सीएमओ के वे घटिया सलाहकार, झूठे केस में फंसानेवाले धुर्वा थाना व झारखण्ड पुलिस के अधिकारियों के समूह, अखबारों व उनके पत्रकारों की घटिया सोच व एक प्रतिबद्ध पत्रकार की व्यथा – चार
5 अप्रैल 2024, मैं इस दिन मार्क ऐड के आनन्द श्रीवास्तव जी के यहां शुक्ला कॉलोनी मोटरसाइकिल से जा रहा था। चूंकि उन्होंने कुछ सामान से हमें सहयोग दिया था। उस सामान के पैसे, हमें लौटाने थे। अचानक चुटिया के परमहंस योगदानन्द चौक के पास पुलिसकर्मियों ने हमें रोक लिया। मेरी मोटरसाइकिल व मेरे बैग जांचने लगे व मेरा विजयुल कैमरे से उतारने लगे।
मैंने उन पुलिसकर्मियों से पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। उनका कहना था कि ऐसा वे इसलिए कर रहे हैं कि उन्हें उपर से आदेश है कि आप अपनी ड्यूटी बजा रहे हैं या नहीं। इसकी पूरी विजुयल उपर के अधिकारियों तक पहुंचाइये। उन पुलिसकर्मियों का ये कथन हमें संतुष्ट नहीं कर सका। हम रास्ते भर सोचते हुए आनन्द श्रीवास्तव के यहां गये और वहां से फिर रास्ते भर सोचते हुए लौटे और अपने मन की शांति के लिए रात में चुटिया थाना पहुंच गये।
मैं चुटिया थाना में मुंशी के पास गया और उक्त घटना के बारे में पूछा। मुंशी ने बताया कि वे पुलिसकर्मी सही कह रहे थे। चूंकि चुनाव का महीना चल रहा है। ऐसा करने को कहा गया है। इसी दौरान मुंशी ने हमें बताया कि हमारे नाम से एक नन-बेलेबल वारंट थाने में मौजूद थे। इसके पहले भी एक आया था, लौट गया। आपका पता नहीं मिला और आपसे मुलाकात नहीं हुई, इसी कारण पहले वाला वारंट लौट गया। फिर वारंट आया है।
मैं समझ नहीं सका कि आखिर ये हुआ कैसे? हाई कोर्ट ने पहले से ही निचली अदालत को कोई भी ऐक्शन लेने से रोक लगा दी थी। फिर अचानक निचली अदालत कैसे सक्रिय हो गई? मैंने मुंशी से वारंट दिखाने को कहा ताकि मैं सतुष्ट हो सकूं। मुंशी ने दूसरे पुलिसकर्मियों से मिलने को कहा, जिनके पास वारंट मौजूद था। वहां महिला पुलिसकर्मी थी। जैसे ही वारंट दिखाने को कहा। उनका विहैभ हमारे प्रति ठीक नहीं दिखा। वो ऐसे बात कर रही थी, जैसे कि मैं कोई बहुत बड़ा क्रिमिनल हूं। मैं फिर मुंशी के पास गया। मुंशी ने सहयोग किया और कहा कि देख लीजिये यही है। आप इसी बीच बेल ले लीजिये।
मेरा माथा ठनका, क्योंकि मेरे वकील ने कुछ कहा था और यहां कुछ और हो रहा था। मैंने तुरन्त अपनी वकील पूजा से संपर्क किया। शायद वो अपने कम्प्यूटर पर ही थी। जैसे-जैसे सवाल कर रहा था। वैसे-वैसे ईकोर्ट खोलकर मेरे सारे सवालों का जवाब दे रही थी। अब सबसे पहले हमें बेल लेना जरुरी थी, क्योंकि मेरे उपर गिरफ्तारी का तलवार लटक रहा था। तीन दिनों के अंदर ही बेल भी मिल गया और इधर हाई कोर्ट में आईए के लिए आवेदन 18 अप्रैल को मैंने सुपूर्द कर दिया।
देखते ही देखते आईए पर बहस के लिए 7 मई को दिन मुकर्रर कर दी गई। 7 मई को झारखण्ड हाई कोर्ट के कोर्ट नं 13 में सम्मानित न्यायाधीश संजय कुमार द्विवेदी की अदालत में बहस शुरु हुई। मेरी ओर से पूजा मिश्रा और कंचन झा अपनी बातें रख रही थी। जबकि सरकार की ओर से पी डी अग्रवाल तथा विरोधी पार्टी से गौतम कुमार, बिराट कुमार और सविता कुमार अपनी बातें रख रही थी। मैं पीछे की सीट पर बड़े ही आराम से बिना किसी चिन्ता के सारी बातें सुन रहा था और खुशी भी हो रही थी।
विद्वान व सम्मानित न्यायाधीश संजय कुमार द्विवेदी, उन सारी बातों को स्पर्श कर रहे थे। जिन बातों को स्पर्श करने की कोशिश न तो स्थानीय पुलिस ने की और न ही अन्य जांच कर्ताओं ने तथा अन्य वे लोग भी जो न्याय दिलाने में अहम रोल अदा कर सकते थे। विद्वान व सम्मानित न्यायाधीश ने सारी बहस सुनने के बाद अगले 8 मई को आर्डर सुनाने की बात कही।
