भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं, अब भी समय है, प्रदीप वर्मा के तिकड़म को अपनाओ और तुम भी कर्मवीर तथा गोपाल शर्मा जैसे लोगों को अपने ग्रिप में लेकर राज्यसभा पहुंच जाओ
यह आलेख गरीब-निर्धन-बीपीएल परिवार से संबंधित भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए नहीं हैं, ये लोग तो कुछ भी कर लें, अब किसी जिंदगी में शीर्ष पर नहीं जा सकते, क्योंकि जमाना बदल चुका है, भाजपा बहुत बदल चुकी है, यहां तक की जिसके बीज से भाजपा का जन्म हुआ, वो संघ और उसके प्रचारक यहां तक की नागपुर भी बदल चुका है।
यह आलेख उन अमीर भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए हैं, जो अमीर तो हैं, पर ईमानदारी और देश के प्रति समर्पण के कीड़े ने उन्हें ऐसा काटा कि वे आज कही के नहीं हैं और उनके हिस्से को वे खा जा रहे हैं, जिन्हें पार्टी में आये हुए कुछ साल ही हुए और जिन्होंने बड़ी चालाकी से संघ और संघ के लोग, भाजपा और भाजपा के लोग कैसे खुश हो सकते हैं, इसकी तकनीक को पकड़ा और उस तकनीक पर अमल कर शीर्ष पर पहुंच गये।
इसलिए विद्रोही24 का कहना है कि भाजपा के समर्पित धनाढ्य परिवार से आनेवाले कार्यकर्ताओं थोड़ा होशियार भी बनो, थोड़ा धूर्त भी बनो, जहां जिस पार्टी में रहते हो, वहां रहनेवालों मठाधीशों को क्या-क्या पसन्द हैं, वे कैसे रीझ जाते हैं, उनके पसन्द और नापसन्द पर ध्यान दो, देखते ही देखते तुम भी प्रदीप वर्मा की तरह राज्यसभा में पहुंच सकते हो। अरे यही मठाधीश तुम्हें भी स्वयं को कहार बनाकर विधानसभा तक पहुंचायेंगे, फार्म भरवायेंगे, तुम्हारी जी-हुजूरी करेंगे।
विद्रोही 24 ने प्रदीप वर्मा पर शोध किया तो पता चला कि इस व्यक्ति ने बड़ी ही चालाकी से स्वयं को इस प्रकार से भाजपा के मठाधीशों तक प्रस्तुत किया कि देखते ही देखते रांची से लेकर दिल्ली ही नहीं, बल्कि नागपुर तक के लोग लट्टू हो गये। लट्टू ऐसे कि सरसंघ चालक मोहनभागवत तक ने इसका आतिथ्य स्वीकार कर लिया। अब जहां सरसंघ चालक जिसके आतिथ्य स्वीकार कर लिये हो, भला वो व्यक्ति राज्यसभा में न दाखिल हो, यह कैसे हो सकता है? बात यही है।
संघ के कई पुराने स्वयंसेवक, जिन्होंने संघ के तृतीय वर्ष तक को पूरा कर लिया। जो हर साल लगनेवाले संघ के शीत शिविर तक को अटेंड किया है। वे बताते हैं कि 2017 तक इस प्रदीप वर्मा को उन्होंने संघ के किसी शिविर में कभी देखा ही नहीं। विनय कुमार राय जो धनबाद में रहे हैं। वे कहते हैं कि चाहे सुदर्शन जी हो या रज्जू भैया या मोहन भागवत जी, जब भी वे झारखण्ड आये, तो वे उनके कार्यक्रमों में भाग लिये हैं, लेकिन उन्होंने इस व्यक्ति प्रदीप वर्मा को कभी नहीं देखा।
अगर 2017 के बाद का ये सब कमाल है तो बात कुछ और है। फिर भी इतनी तेजी तो सचमुच कमाल है। विनय कुमार राय फिलहाल लखनऊ में रहते हैं। वे कहते है कि जब से भाजपा केन्द्र और राज्यों में सत्ता में आई हैं। हर जगह परिवर्तन दिखा है। समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों को साइड धराकर अब उनके जगहों पर दूसरे दलों के लोगों व चालाक लोगों ने अपना कब्जा जमा लिया है, तथा अपना हित साध रहे हैं और उसमें सहयोग संघ के लोग भी कर रहे हैं।
विनय कुमार राय कहते है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माधव गोंविद वैद्य जी कहा करते थे कि संघ का स्वयंसेवक नींव बनता है, गुम्बज नहीं। पर आज देखिये, आज का तथाकथित स्वयंसेवक अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए प्रथम ओटीसी, द्वितीय ओटीसी, तृतीय ओटीसी कर उसे अपने रिज्यूम में शामिल करता है, जैसे कि आरएसएस कोई विश्वविद्यालय हो और वो प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष का डिग्री लिखित में थमाता हो। मतलब आश्चर्य तो है ही, शायद इसे ही गिरावट कहते हैं।
