झामुमो ने संसद में उठाया बकोरिया कांड, संजीव ने सीबीआई से जांच की उठाई मांग
झामुमो सांसद संजीव कुमार ने राज्यसभा में कहा कि 8 जून 2015 को पलामू के बकोरिया गांव में झारखण्ड पुलिस ने दावा किया था कि वहां नक्सलियों के बीच जबर्दस्त मुठभेड़ हुई, जिसमें 12 खूंखार नक्सलियों को झारखण्ड पुलिस ने मार गिराया, उस दिन झारखण्ड पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारियों ने इस मुठभेड़ को लेकर बड़े-बड़े दावे भी किये थे, पर सच्चाई यह थी कि जहां वे मुठभेड़ का दावा कर रहे थे, वहा मृतकों की लाशें पंक्तिबद्ध रुप से रखी हुई थी। जो राइफलें दिखाई गई थी, वह जंग लगी थी, जो उपयोग के लायक भी नहीं थे। मृतकों की वर्दियों में कोई गोली के निशान नहीं थे, कहीं कोई खून का निशान नहीं था, उसी दिन पता लग गया था कि वहां कोई मुठभेड़ नहीं हुआ, उन्हें किसी और जगह से मारकर बकोरिया लाया गया था और वहां मुठभेड़ का पुलिस द्वारा झूठा नाटक किया गया था। यहीं नहीं सारे लोगों को 24 घंटे के अंदर ही पता चल गया कि 12 मृतकों में से 11 आम नागरिक, जिसमे कुछ नाबालिग भी थै।
संजीव कुमार ने राज्यसभा में कहा कि 16 जून 2015 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जब इस कांड को लेकर स्वतः संज्ञान लिया और पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर इसकी निष्पक्ष जांच कराकर एक महीने के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा, उस मानवाधिकार आयोग की बातों को भी सरकार ने नहीं माना। 4 दिसम्बर 2017 को वहां के थाना प्रभारी हरीश कुमार पाठक ने जब जांच में इसे फर्जी मुठभेड़ बताते हुए इसकी रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक अपराध अनुसंधान विभाग को जो भेजी है, अगर वह रिपोर्ट आप पढ़े तो आपके रुह कांप जायेंगे। हरीश पाठक को निलंबित किया जा चुका है।
संजीव कुमार ने कहा कि झारखण्ड में भोलेभाले आदिवासियों-गरीबों को नक्सली बताकर आत्मसमर्पण का घिनौना अपऱाध पुलिस कर रही थी, जिसे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सही पाया और 8 सितम्बर 2016 के अपने रिपोर्ट में पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। बकोरिया फर्जी पुलिस मुठभेड़ कांड में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जांच में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। ये घटना मानवता को शर्मसार करनेवाली है। ये न्याय के साथ धोखा है। इसकी निष्पक्ष जांच हो। सीबीआई से जांच हो और जो अपराधी हैं, उन्हें सजा मिलनी चाहिए।