पर वे लोकतंत्र में बर्दाश्त करने को तैयार नहीं, न ही सुप्रीम कोर्ट से सीख लेने को तैयार
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि मीडिया को अभिव्यक्ति की आजादी देना आवश्यक है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक टीवी पत्रकार के खिलाफ दायर मानहानि के मामले पर सुनवाई करते हुए कहा “आपको लोकंतंत्र में बर्दाश्त करना सीखना चाहिए। यह संभव है कि अदालत ने मानहानि कानून को सही ठहराया हो पर इसका मतलब यह नहीं कि हर मामला मानहानि का हो जाये” क्या सर्वोच्च न्यायालय की यह बात सत्तारुढ़ भाजपा या अन्य राजनीतिक दलों के कुख्यात नेताओं को समझ आयेगी।
इधर आधार डाटा लीक मामले में बढ़ते विवाद को देखते हुए सरकार ने साफ किया है कि वह प्रेस की स्वतंत्रता के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। केन्द्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि यूआईडीएआई ने इस मामले में एफआईआर किसी व्यक्ति पर नहीं, बल्कि अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कराई है।
सवाल उठता है कि सरकार द्वारा दी गई सफाई और इधर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मीडिया को अभिव्यक्ति की आजादी देने की बात करना, कोई सामान्य बात नहीं है, इसका अर्थ होता है कि पूरे देश में मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिल पा रही और सरकार तथा सरकार में शामिल लोग, चाहे व केन्द्र हो या राज्य, सभी ने मीडिया का मुंह बंद करने का एक प्रकार से कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया हैं। मीडिया का मुंह बंद करने के लिये, इनलोगों ने दो तरीके अपनाये है, एक मीडिया मालिकों/संपादकों को धन या भय दिखाकर अपने में मिला लो, ताकि उक्त संस्थान में सरकार के खिलाफ कुछ आये ही नहीं तथा दूसरा अगर कोई मीडिया या पत्रकार सरकार को आइना दिखाये तो उसको ऐसे-ऐसे झूठे मुकदमें में फंसा दो, ताकि उसका जीवन ही उस मुकदमे को झेलते-झेलते समाप्त हो जाये और अपना काम भी निकल जाये।
ये जो दुसरी परिपाटी है, वह भाजपा में खुब चल रही है। इस पार्टी ने ऐसी गंध मचा दी है, कि जैसे लगता है कि इस पार्टी के अंदर एक प्राथमिकी/मुकदमा दर्ज कराने का एक प्रकोष्ठ ही खोल दिया गया है, जहां भी कोई मीडियाकर्मी सरकार को आइना दिखाने का काम करता है, इस प्रकोष्ठ से जुड़े लोग अपने आकाओं की मदद से उक्त व्यक्ति के खिलाफ झूठा प्राथमिकी या मुकदमा दर्ज करा देते हैं। आश्चर्य इस बात की भी है, जिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी जाती है, वहां के थाना प्रभारियों या आइओ पर दबाव डाला जाता है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी या मुकदमा दर्ज कराया गया हैं, उस पर ऐसी-ऐसी आईपीसी की धारा लगा दो कि उसकी जिंदगी ही बर्बाद हो जाये। ऐसी हरकतें केन्द्र व राज्य स्तर पर खुलकर चल रही है।
ये वहीं भाजपा है, जिस पार्टी में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी है, जो पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं, कई समाचार पत्रों व पत्रिकाओं का उन्होंने संपादन किया है। आज वहीं भाजपा पत्रकारों के प्रति कितना सुंदर भाव रखती है, उसके एक नहीं, अनेक उदाहरण दिल्ली तथा राज्य के अन्य राजधानियों में देखने को मिल रहे हैं, इनकी ऐसी हरकतों के कारण पूरे देश में पत्रकारिता करना अब खतरे में पड़ गया है। एक समय इसी पार्टी के नेता जब 1975 के दौरान पत्रकारिता पर संकट आया था तब वे इंदिरा सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे, गिरफ्तारियां दी, लोकतंत्र को खतरे में पड़ने से बचाया, पर आज ये स्वयं पत्र-पत्रकारों के लिए खतरे बनते जा रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने ठीक ही कहा है कि लोकतंत्र में बर्दाश्त करना सीखना चाहिए, मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देनी चाहिए, पर ये पार्टी को फिलहाल, जब वह केन्द्र में पूरी ताकत से सत्ता में है, तथा अन्य राज्यों में इसकी सरकार बनती चली जा रही हैं, इस पार्टी में निरंकुशता कूट-कूट कर भरती जा रही है। निरंकुशता का आलम यह है कि जहां पत्रकार, इन्हें आइना दिखाने की स्थिति में नहीं हैं, वैसी जगहों पर इनके ही कार्यकर्ता जब इनके बड़े नेताओं को कुछ आइना दिखाने की कोशिश करते है। ये प्रथम दृष्टया उन्हें पार्टी से ही निकाल देते है, और इससे भी बात नहीं बनी तो ये उस पर झूठे मुकदमे ठोक देते हैं, जिससे उस व्यक्ति के मुख से हाय निकलते देर नहीं लगती, वह यहीं सोच कर दम तोड़ देता है कि जिस पार्टी को उसने पूरा जिंदगी सौंप दिया, वहीं पार्टी उसकी जिंदगी ही समाप्त करने में लग गई और ऐसा होने का मूल कारण, भाजपा का अपने लक्ष्य से भटकना तथा पूर्णतः धन इकट्ठे करना एवं एकमेव येन-केन-प्रकारेन सत्ता में रहने की प्रवृति का जन्म ले लेना हैं।
सच है, पूर्णतः सत्य।।
यही तो चल रहा है..और यदि समय रहते प्रधानसेवक जी नहीं चेते..तो अब भारत पराजय की शुरआत उनके कुछ कठमुल्लाओं ने कर दी है..
असत्यम् किम्य जयेत..।।