अभिनन्दन IAS सुखदेव सिंह का, जिन्होंने नैतिकता को प्राथमिकता दी, पद छोड़ना चाहा
अभिनन्दन करिये, ऐसे भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़े अधिकारियों का, जिनके पास नैतिकता बची हैं और जो नैतिकता का अपने जीवन में अक्षरशः पालन करते हैं, जो अपने से नीचे के अधिकारियों और कर्मचारियों को भी भरपूर सम्मान देना जानते हैं, जो न्यायालय के प्रति सम्मान और निष्ठा रखते हैं, जो जानते है कि उन्हें फंसाने की तैयारी हो रही हैं, जो जानते है कि उन्हें नीचे गिराने की तैयारी हो रही हैं, जो ये भी जानते है कि ऐसा कौन, किसके इशारे पर कर रहा हैं, उस पर भी मुस्कुराएं बिना नहीं रह सकते तथा उसकी भी चिंता करते है, कि कहीं उसे कोई दिक्कत न आ जाये।
ऐसे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में खासकर झारखण्ड में हमें एक ही नाम दीखता है, और वह है सुखदेव सिंह। जरा देखिये, जैसे ही उन्हें पता चला कि उन्हें चारा घोटाले के मामले में उन्हें सीबीआई कोर्ट के निर्देश पर धारा 319 के तहत आरोपी बनाया गया है, उन्होंने बिना देर किये सरकार से आग्रह कर दिया कि उन्हें वित्त सचिव पद से हटा दिया जाये। उन्होंने कोर्ट के आदेश के आलोक में मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को पत्र लिखकर कहा कि हालांकि यह मामला ट्रेजरी से जुड़ा है और बतौर वित्त सचिव राज्य के सभी ट्रेजरी के संचालन के प्रति वह जवाबदेह है, ऐसे में वित्त सचिव के पद पर रहना, नैतिक रुप से सही नहीं होगा, सरकार उन्हें इस जिम्मेवारी से मुक्त करें।
हालांकि सरकार ने उनके आग्रह को नहीं माना तथा उन्हें वित्त सचिव पद पर बने रहने को कहा है, क्योंकि सरकार की अपनी अलग मजबूरियां है, पर सुखदेव सिंह ने जिस नैतिकता की बात कहकर वित्त सचिव के पद से हटने की इच्छा जाहिर कर दी, वह बता दिया कि राज्य में अभी भी नैतिकता का पालन करनेवाले अधिकारियों की कमी नहीं, जिसमें प्रमुख रुप में और प्रथम स्थान पर सुखदेव सिंह का नाम आता हैं।
जबकि दूसरी ओर मुख्य सचिव राजबाला वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने चाईबासा की उपायुक्त पद पर रहते हुए न तो कोषागार का निरीक्षण किया, न ही मासिक एकाउंटस एजी को भेजी। कुछ एकाउंटस भेजे भी, लेकिन उन पर जूनियर अफसरों के हस्ताक्षर थे। इसी दौरान 1998 में सीबीआई ने इनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा राज्य सरकार को भेजी थी। तत्कालीन मुख्य सचिव को सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट और केस फाइंडिग्स देते हुए कहा था कि सरकार राजबाला पर मेजर पनिशमेंट चलाएं। राज्य सरकार ने कार्रवाई के नाम पर उनसे प्रतिक्रिया लेनी चाही, 30 से भी अधिक रिमाइंडर भेजे, पर राजबाला वर्मा ने कोई जवाब नहीं दिया. यानी जिसका जवाब 15 दिन में देना था, उस जवाब को देने में 14 साल बीत गये।
सूत्र बताते है कि फरवरी में राजबाला वर्मा अवकाश प्राप्त कर लेंगी, ऐसे में रिटायरमेंट के बाद, इसके बाद चार साल पुराने मामले पर विभागीय कार्रवाई नहीं हो सकती, जबकि चारा घोटाला 27 साल पुराना है, जबकि इन्हीं मामलों पर बिहार के 3 अफसरों पर कार्रवाई हो चुकी है। मुख्य सचिव राजबाला वर्मा के खिलाफ रघुवर सरकार में शामिल मंत्री सरयू राय ने मुहिम चला रखी है, झामुमो, झाविमो और कांग्रेस ने भी राज्य सरकार से मुख्य सचिव पद पर से राजबाला वर्मा को हटाने की मांग कर दी। महिला कांग्रेस ने तो पुतला दहन तक कर दिया, फिर भी राजबाला वर्मा अभी भी मुख्य सचिव पद पर डटी है, और उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की पेशकश तक नहीं की, बल्कि कुछ लोग कहते है कि वे सेवा विस्तार चाहती है।
राज्य में ऐसे कई भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है, जो ईमानदारी का मुखौटा लगाकर, नाना प्रकार के गलत कार्यों में भी लिप्त हैं, स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास भी, ऐसे अधिकारियों को अपने ‘सीधी बात’ कार्यक्रम में डांट पिलाते हैं, कई तो मुख्यमंत्री की भी नहीं सुनते और उनके द्वारा आयोजित ‘सीधी बात’ कार्यक्रम में शामिल नहीं होते, ऐसे लोगों से नैतिकता की डिमांड रखना ही मूर्खता है। अतः ऐसे हालात में जबकि नैतिकता की कहीं गूंज सुनाई पड़ रही हैं, तो ऐसे में भारतीय प्रशासनिक सेवा के इस अधिकारी सुखदेव सिंह की तो प्रशंसा करनी ही होगी, जिसने वित्त सचिव के पद से हटने की सरकार से आग्रह तो कर दी।
I appreciate for your efforts to publish always very transparent and fare news. The level of cruption in Jharkhand has been increased overall in present Government.
Government should take immediately action, should have online public counter where people can write against corrupt officers.