अपनी बात

भाजपा कार्यकर्ताओं के मां मरें या बाप, उससे प्रदेशस्तरीय नेताओं को कोई मतलब नहीं, नया-नया सांसद बना प्रदीप वर्मा ने अपनी गंदी हरकतों से ऐसा ही संदेश भाजपा कार्यकर्ताओं को दे डाला

दुमका में रहते हैं भाजपा के अतिसमर्पित व सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यकर्ता विवेकानन्द राय। हाल ही में 11 मई 2024 को इनके पिताजी का निधन हो गया। अपने पिता के निधन से व्यथित होकर वे इस दिन जब अपने स्वर्गीय पिता को सद्गति देने में लगे थे। उसी समय भाजपा के ‘भाई साहब’ व ‘मोटा भाई’ आदि नामों के विशेषण से संबंधित व्यक्ति सांसद प्रदीप वर्मा ने जो उस दौरान उनसे बातचीत की और जिस प्रकार से वे विवेकानन्द राय से पेश आये। उसकी चर्चा सोशल साइट पर चर्चा का विषय हो गया है। सुर्खियां बनती जा रही है।

सबसे पहले एक पत्रकार ने व्हाट्एप्प पर क्या लिखा, वो पढ़िये – ‘लोकसभा चुनाव में प्रमुखता से लगे एक राजनीतिक दल के देवतुल्य कार्यकर्ता के पिताजी का निधन हुआ। पिता को मुखाग्नि देकर स्वजनों के साथ चित्ता भस्म होने की प्रतीक्षा में थे कि तभी रांची से प्रभारी जी (भाई साहब) का फोन आया। आहत मन शिष्टाचार की निष्ठा में फोन उठा बैठा। भारी भरकम काया वाले भाई साहब बोले – आपकी बहुत शिकायत मिल रही है। आप चुनाव में लगे नहीं हैं।

चित्ता की लपटों को निहारते हुए कार्यकर्ता ने कहा कि मैं श्मशान में हूं। पिताजी का निधन हो गया है। निजी शिक्षा संस्थान की दुकानदारी चला रहे प्रभारी भाई साहब बोले फिर तो हमलोगों ने आपको काम में लगाकर गलती की। हमने गलत आदमी का चयन कर लिया। बता दें कि जो कार्यकर्ता है। वो अपना खर्च कर तीस साल से पार्टी के साथ लगे हैं। जबकि पर प्रभारी भाई साहब पार्टी में पैदा लेते ही विधानसभा लोकसभा टिकट की रेस में लग गये थे। फिलहाल राज्यसभा कन्फर्म करा लिये हैं।’

वरिष्ठ पत्रकार विजय देव झा अपने सोसल साइट फेसबुक पर लिखते है कि ‘विवेकानंद राय (दुमका) को अपने पिता की तरफ से भाजपा से परमिशन लेना चाहिए था कि वह (पिता) बीच चुनाव में मर सकते हैं कि नहीं। प्रदीप वर्मा को विवेकानंद राय के विरुद्ध अनुशासनात्मक कारवाई करनी चाहिए। ऐसे कैसे कोई चुनावी दायित्वों को इग्नोर कर सकता है।’

जो लोग प्रदीप वर्मा को नजदीक से जानते/समझते हैं। उनका कहना है कि ऐसी हरकतें नये-नये भाजपा के टिकट पर राज्यसभा में सांसद बने प्रदीप वर्मा ही कर सकते हैं, क्योंकि उस व्यक्ति में मानवीय संवेदना है ही नहीं। किसी की बाप मर जाये या मां मर जाये, उससे उसको कोई मतलब नहीं। उसको मतलब सिर्फ इससे हैं कि उसके अन्नदाता संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह खुश है या नहीं।

उसको मतलब इससे है कि बाबूलाल मरांडी खुश है कि नहीं। देश, समाज या दल या दल के लोग या दल के कार्यकर्ता से उसे कोई लेना देना नहीं और न ही उसके सुख-दुख से, क्योंकि किसी का सुख-दुख उसे राज्यसभा तक नहीं पहुंचाया। उसे पहुंचाया हैं, उसके दिमाग ने और दिमाग यही कहता है कि कोई श्मशान घाट में रहे या हास्पिटल में। वो उसे कितना फायदा पहुंचा रहा हैं, ज्यादा ध्यान इसी पर होना चाहिए।

इधर प्रदीप वर्मा के इस गंदी हरकत से पूरे प्रदेश में भूचाल है। पार्टी कार्यकर्ता अंदर ही अंदर गुस्से में हैं। लोगों को लगता है कि इस हरकत से पार्टी को नुकसान न हो जाये। राजनीतिक पंडितों की मानें, जिस प्रकार से भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं की हरकतें हैं। नुकसान शत प्रतिशत तय है। अपने कार्यकर्ताओं के साथ ऐसी हरकतें कोई गिरा हुआ व्यक्ति ही कर सकता है।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यही हाल रहा तो जैसे 13 मई को हुए चार सीटों के चुनाव में तीन सीटें भाजपा गवां चुकी हैं, आनेवाले समय में दुमका लोकसभा सीट तो भाजपा निश्चित ही हारेगी, अन्य लोकसभा सीटों पर भी भाजपा की बर्बादी की पटकथा लिखी जा चुकी हैं। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं हैं।