धर्म

सांसारिक चेतना में रहना नर्क और ईश्वरीय चेतना में रहना ही स्वर्ग है, स्वर्ग या नर्क अन्यत्र नहींः स्वामी शुद्धानन्द

रांची स्थित विश्वस्तरीय आध्यात्मिक केन्द्र योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए वरीय संन्यासी स्वामी शुद्धानन्द ने कहा कि सांसारिक चेतना में रहना ही नर्क और ईश्वरीय चेतना में रहना ही स्वर्ग है। स्वर्ग-नर्क कोई दूसरी स्थान या इस लोक से परे कोई अलग लोक में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि माया के कोलाहल से बचने के लिए हमारे जीवन का एक उद्देश्य होना चाहिए।

उस उद्देश्य अथवा लक्ष्य को हमेशा सामने में रख, उसके लिए निरन्तर प्रयास भी करना चाहिए और वो लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ ईश्वर की प्राप्ति ही होनी चाहिए, दूसरा कोई नहीं। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय के तीसरे श्लोक को उद्धृत करते हुए कहा कि

मनुष्यानां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।

यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः।।

भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि हजारों मनुष्यों में से कोई एक ही उनकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता है और उन प्रयत्न करनेवालों में से कोई एक ही व्यक्ति परायण होकर मुझे तत्त्व से यानी यथार्थ रूप से जानता है।

उन्होंने कहा कि हमें ईश्वर को पाने का प्रयत्न कभी नहीं छोड़ना चाहिए। ईश्वर को प्राप्त करने में जब आप लगेंगे तो माया कई समस्याओं को सामने रख देती है। ईश्वर भी कभी-कभी कई लीलाएं रच देते हैं। लेकिन हमें न तो माया के प्रभाव में आना चाहिए और न ही उन लीलाओं में डूब जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ईश्वर के द्वारा रची गई लीलाओं में सकारात्मक व नकारात्मक दोनों चीजें होती हैं। लेकिन हमें इन लीलाओं में या नाटकों में नाटक तो करना है, लीलाएं भी करनी हैं, लेकिन इसे महत्व नहीं देना है। महत्व हमें सिर्फ ईश्वर को पाने को देना है।

उन्होंने कहा कि जीवन में कभी भी समस्याएं आये। उससे घबराये नहीं। उससे संघर्ष करिये। इस संघर्ष की अवस्था में भी ईश्वर को मत भूलिये। याद रखिये आपके द्वारा दिनचर्या में शामिल किये गये ध्यान, गुरुजी के पाठों का नियमित अध्ययन, अंतः निरीक्षण और आध्यात्मिक जीवन ही आपको संघर्ष से बाहर निकालेंगे।

उन्होंने शंकराचार्य द्वारा जगतजननी से मांगे गये वरदान जिसमें सिर्फ ज्ञान और वैराग्य की बातों को बड़े ही सुंदर ढंग से समझाया। उन्होंने बताया कि जो हमारे लिए अच्छा नहीं हैं, उसे त्यागने की क्षमता को रखना ही वैराग्य है। उन्होंने कहा कि ईश्वर ने प्रत्येक को उनकी समस्याओं को हल करने की ताकत दी है। इसलिए उस क्षमता का उपयोग करिये। कभी शार्ट कट मत अपनाइये। उन्होंने यह भी कहा कि बिना अनुशासन के आध्यात्मिक जीवन भी बेकार है।

स्वामी शुद्धानन्द ने कहा कि हमेशा याद रखे कि जब तक बहिर्मुखी रहेंगे। ईश्वर नहीं मिलेंगे। जैसे ही अंतर्मुखी होंगे। ईश्वर आपके समक्ष उपस्थित होंगे। ईश्वर को बाहर खोजने की जरुरत ही नहीं। वो अंदर में मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि आप सभी अपनी दिनचर्या का बेहतर प्रबंधन करना सीखिये। दिनचर्या का बेहतर प्रबंधन यानी आपका संतुलित जीवन, यह केवल आपको बेहतर स्थिति में ही नहीं रखता, बल्कि ईश्वर के निकट भी लाता है। उन्होंने कहा कि हमेशा ध्यान करें। हमेशा गुरुजी के पाठ का अध्ययन करते रहे। यह कार्य जो ईश्वर के निकट जा चुके हैं या जाने का प्रयत्न कर रहे हैं या शुरुआत की है। सभी के लिए आवश्यक है।

उन्होंने यह भी कहा कि क्या आपने कभी सोचा कि अवतारी पुरुष बार-बार इस धरती पर जन्म क्यों लेते हैं? क्या आवश्यकता हैं उन्हें, जबकि वे ईश्वर को प्राप्त कर चुके होते हैं। स्वामी शुद्धानन्द ने कहा कि अवतारी पुरुषों का बार-बार जन्म लेना सिर्फ भगवान की आज्ञा को पूर्ण करने के लिए हैं। इसलिए जब कोई अवतारी पुरुष आपको बता रहा है। तो उस ओर ध्यान देने की जरुरत है। उनकी बातों को अवहेलना करना स्वयं को नष्ट करने के बराबर है।