अपनी बात

सरयू राय ने जनता दल यू ज्वाइन कर अपने राजनीतिक कैरियर पर कुल्हाड़ी मारी, अब चाहकर भी जमशेदपुर पूर्व या पश्चिम से जीत नहीं पायेंगे, नीतीश की पार्टी का झारखण्ड में नहीं हैं कोई जनाधार

सरयू राय ने जनता दल क्या ज्वाइन किया, राजनीतिक पंडितों का दल अपने-अपने ढंग से अपना विचार प्रकट कर रहा है, कोई कह रहा है कि इससे सरयू राय मजबूत हुए हैं, तो कोई कह रहा है कि इससे नीतीश की पार्टी मजबूत हुई है। लेकिन सच्चाई यह है कि जिस पार्टी का इस राज्य में कोई जनाधार ही नहीं हैं, उस पार्टी को ज्वाइन कर लेने से कोई नेता मजबूत कैसे हो सकता है? या व्यक्ति विशेष के ज्वाइन सिर्फ कर लेने से कोई पार्टी कैसे मजबूत हो सकती है?

इसमें कोई दो मत नहीं कि सरयू राय की एक अपनी अलग पहचान है। उनका अपना व्यक्तित्व है। वे भ्रष्टाचार पर हमेशा से मुखर रहे हैं। चाहे बिहार हो या झारखण्ड, उन्होंने अपनी पकड़ मजबूत रखी हैं। लेकिन ये भी सच्चाई है कि व्यक्तित्व कैसा भी हो, वक्त ही तय करता है कि कौन व्यक्ति शिखर पर होगा और कौन व्यक्ति शिखरविहीन होगा और इसमें उस व्यक्ति का बहुत बड़ा रोल होता है। व्यक्ति का एक निर्णय उसे गर्त से शिखर और शिखर से गर्त तक ले जाता है।

सरयू राय ने झारखण्ड में भले ही अपनी एक अलग पार्टी बनाई हो और उसके बैनर तले लोकसभा के चुनाव भी लड़े हो। लेकिन सच्चाई यही है कि उनका शरीर और आत्मा आज भी संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) से जुड़ा हैं। वे आज भी भारतीय जनता पार्टी के ज्यादा निकट है। उनके चाहनेवाले ने कई कोशिश की कि वे फिर से भाजपा में आ जाये, उसके प्रयास भी हुए। लेकिन ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की इन पर भृकुटि इतनी तनी हुई हैं कि शीर्ष स्तर के नेता भी सरयू राय को भाजपा में लेने से बचते रहे।

रघुवर दास का सरयू राय पर भृकुटि तानने के भी कारण है, जब रघुवर दास मुख्यमंत्री थे, तब सरयू राय अपने स्वाभावानुसार उनकी गलतियों पर हमेशा टोकते रहे। लेकिन रघुवर दास को इस बात का हमेशा घमंड रहा कि शीर्ष नेता उनके ही इशारों पर नाचेंगे, क्योंकि उनकी जाति और शीर्षस्तर के नेताओं की जाति एक ही हैं। ऐसे भी केन्द्र के शीर्षस्थ नेताओं ने कभी भी रघुवर की बात काटने की कोशिश नहीं की, चाहे झारखण्ड की राजनीतिक घटनाक्रम हो या विकासात्मक कार्य से संबंधित बातें हो या विधानसभा में टिकट देने की।

जब 2019 के विधानसभा चुनाव सिर पर थे, तब सरयू राय जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा के टिकट पर लड़ने को प्रयासरत थे। लेकिन केन्द्र के शीर्षस्थ नेताओं ने रघुवर दास के इशारे पर उनका टिकट काट दिया और यही से रघुवर दास के हार की कथा लिख दी गई। जमशेदपुर पूर्व से लड़ रहे रघुवर दास के खिलाफ सरयू राय ने बिगुल फूंक दी, जो सरयू जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ने का मन बना रहे थे।

उन्होंने जमशेदपुर पूर्व से लड़ने का प्लान बना लिया और इधर जमशेदपुर पूर्व की जनता ने भी इन्हें हाथों-हाथ लिया। इन्हें अपना नायक तो रघुवर दास को मुख्यमंत्री रहने के बावजूद अपना खलनायक बना लिया और परिणाम यह हुआ कि सरयू राय ने रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्व विधानसभा सीट पर धूल चटा दी।

राजनीतिक पंडित तो यह भी कहते हैं (सच्चाई भी यही है) कि अगर रघुवर दास ने सरयू राय को उस वक्त जमशेदपुर पश्चिम से टिकट दे दिया होता तो सरयू राय चुनाव भी नहीं जीत पाते, लेकिन रघुवर दास ने अपनी ही हरकतों से सरयू राय को नायक बना दिया। ठीक इसी प्रकार की गलती अब सरयू राय ने नीतीश कुमार की पार्टी में खुद को शामिल करके कर दी।

कभी समय था कि नीतीश कुमार झारखण्ड में बतौर राजनीतिक हीरो के रुप में याद किये जाते थे। यहां के कुर्मी समुदाय के लोग उनमें अपना हीरो देखते थे। लेकिन सुदेश महतो, जगरनाथ महतो, मथुरा महतो आदि के राजनीति में उभार होने के बाद नीतीश कुमार की लोकप्रियता धीमी पड़ती चली गई। अब तो कुर्मियों का एक और नेता यहां पैदा ले लिया है जो भाजपा और आजसू के लिए सिरदर्द बन चुका है। ऐसे में नीतीश कुमार को कौन पूछे?

नीतीश कुमार ने स्वयं भी अपनी छवि खराब कर रखी हैं। लोग उन्हें कुर्सी कुमार तो पलटू राम से भी पुकारने लगे हैं, क्योंकि वे कब किसके साथ पलटी मार का राजनीतिक गठबंधन कर लेंगे, खुद उन्हें भी नहीं पता। ऐसे में सरयू राय की राजनीतिक छवि क्या होगी? सरयू राय खुद समझ लें। सरयू राय ने जो राजनीति में अपनी बेहतर तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की छवि बनाई थी। वो नीतीश कुमार के साथ चले जाने पर उस छवि में ब्रेक लगा है।

सरयू राय के निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में लड़ने या अपनी पार्टी से अकेले लड़ने पर ये संभावना भी थी कि झामुमो का उन्हें समर्थन मिलता, लेकिन अब तो झामुमो भी उनसे दूरियां बनायेंगी, क्योंकि जनता दल यूनाइटेड राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का एक घटक है। ऐसे में भाजपा का जो मित्र वो झामुमो का राजनीतिक दुश्मन ही होगा, जो जगजाहिर है। 

चाहे वे माने या न माने। ऐसे भी जो लोग उनको अपना नेता मानते थे। वे भी जदयू की ओर जाने के कारण उनसे दूर भागेंगे। मतलब जो जनाधार सरयू राय का था, उसके भी खिसकने के एक कारण खुद वे बन गये। कुल मिलाकर विद्रोही24 का मानना है कि सरयू राय अब जमशेदपुर पूर्व या जमशेदपुर पश्चिम से कही से भी लड़ें। इस बार झारखण्ड विधानसभा में उनके पहुंचने की संभावना क्षीण हो चुकी है।