आठ मई को शुरुआत में ही मेरा केस का नंबर दिया हुआ था। अदालत फिर बैठी। फिर कुछ विद्वान अधिवक्ताओं के बीच और न्यायाधीश के साथ अच्छी वार्ता हुई और फिर फैसला आया, जो अखबारों की सुर्खियां भी बनी। मेरी याचिका पर विद्वान व सम्मानित न्यायाधीश संजय कुमार द्विवेदी ने मुहर लगा दी। केस क्वैश हो चुका था।
इसी बीच हम यह देखना चाहते थे कि जिस प्रकार से सीएमओ के कहने पर 22 मई 2017 को रांची के प्रमुख अखबारों ने जिसमें हिन्दुस्तान को छोड़कर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर व प्रभात खबर ने हमारी इज्जत लूटने की उस वक्त कोशिश की थी। क्या 8 मई को फैसला आने के बाद हमारा खोया सम्मान इन अखबारों ने लौटाया। 9 मई को किसी भी अखबार में खबर नहीं थी।
मैंने समझ लिया। ये अखबार तो वर्तमान में इज्जत लूटने का पम्पलेट बन गये हैं। ये इज्जत लूटना जानते हैं। सम्मान देना इनके वश की बात नहीं। इसी बीच दो दिन बाद मैंने बिरसा के गांडीव के संपादक व रांची प्रेस क्लब के महासचिव अमर कांत से सम्पर्क किया। उन्होंने कहा – भैया ये बहुत बड़ी घटना हैं। मैं इसे प्रकाशित करुंगा। डिटेल्स बताइये। मैंने उन्हें आदेश की प्रति संप्रेषित कर दी। उन्होंने अपने अखबार में छापा। उसकी कटिंग नीचे दिया गया है। आप स्वयं देखें।
फिर हमनें हिन्दुस्तान के पत्रकार अखिलेश कुमार सिंह से बातचीत की। अखिलेश से बातचीत से पता चला कि उसे खुशियों का ठिकाना नहीं था। वो बहुत खुश था। अखिलेश ने कहा कि भइया केवल आप आर्डर का कॉपी भेजिये। मैं अपने अखबार में स्थान दूंगा। सचमुच 22 मई 2017 की तरह, इस अखबार ने फिर से हमें वहीं सम्मान दिया, जो किसी ने नहीं दी थी। अखबार की कटिंग नीचे दी गई है।
और जिन-जिन अखबारों ने जैसे- दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर व प्रभात खबर ने हमारी पूर्व में इज्जत लूटी थी। इस बार ठीक उसी प्रकार नई न्यूज को छापा, जैसे लग रहा हो कि ये कह रहे हो कि कृष्ण बिहारी मिश्र को न्याय कैसे मिल गया। उसे तो जेल में होना चाहिए।
लेकिन इन अखबारों को पता नहीं, कि जिनके साथ परमहंस योगानन्द जी का आशीर्वाद हो, उसे पराजय का मुंह कभी देखना नहीं पड़ता, क्योंकि वे हमेशा सत्य के साथ रहते हैं। प्रेम के साथ रहते हैं। घृणा और विषाद तो उन्हें कभी घेर ही नहीं सकता। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया। वैसे-वैसे लोगों ने हमें बधाइयां देनी शुरु की और कहा कि आपका संघर्ष रंग लाया।
इस केस को खत्म करने के लिए मेरे पास कई विकल्प थे। मैं भी रांची के अन्य संपादकों की तरह तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास तथा सीएमओ में बैठे उनके लोगों के आगे सर झूकाकर अपनी गलती जो मैंने कभी की ही नहीं, उसकी क्षमा याचना कर सकता था। मैं सुलह समझौता करने का दबाव दे सकता था। मैं उन पुलिस अधिकारियों के पास जाकर उनके आगे नाक रगड़ सकता था। लेकिन मैंने ये सब न कर, न्यायिक व्यवस्था और अपने गुरु परमहंस योगानन्द जी पर विश्वास रखा और विजय तिलक मेरे माथे पर विद्यमान हो गया।
अंत में, मैं उन सभी के प्रति आभारी हूं। जिन्होंने मुझे विपरीत परिस्थितियों में भी मेरा साथ नहीं छोड़ा। मेरे साहस और हौसले को बरकरार रखने के लिए समय-समय पर हमारे हौसले को बुलंद करते रहे। आज 18 मई है। मैं निचली अदालत में झारखण्ड हाई कोर्ट द्वारा जारी आदेश की एक प्रति समर्पित करने गया था। आज मैं खुश हूं कि मैं दोषमुक्त हूं। आप सभी से भी कहुंगा कि आप भी ईश्वर पर भरोसा रखें। ईश्वर हमेशा मदद करने को तैयार हैं। कभी भी गलत के साथ समझौता नहीं करें। अंत में, मैं फिर यहीं कहूंगा कि केस सात साल तक चलें। लेकिन जिसने हमारे उपर केस किया। उसका चेहरा आज तक मैंने नहीं देखा। यह भी आठवां आश्चर्य है। (समाप्त)।