अपनी बात

अगर सरयू सही में चाहते हैं कि धनबाद से अपराधिक पृष्ठभूमि का भाजपा प्रत्याशी ढुलू महतो चुनाव हारे, तो उन्हें चुनाव लड़ना नहीं, लड़वाना होगा, उन्हें चाणक्य की भूमिका निभानी होगी

अगर सरयू राय सही में चाहते हैं कि धनबाद से अपराधिक पृष्ठभूमि का भाजपा का प्रत्याशी ढुलू महतो चुनाव हारे, तो उन्हें चुनाव लड़ना नहीं, चुनाव लड़वाना होगा। उन्हें चाणक्य की भूमिका में आना होगा और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो इसका मतलब है कि वे ढुलू को हराना नहीं, बल्कि ससम्मान उसे लोकसभा तक पहुंचाना चाहते हैं, क्योंकि ऐसे में वे चुनाव तो नहीं जीत पायेंगे, लेकिन ढुलू को चुनाव जीतवा जरुर देंगे। हां अगर, कांग्रेस उन्हें अपना उम्मीदवार बना देती है और सारा विपक्ष उन्हें समर्थन दे देता है। तो बात कुछ और हो सकती है।

लेकिन वर्तमान में ऐसा दीख नहीं रहा। इसलिए उन्हें फिलहाल हमारा सलाह होगा कि वे अपना सारा ध्यान जमशेदपुर पूर्व की तरफ केन्द्रित करें, क्योंकि कही वो लोकोक्ति न उनके मत्थे चढ़ जाये कि चौबे गये छब्बे बनने, दूबे बनकर आये। अगर वे लोकसभा का चुनाव धनबाद से लड़ते हैं, तो यह शत प्रतिशत सही है कि वे किसी भी हालत में नहीं जीतेंगे।

सरयू राय की झारखण्ड व बिहार की राजनीति में अलग पहचान है। वे इसी पहचान के लिए जाने जाते हैं। निरन्तर आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा अच्छी बात है। लेकिन खुद के द्वारा लिये गये दृढ़ संकल्पों को तिलांजलि देना जनता के साथ विश्वासघात भी है। हाल ही में उन्होंने जमशेदपुर में भरी सभा में कहा था कि वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। हमेशा की तरह जमशेदपुर पूर्व की जनता की सेवा में खुद को लगायेंगे। लेकिन इधर फिर उनका मन चंचलता का शिकार होकर लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड में हैं। ऐसे में धनबाद की जनता का नाम लेकर, खुद की महत्वाकांक्षा को परवान चढ़ाना एक तरह से गलत ही माना जायेगा।

बात यहां बिल्ली के गले में घंटी बांधने की नहीं, बात यहां बिल्ली को सबक सिखाने की है और यह सबक अगर कोई सीखा सकता है तो सिर्फ और सिर्फ यह क्षमता चंद्रशेखर दूबे अथवा रवीन्द्र पांडेय में हैं, इसकी सिवा दूसरा किसी में नहीं। चंद्रशेखर दूबे कट्टर कांग्रेसी है, पहला हक तो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने का उनका ही बनता है, अगर वे नहीं लड़ना चाहते हैं तो बात कुछ और है। दूसरी ओर रवीन्द्र पांडेय का मन भाजपा में रहकर भी भाजपा में नहीं रह रहा है। लेकिन वे लोकसभा का चूनाव लड़ना चाहते हैं।

हाल ही में दिल्ली जाकर कांग्रेस के दिगग्ज नेताओं से मिलने की कोशिश भी की। लेकिन लगता है कि कांग्रेस उन्हें भाव नहीं दे रही। अगर चंद्रशेखर दूबे चुनाव नहीं लड़ते तो कांग्रेस को चाहिए कि वो ऐसे हालत में भाजपा के रवीन्द्र पांडेय को अपनी पार्टी में शामिल कराकर भाजपा का घमंड चकनाचूर करें। रही बात पूर्णिमा सिंह की तो उनमें भी यह क्षमता नहीं कि वो लोकसभा चुनाव जीत सकें। कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर अगर स्वयं चुनाव लड़ना चाहते हैं तो वे चुनाव तो लड़ जायेंगे, लेकिन सफलता संदिग्ध है।

