अपनी बात

मोदी-शाह को मुगालता है कि वे झारखण्ड में जहां से भी किसी को कमल थमा देंगे तो वे जीत जायेंगे, इस बार भाजपा कार्यकर्ता और जनता राज्य व केन्द्रीय नेतृत्व को सबक सिखाने को तैयार

भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व जो यह सोच रहा है कि झारखण्ड की लोकसभा की 14 सीटों में से 14 सीटों पर विजय हासिल कर लेंगे। उस सोच को झारखण्ड की जनता के पहले भाजपा कार्यकर्ता ही मिट्टी में मिलाने पर तूले हैं। कई सीटों पर भाजपा के कार्यकर्ताओं ने विद्रोह के स्वर बुलंद कर दिये हैं और झारखण्ड प्रदेश के संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह तथा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की लंका में आग लगाने के लिए संकल्प कर लिया है। पलामू और जमशेदपुर में तो यह साफ दिख रहा है। लेकिन यहां का भाजपा का प्रदेश नेतृत्व व केन्द्र में बैठा केन्द्रीय नेतृत्व आंखों पर विशेष चश्मा लगाकर अपनी बर्बादी का इन्तजार कर रहा है। जिसको देखकर राज्य के बुद्धिजीवी भी आश्चर्य कर रहे हैं।

पलामू के जमीनी व वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सहाय अपने फेसबुक पर लिखते हैं कि ‘मोदी, शाह को मुगालता है कि वे जिसको भाजपा का चुनाव चिन्ह “कमल” थमा देंगे, वे सभी आसन्न लोकसभा के चुनाव 2024 जीत जाएंगे, लेकिन झारखण्ड के पलामू संसदीय क्षेत्र में स्थिति दूसरी नजर आ रही है। गढ़वा जिले के भारतीय जनता पार्टी के बाइस प्रखण्डों में से सत्तरह इकाई प्रमुखों ने घोषित प्रत्याशी विष्णु दयाल राम का पोस्टरबाजी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा समेत अन्य नेताओं को पत्र लिख कर मांग किया है कि “इस सीट से स्थानीय उम्मीदवार दिया जाए, अन्यथा वह पार्टी से इस्तीफा दे देंगे, बी डी राम बाहरी हैं, इन्हें कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा।” इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से प्रदेश भाजपा से लेकर पार्टी के जिम्मेदार नेताओं के हाथ-पांव फुल गये हैं, अर्थात भाजपा में अंदरूनी कलह पसर गयी है।’

पलामू से ही खबर है कि रांची से प्रकाशित अखबार हिन्दुस्तान ने आज ही अपने पलामू संस्करण में मेराल डेडलाइन से वीडी राम को प्रत्याशी बनाने पर 19 मंडल अध्यक्षों ने जताया विरोध नामक शीर्षक से एक समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया है जिसमें उसने इस बात की जानकारी दी है कि कल ही यानी गुरुवार को भाजपा के विभिन्न प्रखंडों के 19 मंडल अध्यक्षों ने कल मीटिंग कर पलामू से भाजपा के घोषित उम्मीदवार बीडी राम का विरोध कर दिया। इन मंडल अध्यक्षों का कहना है कि दस सालों तक सांसद रहने के बावजूद इस व्यक्ति का व्यवहार एक जनप्रतिनिधि का न होकर पुलिस महानिदेशक जैसा रहा हैं। इसलिए इस व्यक्ति के लिए काम करना असंभव है। अगर पार्टी ने उम्मीदवार नहीं बदला तो यह सीट गंवाने के लिए तैयार रहे।

यही हाल जमशेदपुर का है। जमशेदपुर में भी वहां की जनता विद्युत वरण महतो को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कई जगहों पर विद्युत वरण महतो के खिलाफ पोस्टरबाजी चल रही है। लेकिन प्रदेश नेतृत्व इस विरोध को झूठलाने में लगा है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि स्थिति ऐसी है कि जमशेदपुर में स्वयं महतो समाज विद्युत वरण महतो के खिलाफ हो गया है। कल ही गुरुवार को मैथिल समाज ने विष्टुपुर के चेंबर भवन में एक बैठक की और बैठक में कह डाला कि वे इस बार सांसद विदुयत वरण महतो को वोट नहीं करेंगे, क्योंकि उन्होंने टाटा-जयनगर भाया दरभंगा ट्रेन की परिचालन की जो घोषणा की थी। उस ट्रेन को चलवाने में रुचि ही नहीं ली। कल के बैठक की अध्यक्षता वेदानन्द झा और संचालन आकाश चंद्र मिश्रा ने किया था।

इधर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जब प्रदेश अध्यक्ष से दीपक प्रकाश को हटाकर बाबूलाल मरांडी को रखा गया था, तो लगा था कि सशक्त नेतृत्व के हाथों में भाजपा की बागडोर आई है। लेकिन यहां तो लग रहा है कि बाबूलाल मरांडी के शरीर में दीपक प्रकाश की आत्मा घुस गई है और रही बात कर्मवीर की तो उसकी तो बात ही निराली है। राज्य सभा में सरला बिरला यूनिवर्सिटी के केयर-टेकर प्रदीप वर्मा जैसे लोगों को भेज कर तो उसने भाजपा के कार्यकर्ताओं के बदन में ही आग लगा दी है। देश के अन्य हिस्सों में भाजपा भले ही कमाल दिखा दें। लेकिन झारखण्ड में लगता है कि भाजपा के कार्यकर्ता और जनता ने संकल्प कर लिया है कि इन्हें जोर का झटका, धीरे से जरुर लगायेंगे। मतलब साफ है कि धीरे-धीरे सारे सीटों पर भाजपा के कार्यकर्ता गुस्से में हैं।