदर्शक मंडल में शामिल महान आत्माएं अपने हृदय पर हाथ धर कर बताएं कि क्या रांची या प्रदेश के पत्रकार इतने भूखे-नंगे हो गये कि वे अपने से एक घर नहीं बना सकते या भूमिहीन हैं या बिना आवास के वे तथा उनके परिवार के लोग जी रहे हैं या सड़क पर भटक रहे हैं, झूग्गी-झोपड़ी में रह रहे हैं या इनकी जिंदगी बीपीएल परिवारों से भी दयनीय हैं। इसलिए उन्हें राज्य सरकार की ओर से बना-बनाया मुफ्त का आवासीय कॉलोनी चाहिए।
दूसरी बात आप काम करेंगे बड़े-बड़े अखबारों-चैनलों व पोर्टलों में, यानी सेवा देंगे अरबों-खरबों के संस्थानों को और जब वहां से हटेंगे तो पेंशन चाहिए राज्य सरकार से। क्यों भाई, क्या आपने राज्य सरकार को सेवा दी थी कि आप राज्य सरकार से पेंशन मांग रहे हैं और अगर पेंशन की इतनी ही भूख हैं तो आप सरकार से ये क्यों नहीं कहते कि आपको भी राज्य के अन्य नागरिकों की तरह आपको भी सर्वजन पेंशन योजना में शामिल कर लिया जाये।
ये स्वयं को स्पेशल बनाने की सोच कहां से आ गई? आप ही को अलग से पत्रकार पेंशन योजना का लाभ क्यों मिले? यहां के अधिवक्ताओं, किसानों-मजदूरों या अन्य पेशा में कार्यरत लोगों ने कौन सा पाप किया है कि उन्हें आपकी तरह इसका लाभ नहीं मिले और अगर राज्य सरकार इस प्रकार की पत्रकार पेंशन योजना लागू करती हैं तो अन्य पेशा में शामिल लोगों को चाहिए कि वे भी अपने लिए इसी प्रकार से पेंशन योजना की मांग करें।
आपको तो राज्य सरकार ने स्वास्थ्य बीमा का लाभ देने की कोशिश की थी। कहा था कि आप 20 प्रतिशत दो, हम अपनी ओर से आपके इंश्योरेंस का 80 प्रतिशत भरेंगे, उसमें भी आप नाकाबिल रहे। मतलब आप क्या चाहते है कि शत प्रतिशत आपका जिम्मा राज्य सरकार उठाएं। अगर आपकी हालत इतनी ही खराब है तो आप आम गरीबों की तरह मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना का क्यों नहीं लाभ लेने की बात कर रहे हैं।
अभी हाल ही में झारखण्ड विधानसभा ने शून्यकाल में आपकी समस्याओं को लेकर कांग्रेस के एक विधायक ने सवाल उठाया। उक्त विधायक ने आपके लिए पत्रकार आयोग बनाने की बात कह दी तो भाई पत्रकार आयोग ही क्यों, अधिवक्ता आयोग, न्यायाधीश आयोग, किसान आयोग, मजदूर आयोग, विधायक आयोग, सांसद आयोग भी पीछे क्यों रहे, सभी आजादी का फायदा उठाएं। उसी विधायक ने प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ पत्रकार को देने की बात कही थी। तो भाई प्रधानमंत्री आवास योजना तो उनके लिए हैं, जिनकी स्थिति ऐसी है कि वे अपने पैसे से मकान नहीं बना सकते तो उन्हें थोड़ी मदद कर दी जाये, इस भावना से इसकी शुरुआत कर दी गई है। लेकिन आप उसमें भी शामिल होने की सुंदर सोच रख रहे हैं तो ये तो गलत है।
ऐसे भी आपकी इस हरकत को देख किसी ने ठीक ही कहा है कि जब राज्य के पत्रकारों की इतनी स्थिति खराब है तो इनके लिए सबसे पहले सरकार को चाहिए कि जैसे पूर्व में राज्य सरकार ने पांच रुपये में शहर को आनेवाले गरीब मजदूरों, रिक्शाचालकों आदि के लिए पांच रुपये में दाल-भात खिलाने की योजना शुरु की थी। ठीक इसी प्रकार पत्रकारों के लिए पांच रुपये में जगह-जगह पर दाल-भात केन्द्र खोल दें, ताकि रांची व रांची आनेवाले विभिन्न जगहों के पत्रकार इसका लाभ उठा सकें। पांच रुपये में दाल-भात खाकर अपना पेट भर सकें। साथ ही सरकार इनके परिवारों के लिए भी पांच रुपये में दाल-भात दिलाने का केन्द्र खोल दें, ताकि ये पत्रकार भूखे न रह सकें।
हम तो कहेंगे कि पत्रकारों के लिए राज्य सरकार को एक कैबिनेट में प्रस्ताव भी पास करना चाहिए कि अब राज्य में कोई भी संवाददाता सम्मेलन करेगा तो वह किसी शानदार होटल से भोजन मंगवाकर इन्हें खिलायेगा और जो नहीं खिलायेगा। उसे पांच साल की सजा भी सुनाई जायेगी। साथ ही पत्रकार सम्मेलन में शामिल होनेवाले पत्रकारों के लिए एक गिफ्ट का भी प्रावधान हो, जो गिफ्ट नहीं देंगे, उन्हें दो साल की सजा सुनाई जायेगी। इससे पत्रकारों का पोषण और गरीबी भी दूर हो जायेगा। वे स्वस्थ भी होंगे।
हद हो गई। बेसिर-पैर की बातें। आप रांची प्रेस क्लब के सदस्य हैं। अधिकारी हैं। आप का काम रांची प्रेस क्लब चलाना है और आप इन सारे कामों को छोड़कर, सारे पत्रकारों के शंकराचार्य बनने की कोशिश करेंगे तो ये तो बात ही अलग हो गई। किसने कहा था आपको राजभवन जाकर पत्रकारों की बेसिर-पैर की समस्याओं को उठाने की। पता नहीं राजभवन भी ऐसे लोगों की बेसिर-पैर की बातों को इतना धैर्य से सुन कैसे लेता है?