भाजपा ही के लोग मिलजुलकर हंसते-गाते, नारे लगाते, बैंड-बाजे के साथ, अपने कंधे पर बिठाकर हेमन्त सोरेन को राज्य के मुख्यमंत्री के सिंहासन पर पुनः बिठायेंगे, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं
झारखण्ड में हेमन्त सोरेन की फिर से सरकार बनें, इसके लिए झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन या उनके कार्यकर्ताओं या उनके चाहनेवालों को कुछ करने की जरुरत नहीं। ये भाजपा में इन दिनों जो नेताओं की बाढ़ आई हैं तथा प्रदेशस्तर पर जो लल्लों-चप्पों करनेवाले नेताओं की जो घुसपैठ हो गई हैं, यही लोग मिलकर हंसते-गाते, नारे लगाते, बैंड बाजे के साथ अपने कंधे पर बिठाकर हेमन्त सोरेन को पुनः राज्य के मुख्यमंत्री के सिंहासन पर बिठायेंगे। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं।
पहली बार देखने को मिल रहा है कि भाजपा में ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली लोकोक्ति चरितार्थ हो रही है। जिन्हें झारखण्ड के इतिहास-भूगोल का पता नहीं, जिन्होंने लोकसभा में भाजपा और उनके सहयोगियों को 12 से नौ पर लाकर पटक दिया, उन्हें फिर से जिम्मेदारी दी गई है। बाकी जो संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह, तथा स्वयं की महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए सर्वस्व न्योछावर करनेवाले दीपक प्रकाश, प्रदीप वर्मा, आदित्य साहू जैसे लोग हैं ही, जो भाजपा को नीचे ले जाने में एड़ी-चोटी करे अथवा न करें, उनकी भूमिका ही भाजपा को डूबो देने के लिए काफी है।
रही बात केन्द्रस्तर के नेताओं की, तो विद्रोही24 ने सोचा था कि 12 से नौ पर आने पर, भाजपा के नेता आत्ममंथन करेंगे, लेकिन इन्होंने आत्ममंथन करना दूर, जो उन्हें राह दिखा रहे हैं, उन्हें ही अपना दुश्मन समझ लिया और उन्हें सबक सिखाने के लिए उनके पीछे ट्रोलर लगा दिये। एक नेता नाम बता दूं रांची विधायक सीपी सिंह वो तो ऐसे उछल रहे हैं, जैसे लगता है कि अब तक ये जितने भी बार विधायक बने, अपनी मेहनत और कार्यकुशलता से बने।
जबकि सच्चाई यह है कि रांची विधानसभा की जो स्थिति है, भाजपा यहां किसी को भी खड़ा कर दें, वो विधायक बनेगा ही बनेगा। इसमें किन्तु-परन्तु वाली बात नहीं, लेकिन सच्चाई यह भी है कि 2014-19 के कार्यकाल में इस व्यक्ति ने अपने मंत्रित्व काल में वो राजधानी रांची की दुर्दशा की, उससे लोग इस व्यक्ति से ऐसे बिदके कि 2019 के विधानसभा चुनाव में यह व्यक्ति हारते-हारते, जैसे-तैसे चुनाव जीता।
लेकिन फिर भी इन्हें बुद्धि नहीं खुली। ये हर किसी के सामने अपने बुद्धि का प्रदर्शन ठीक उसी प्रकार करते हैं, जैसा कि उन्होंने अपने मंत्रित्व काल में हरमू जैसी नदी को नाले में कन्वर्ट कर दिया। इसी प्रकार भाजपा में एक से एक नेता हैं। जिनकी कुंडली आम जनता के सामने ठीक नहीं हैं। इन्हें टिकट मिले या न मिले, ये अगर किसी के बगल में खड़े हो जाये, तो वो भी व्यक्ति हार जायेगा। ये तो सुनिश्चित ही है।
अब दूसरे नेता को देखिये, जनाब 2019 तक झारखण्ड के मुख्यमंत्री थे। आजकल ओडिशा के राज्यपाल है। ये मुख्यमंत्री रहे हो या राज्यपाल। हर जगह इन्होंने कमाल जरुर दिखाया है। वर्तमान में इनके बेटे ललित दास ने वो कमाल दिखाया है कि पूरे देश में जनाब की इज्जत दांव पर लगी हुई है। हालांकि अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने ओडिशा की भाजपा सरकार पर दबाव बनाया और पीड़ित व्यक्ति को राजभवन से स्थानान्तरित करा दिया, जबकि उसे न्याय मिलनी चाहिए थी। ऐसे भी रघुवर दास का परिवार जमशेदपुर में अपने क्रियाकलापों से हमेशा सुर्खियां बटोरता रहा हैं।
