सुनो… सुनो… सुनो… झारखण्ड विधानसभा में झाविमो विधायक दल के नेता और गोड्डा से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी बने प्रदीप यादव, राहुल व सोनिया के कंठहार बन देश व झारखण्ड की सेवा करेंगे!
सुनो… सुनो… सुनो… झारखण्ड विधानसभा में झारखण्ड विकास मोर्चा के विधायक दल के नेता और गोड्डा से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी बने प्रदीप यादव, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी व सोनिया गांधी के कंठहार बनकर देश व झारखण्ड की सेवा करेंगे। ठीक उसी प्रकार जैसे उन्होंने कभी भाजपा में रहकर तो कभी झाविमो में रहकर देश व झारखण्ड को सेवा दी है।
प्रदीप यादव को जानते हैं न। वही प्रदीप यादव जिनकी आवाज विधानसभा में बिना माइक के ही तहलका मचाती है। ऐसा तहलका कि दूसरा कोई विधायक माइक से भी बोलेगा तो उसकी आवाज स्पीकर तक नहीं पहुंच पायेगी, दब जायेगी। ये वही प्रदीप यादव है, जो विधानसभा में तो खुद को झारखण्ड विकास मोर्चा का विधायक दल का नेता बताकर बाबू लाल मरांडी को भाजपा विधायक दल का नेता बनने नहीं दिया और न ही नेता प्रतिपक्ष बनने दिया।
लेकिन खुद झारखण्ड विधानसभा में बैठकर झाविमो के नेता और बाहर में कांग्रेस पार्टी के नेता बताकर दोनों के मजे लेते रहे। मजा भी कोई साधारण नहीं, ऐसा मजा कि दीपिका पांडेय सिंह के हाथों में गया कांग्रेस का टिकट भी उस व्यक्ति ने आराम से छीनकर, अपने हाथों में ले लिया। कांग्रेस का क्या है? कांग्रेस का किया ही तो भाजपा कर रही है और कांग्रेस को उसी की भाषा में समझाकर दस वर्षों से केन्द्र में शासन के मजे ले रही हैं और अब तीसरा कार्यकाल पर भी उसकी पकड़ मजबूत हो रही है और ये मजबूती भी कांग्रेस के इसी दोहरे चरित्र के कारण हो रही है।
कमाल है, कांग्रेस का चरित्र देखिये, जो व्यक्ति झारखण्ड विधानसभा में झाविमो विधायक दल का नेता है। उसे अपनी पार्टी से टिकट दे रहा है और कांग्रेस की कट्टर समर्थक व झारखण्ड विधानसभा में विधायक है। उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। ये तो विधायक दीपिका पांडेय की महानता है कि उसने एक मीडियाकर्मी को दिये इंटरव्यू में साफ कह दिया कि ऐसे कई टिकट राहुल गांधी के लिये कुर्बान।
लेकिन सवाल यही उठता है कि यही हरकत कांग्रेस प्रदीप यादव के साथ करती, अगर वे कांग्रेस के विधायक रहते और दीपिका झाविमो विधायक दल की नेता रहती और कांग्रेस प्रदीप यादव की जगह दीपिका को टिकट दे देती तो क्या प्रदीप यादव के मुख से दीपिका की तरह ये संवाद निकलता। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि कभी नहीं। ये सीधे विद्रोह करते।
जैसा कि इन्होंने बाबूलाल मरांडी के साथ किया। झाविमो का विलय झाविमो प्रमुख भाजपा में करना चाहते थे, लेकिन अपनी राजनीतिक हैसियत को बढ़ाने के लिए प्रदीप ने बाबूलाल मरांडी को गच्चा दे दिया। हालांकि उनके गच्चा देने के बाद भी बाबूलाल मरांडी की राजनीतिक कैरियर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन प्रदीप यादव की राजनीतिक कैरियर पर पड़ना तय है। भले ही वे राजनीतिक तिकड़म कर कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं को चूना लगा दिये हो।
लेकिन गोड्डा की जनता उनके तिकड़म में फंस कर उन्हें गले लगा ही लेगी, ऐसा देखने को नहीं मिल नहीं रहा, क्योंकि कांग्रेस ने गोड्डा सीट पर दीपिका पांडेय को ही नहीं, बल्कि यहां के टॉप के नेता फुरकान अंसारी को भी गच्चा दिया है, जिसका इलाज इसी लोकसभा चुनाव में यहां की जनता कर देगी। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि गोड्डा संसदीय सीट से ऐसे भी भाजपा के निवर्तमान सांसद निशिकांत दूबे को हरा पाना इतना आसां नहीं।
क्योंकि उन्होंने इस इलाके में वो काम किया है कि प्रदीप यादव जैसे कई सांसद कितनी भी बार यहां से क्यों न जीत दर्ज कर लें, किसी जिंदगी में वे नहीं करा सकते। ऐसे भी प्रदीप यादव और निशिकांत दूबे में कोई तुलना हो भी नहीं सकता। एक खांटी पार्टी के प्रति समर्पित व्यक्तित्व हैं तो दूसरा कई दलों में जाकर कई घाट का पानी पीकर स्वयं को मजबूत बताने वाला व्यक्ति। कुल मिलाकर देखा जाये तो धनबाद संसदीय सीट की तरह गोड्डा सीट भी कांग्रेस ने थाल में सजाकर भाजपा को दे दी और निशिकांत दूबे के भाल पर विजय तिलक लगा दिया।