धर्म

असली जीवन का आनन्द वहीं लेता है, जिसका जीवन आध्यात्मिकता से प्रेरित है, जो ध्यान को अपने जीवन में प्रमुख स्थान देता है, जिसने अपने जीवन को आंतरिक आनन्द में डूबो दिया है – स्वामी श्रद्धानन्द

योगदा सत्संग मठ में चल रहे चार दिवसीय साधना संगम के समापन अवसर पर योगदा भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी श्रद्धानन्द ने आन्तरिक आनन्द को ही प्रधान बताते हुए सभी से इसी की ओर विशेष ध्यान देने को कहा। स्वामी श्रद्धानन्द ने कहा कि बहुत ज्यादा हंसना, अत्यधिक प्रसन्नता का होना और आशावादी होना ये आन्तरिक आनन्द नहीं हैं और न ही इसे आन्तरिक आनन्द के आस-पास रखा ही जा सकता है। ये सामान्य परिस्थितियां हैं, जबकि आन्तरिक आनन्द ईश्वरीय आनन्द के करीब होता है, जिसे हम सच्चिदानन्द कहते हैं।

स्वामी श्रद्धानन्द ने कहा कि असली आनन्द का निर्माण हमारे हृदय में होता है और यह तभी होता है जब हम आंतरिक शांति और परम आनन्द को हृदय में महसूस करते हैं। हमें शक्ति, बुद्धिमता, प्रेम, शांति, सद्भाव आदि तभी प्राप्त होता है, जब हम आन्तरिक आनन्द को महसूस करते हैं। प्रसन्नता का असली मतलब हम तभी समझ पायेंगे, जब हम ईश्वरीय अनुभवों को महसूस करेंगे।

उन्होंने कहा कि डाक्टरों का मानना है कि अत्यधिक हंसना आंतरिक एरोबिक व्यायाम है। जो आंतरिक जॉगिंग का काम करता है। इससे हम बेहतर स्वास्थ्य की ओर अग्रसर होते हैं। यह हमारे शरीर को रिलैक्स करने में भी मदद करता है। दूसरी ओर प्रसन्नता या चेहरे पर मुस्कुराहट का होना, कोई जरुरी नहीं की हर प्रसन्न दिखनेवाला व्यक्ति सही मायने में प्रसन्न ही हो। चिकित्सकों व मनोवैज्ञानिकों का भी मानना है कि चेहरे पर दिख रही प्रसन्नता वास्तविक में असली प्रसन्नता को प्रतिबिम्बित नहीं करती। असली प्रसन्नता तो वह है जो वास्तविक में तनावरहित हो। हमारी आंखें हमारी असली प्रसन्नता को प्रतिबिम्बित करती है।

उन्होंने कहा कि आशावादी सोच अथवा सकारात्मकता हमें असली आनन्द की ओर ले जाती है। अगर हम हमेशा नकारात्मक सोचेंगे तो बस हम नकारात्मकता में ही उलझे रहेंगे और हमेशा उसी में पड़े रहेंगे, जीवन के असली आनन्द से वंचित रहेंगे। इसलिए हमारे जीवन में असली आनन्द को पाने के लिए आशावादी व सकारात्मक सोच को रखना जरुरी होगा। उन्होंने एक बहुत ही सुंदर उदाहरण -सैंड एंड स्वीट के द्वारा प्रस्तुत किया जो ग्रहण करने योग्य था।

स्वामी श्रद्धानन्द ने कहा कि असली जीवन का आनन्द वहीं लेता है, जिसका जीवन आध्यात्मिकता से प्रेरित है। जो ध्यान को अपने जीवन में प्रमुख स्थान देता है। जिसने अपने जीवन को आंतरिक आनन्द में डूबोने के लिए प्रेरित किया है। जिसमे सच्चिदानन्द को प्राप्त करने के लिए ही ज्यादा समय लगाया है। उन्होंने सभी से कहा कि अपने जीवन में अत्यधिक हंसना, प्रसन्नता और आशावादी सोच ही केवल ईश्वरीय आनन्द नहीं है। बल्कि ईश्वरीय आनन्द इससे भी परे हैं। इसे हमेशा ध्यान रखे।

उन्होंने कहा कि इस धरा पर जितने भी लोग हैं, सभी के मिश्रित चरित्र हैं। इसलिए हमें उन मिश्रित चरित्रों पर ध्यान न देकर केवल अपने आन्तरिक आनन्द की ओर स्वयं को ले जाने की जरुरत है। इसके पूर्व स्वामी अमरानन्द ने स्वरचित भक्तिमय गुरु परमहंस योगानन्द को समर्पित भजनों से जैसे – करुणामय गुरुदेव परमहंस योगानन्द आनन्दरुप प्रेमावतार…, जय गुरु, जय गुरु जय… आदि से सबको आत्मविभोर कर दिया।