सरयू राय तो इनके मुख्यमंत्रित्व काल में ही इनकी कार्यशैली पर सवाल उठाते रहे। इसी सवाल से आजिज होकर सरयू राय को सबक सिखाने के लिए रघुवर दास ने सरयू राय का जमशेदपुर पश्चिम से टिकट कटवा दिया। प्रतिक्रिया स्वरुप सरयू राय ने निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में जमशेदपुर पूर्व से अपनी उम्मीदवारी दे दी और लीजिये जमशेदपुर पूर्व से सरयू राय ने रघुवर दास को सबक सिखा दिया।
मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए रघुवर दास ने हार का स्वाद चख लिया। ये दो उदाहरण काफी है कि भाजपा के विधायक या नेता जब शीर्ष पर पहुंचते हैं तो ये किसी को समझते ही नहीं और जब कुछ नहीं रहते तो फिर ये नाक रगड़ना शुरु कर देते हैं। वे उन्हें खोजते हैं, जिन्हें ये कभी सत्ता में रहते समझने की कोशिश या बात करने की कोशिश ही नहीं की।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि भाजपा की हार का मूल कारण उनके नेताओं में आया गजब का घमंड है। फिलहाल तो ये अपने कार्यकर्ताओं का सम्मान का कार्यक्रम चला रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि ये डरे हुए लोग कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं कर रहे। बल्कि सम्मान का लालच का टोपी पहनाकर उन्हें उल्लू बना रहे हैं। सम्मान तो दिल से होता है। जो दिल इनके पास अब है नहीं।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि इनके कार्यक्रम में दो नेताओं की तस्वीर होती है। एक पं. दीन दयाल उपाध्याय और दूसरा डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की। दरअसल ये दोनों फोटो कार्यक्रम में शामिल होनेवाले लोगों को आंखों में धूल झोंकने के लिए होती है, न कि उनके बताये गये पदचिन्हों पर चलने के लिए या संकल्प लेने के लिए।
नहीं तो उदाहरण देखना है तो इसका भी उदाहरण है। हाल ही में लोकसभा का चुनाव हो रहा था। बोकारो की एक सभा में धनबाद के भाजपा विधायक राज सिन्हा ने पं. दीन दयाल उपाध्याय की बात को कोट करते हुए सभा को संबोधित कर दिया। लीजिये, भाजपा के प्रदेशस्तरीय शीर्षस्थ नेता ऐसे उनसे गुस्साये कि उनके 2024 में धनबाद से टिकट मिलेगी या नहीं मिलेगी, इस पर अभी से ही संशय गहराने लगा है।
हाल ही में धनबाद में वहां कार्यकर्ताओं को गमछा ओढ़ाने का कार्यक्रम था। भाजपा सांसद ढुलू महतो के टाइगर सेना से संबंधित लोगों ने ऐसा बवाल काटा कि बेचारा राज सिन्हा किंकर्तव्यविमूढ हो गये, जबकि मंच पर स्थित मंचासीन बाबूलाल मरांडी और ढुलू महतो अंदर ही अंदर ऐसे मुस्कुरा रहे थे, जैसे लगता हो कि उन्हें मनचाही मुराद मिल गई।
मतलब इनके अंदर इतनी गंदगियां समा गई है कि ये झारखण्ड विधानसभा में 20 सीटें भी जीत लें तो आश्चर्य ही होगा। आम जनता ने तो एक तरह से निर्णय कर लिया है कि किसे वोट देना है और किसे सबक सिखाना है। भाजपा के लोग माहौल बनाने में लगे हैं। लेकिन जनता ने कब का माहौल तैयार कर लिया है, इन्हें पता ही नहीं। जबकि जिसने हेमन्त सोरेन को जेल में ढुकाया है। उनकी राजनीतिक बत्ती जनता बुझाने को तैयार है। समझना है तो समझिये, नहीं समझना है तो मत समझिये। आगे और भी समय आने पर बुद्धि की अगरबत्ती हम आपको दिखाते रहेंगे।