चूंकि विद्रोही24 धनबाद के मतदाताओं का नब्ज खूब अच्छी तरह से पकड़कर टटोल चुका है। सभी ढुलू को सबक सिखाना चाहते हैं। खासकर भाजपा कार्यकर्ता तो कर्मवीर की कर्मकूट नीति और बाबूलाल मरांडी तथा रघुवर दास के अंदर चल रही स्वार्थपरक नीतियों को भी नुकसान पहुंचाने के लिए कमर कस चुका है। लेकिन अभी तक उसके पास कोई विकल्प बढ़िया नहीं मिला है। एक भाजपा के बड़े नेता ने विद्रोही24 को बताया कि अगर ढुलू को कोई हरा सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे हैं, अगर वे नहीं लड़ना चाहते तो बात कुछ और है।

ऐसे में फिर सभी का ध्यान रवीन्द्र पांडेय पर जाता है। हाल ही में वे धनबाद के कई बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं व कार्यकर्ताओं से मिले और लोग उन्हें बेहद चाहते भी है। निर्णय तो कांग्रेस को लेना है कि वो टिकट का बंटाधार करना चाहती है कि टिकट को सही में लाभ में परिवर्तित करना चाहती है। अगर वो सही में धनबाद की जनता का नब्ज टटोलकर काम कर दिया तो फिर ढुलू की बत्ती गुल होना तय है।

साथ ही पीएम मोदी को जोर का झटका धीरे से लगना तय है, क्योंकि भाजपा कार्यकर्ता वर्तमान प्रत्याशी के नाम से ही बिदकता है। अंदर ही अंदर गुस्से में हैं। बस उसे गुस्से का प्रकटीकरण करने की तलाश है और सभी की नजर कांग्रेस के उपर है कि वो टिकट किसे देती है। अगर चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे को टिकट दिया तो सफलता की शत प्रतिशत गारंटी, रवीन्द्र पांडेय को अपनी पार्टी में मिलाकर धनबाद से खड़ा कर दिया तो 80 से 90 प्रतिशत की गारंटी और किसी अन्य को दिया तो शत प्रतिशत धनबाद सीट गंवाने की गारंटी। अब निर्णय कांग्रेस को लेना है।

इसी बीच सरयू राय को विद्रोही24 की सलाह है कि जैसे उन्होंने रघुवर दास की हालत पस्त की है। जैसे उन्होंने रघुवर दास को ओड़िशा के गवर्नर बनने के बावजूद भी उनके हृदय की धड़कन को तेज कर रखा है। जैसे उनका एक पांव भुवनेश्वर और दूसरा पांव जमशेदपुर में रहता है। जैसे वे आजकल जमशेदपुर पूर्व में अपनी राजनीतिक गतिविधियां बढ़ा दी है। उस रघुवर दास के राजनीतिक चाल को वे समझने की कोशिश करें।

रघुवर दास अभी से ही अपने बेटे ललित दास के लिए जमशेदपुर पूर्व में अपनी राजनीतिक बिसात बिछानी शुरु कर दी है। इसलिए वे आजकल जमशेदपुर के हर छोटे-बड़े कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए आ धमकते हैं। जबकि वे जिस पद पर हैं, वहां ऐसे कार्यक्रमों में गवर्नर को शामिल होना, अच्छा नही लगता। लेकिन राजनीति जो न करायें। राजनीतिक स्वार्थ जो न कराये। गवर्नर रघुवर दास तो झारखण्ड की राजनीति में इतनी दिलचस्पी रखते है कि वे दिल्ली की सैर भी इसी के लिए करते हैं।

बेचारा क्या करें। राजनीति है ही ऐसी। गवर्नर बनने पर भी सुकून नहीं मिलता। इसलिए रघुवर दास की राजनीति को सदा के लिए ब्रेक लगाने के लिए सरयू को जमशेदपुर पूर्व में ही बहना होगा। रघुवर दास को दिल की धड़कन बढ़ाना ज्यादा जरुरी है, बनिस्पत धनबाद में बिल्ली की गले में घंटी बांधने से। अतः सरयू राय, स्वयं की अंदर की राजनीतिक क्षमता को पहचाने, धनबाद में इस बार वे चाणक्य की भूमिका में आए।

इससे फायदा उन्हें यह होगा कि दिल्ली में बैठे भाजपा के राजनीतिक भूपतियों, ढुलू प्रेमियों को भी समझ में आयेगी कि केवल राम के मंदिर बनाने से ही नहीं, बल्कि राम के हृदय में बहनेवाली सरयू प्रेम को सम्मान देना भी जरुरी है। नहीं तो वहीं होगा, जो झारखण्ड के सरयू चाहेंगे, न कि रघुवर, न कि बाबूलाल  और न कि भाजपा का कर्मकूटने को प्रतिबद्ध कर्मवीर।