धूमधाम से योगदा सत्संग आश्रम में मनी गुरु पूर्णिमा, योगदा भक्तों ने प्रेमावतार परमहंस योगानन्द जी को किया स्मरण, उनके बताये आध्यात्मिक मार्गों पर चलने का लिया संकल्प
आज आषाढ़ शुक्लपक्ष की पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा है। गुरु पूर्णिमा किसी भी आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है और जब बात योगदा सत्संग की हो, तो इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। झारखण्ड में रांची ही केवल एकमात्र स्थान है, जहां से महान आध्यात्मिक गुरु परमहंस योगानन्द जी का विशेष जुड़ाव रहा है। ऐसे में रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम में इस दिन भारी भीड़ देखने को मिलती है।
उसमें भी अगर रविवार हो गया तो योगदा भक्तों के लिए और विशेष दिन हो जाता है, क्योंकि इस दिन रविवारीय सत्संग होना ही है और कोई न कोई संन्यासी आपकी चेतना को जागृत करने के लिए सत्संग करते हुए मिल ही जायेंगे। अतः आज का दिन योगदा सत्संग से जुड़े हुए योगदा भक्तों के लिए विशेष दिन है, यही कारण रहा कि आज योगदा सत्संग मठ में बारिश के बावजूद अच्छी संख्या में परमहंस योगानन्द जी के मार्ग में चलनेवाले लोग जुटे और रविवारीय सत्संग, भजन और भंडारा तीनों का आनन्द लिया।
गुरु पूर्णिमा उत्सव की शुरुआत यहां के विशेष ऑनलाइन समूह ध्यान और प्रातः विशेष ऑनलाइन सामूहिक ध्यान और स्वामी श्रद्धानंद गिरि के सत्संग के साथ आरंभ हुआ। इस सत्संग से भारत के कोने-कोने में रहनेवाले योगदा भक्तों ने स्वयं को जोड़ा व खुद को अनुप्राणित किया। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु-शिष्य संबंध पर बोलते हुए स्वामी श्रद्धानंद ने श्री श्री परमहंस योगानंद के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा कि, वे कहते थे कि, “जो लोग ईश्वर को चाहते हैं और हृदय की गहराइयों के साथ मेरे पास आते हैं, फिर वे कभी भी पहले जैसे नहीं रहेंगे”।
स्वामीजी ने इसे विस्तार से समझाते हुए कहा कि, योगानन्दजी की आत्मा से प्रवाहित होती दैवीय सहायता भक्त को सदा के लिए बदल देगी। उन्होंने योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस)/सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ) के अध्यक्ष और आध्यात्मिक प्रमुख श्री श्री स्वामी चिदानंद गिरी द्वारा वाईएसएस/एसआरएफ के भक्तों को लिखे गए पत्र के कुछ अंश भी पढ़े जहां वे उन्हें प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं कि वे “गुरुदेव की शाश्वत संरक्षण में शरण लें, फिर ऐसी कोई चुनौती नहीं है जिसका वे सामना नहीं कर सकते और उससे पार नहीं पा सकते”।
जैसे ही ऑनलाइन सत्संग समाप्त हुआ शिव मंदिर में गुरु पूजा की शुरुआत हुई। ब्रह्मचारी शांभवानन्द, ब्रह्मचारी प्रह्लादानन्द और स्वामी शंकरानन्द गिरि ने भजन की त्रिवेणी इस प्रकार बहाई की वहां उपस्थित सारे श्रोता उक्त भजन में गोता लगाते दिखे। इसी बीच वर्षा की फुहारें, बहती हवाओं के बीच श्रोताओं को हल्की भिंगोती भी दिखी। बारिश की फुहारें इस प्रकार प्रतीत हो रही थी, मानो इन्द्र भी स्वर्ग छोड़कर, इस धरा पर चल रहे इस स्वर्गिक आनन्द में मग्न होने के लिए चल पड़े हो।
भजन भी एक से एक, गुरु का ध्यान करो, मन में प्रेम भरो, गुरु की शरण में रहो, सब का सहारा सद्गुरु नाम, योगानन्द सद्गुरु नाम, बेड़ा पार करो …, जय ब्रह्म गुरु, जय ब्रह्म गुरु, जय शिवाय नमः, ब्रह्म गुरु …, गुरुदेव योगानन्द, दीन बंधु त्राहिमाम्, सतगुरु जय सतगुरु जय सतगुरु, जय त्राहिमाम्, सत गुरु रक्षमाम् …, गुरुदेव योगानन्द आओ, हम चरण शरण में आये हैं, हमें पार लगा जाओ, गुरुजी हमें पार लगा जाओ …, दीनबंधु करुणामय गुरुदेव, दयासिंधु हो सद्गुरुदेव, प्रेमरुप हो मेरे गुरुदेव, ज्ञान ज्योति सद्गुरुदेव, परमहंस योगानन्द जयगुरुदेव, जय गुरु, जय गुरु, जय गुरु जय, जय गुरु जय …, ले लो चरण शरण में गुरुजी, ले लो चरण शरण में …, गुरु शरणम्, गुरु शरणम्, गुरु शरणम् …
जैसे ही भजन समाप्त हुआ। परमहंस योगानन्द जी की आरती उतारी गई। फिर प्रसाद भंडारा ग्रहण करने के लिए योगदा भक्त निकल पड़े। शाम तीन घंटे लंबे विशेष ध्यान के बाद स्वामी शंकरानन्द ने परमहंस योगानन्दजी द्वारा एक भक्त को लिखे एक प्रेरक पत्र के अंश योगदा भक्तों के बीच रखना प्रारंभ किया। जिसमें इस बात का जिक्र था कि निष्ठावान् शिष्यों के लिए एक सद्गुरु की शाश्वत सहायता और प्रेम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।