सच्चाई यह है कि संघ मौन होकर काम करता है, दिखावा नहीं करता और जिसने अपने रिज्यूम में इसे डाला, इसका मतलब है कि उसने प्रथम वर्ष या द्वितीय वर्ष सिर्फ इसलिये की थी कि वो आनेवाले समय में इसका निश्चय ही लाभ उठाएगा, यानी तीन-पांच करके भाजपा के लालची लोगों, जिसमें संगठन मंत्री तक शामिल होते हैं, उसे लालच देकर स्वहित में फायदा उठायेगा और स्वयं के द्वारा किये गये तथाकथित सेवा कार्य को सूद समेत संगठन से वसूलेगा। विनय कुमार राय ने पहली बार प्रथम वर्ष 1993 में, द्वितीय वर्ष 1997 में और तृतीय वर्ष 2003 में किया था।
इसी बीच विद्रोही24 ने खिजरी इलाके में रहनेवालों से लेकर वहां भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़नेवालों तथा भाजपा के कई दिग्गजों से बात की और पूछा कि आपने प्रदीप वर्मा को सबसे पहले किस साल देखा तो सभी ने 2009-10 की ही बात की। राजनीतिक पंडितों की मानें तो झारखंड में किसी ने सन 2010 से पहले इसका नाम तक नहीं सुना और इसने अपना जो रिज्यूम बनाया है, जिसे वो समय-समय पर भाजपा के केन्द्रीय कार्यालय को भेजा हैं, उसमें यह स्वयं को ‘सन् 1992’ से भाजपा सदस्य बता रहा है।
राजनीतिक पंडित कहते है कि अगर यह पुरानी सदस्यता-रसीद से स्वयं को उक्त वर्ष से भाजपा से संबद्ध बता रहा है तो यह फ्रॉडगिरी के सिवा दूसरा कुछ हो ही नहीं सकता। यह पूछने पर कि वो कैसे? तो राजनीतिक पंडित बताते है कि वो ऐसे कि पार्टी के अभिलेखागार में हर सदस्यता-वर्ष की पुरानी रसीदें पड़ी रहती हैं जिसे जालसाज लोग स्वयं को ‘पुराना भाजपाई’ सिद्ध करने के लिए, लोगों को गुमराह करने और कार्यकर्ताओं पर ‘रौब गांठने’ के लिए दुरुपयोग करते हैं।
राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि ये जो ‘सेवा भारती’ आदि संस्थाओं से इसकी संबद्धता बताई गई है, वह सेवा की झोली में कुछ ‘चढ़ावे’ डालकर अपने लिए ‘राजनीतिक मेवा’ जुगाड़ करने का सिद्ध उपक्रम है, जिसका उपयोग शातिर लोग अच्छी तरह करते हैं। रही बात संघ से संबद्धता की, तो यह धूर्त्तों द्वारा आजकल खूब आजमाया जाता है।
ये धूर्त्त संघ के प्रचारकों-अधिकारियों, संघ परिवार के विविध संगठनों जैसे – वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, एबीवीपी, विश्व हिंदू परिषद् और भाजपा के संगठन मंत्रियों को प्रलोभन देकर भाजपा में खुद के लिए ‘सीढ़ी’ बनाने में सफल हो जाते हैं। अगर चालाकीपूर्वक ‘संघ शिक्षा वर्गों’ (OTC) प्रथम/द्वितीय/तृतीय वर्ष की डिग्री ले ली तो भाजपा में इनका स्थान पक्का हो जाता है, भले ये एक रोज भी संघ-शाखा न जाते हों, इन्हें संघ की ‘प्रार्थना’/ ‘सुभाषित’/ ‘एकात्मता स्त्रोत्र’ आदि की एक पंक्ति भी याद न हो!
राजनीतिक पंडित बताते है कि जिस तरह महाभारत में दुर्योधन ने दुर्वासा ऋषि की छद्म-सेवा कर उनका उपयोग पांडवों के खिलाफ अपनी ‘कुत्सित अभीप्सा’ की पूर्त्ति हेतु किया था, वैसे ही ये शातिराना तरीके से संघ के अधिकारियों और भाजपा के संगठन मंत्रियों का उपयोग भाजपा के लिए स्वयं को खपा देनेवाले लोगों के खिलाफ कर अपनी स्थिति मजबूत कर लेते हैं।
भले सरसंघचालक मोहन भागवत जी कहते रहें -“संघ राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्त्ति का साधन नहीं है”, लेकिन व्यवहारतः ऐसा होता नहीं। प्रदीप वर्मा जैसे ‘छद्म स्वयंसेवक’ लोग भ्रष्ट प्रचारकों और कर्मवीर जैसे संगठन मंत्रियों के सहारे स्वयं को भाजपा में स्थापित कर राजनीतिक महत्वाकांक्षा को तुष्ट करने में बाजी मार लेते हैं और तो और, स्वयं सरसंघचालक मोहन भागवत भी इस लोगों के सरला बिरला आवास में विश्राम कर इसकी छद्म सेवा के बदले राजनीतिक मेवा उपलब्ध करा चुके हैं।
आकंठ भ्रष्ट में लिप्त पूर्व भाजपा अध्यक्षों और राजेंद्र सिंह, धर्मपाल सिंह व कर्मवीर सिंह जैसे संगठन मंत्रियों व मिथिलेश नारायण, अनिल मिश्रा और रविशंकर सिंह जैसे संघ के पूर्व प्रांत प्रचारकों तथा गोपाल शर्मा जैसे वर्तमान प्रांत प्रचारकों ने प्रदीप वर्मा जैसे राजनीतिक मुफ्तखोरों की महत्त्वाकांक्षाओं को खूब परवान चढ़ाया! परिणाम सामने हैं। इसलिए भाजपा के अमीर समर्पित व ईमानदार स्वयंसेवकों प्रदीप वर्मा के इस कलाकारी से सीखों और कर्मवीर तथा गोपाल शर्मा जैसे लोगों के अंदर छुपी प्रतिभा को समझने की कोशिश करों। तुम्हारा निश्चय ही मंगल होगा।