अपनी बात

भाजपाइयों याद रखों, राष्ट्रीय ध्वज केवल तीन रंगों का सम्मिश्रण नहीं होता, बल्कि उसमें अशोक चक्र भी होने चाहिए, जब भी तिरंगा यात्रा निकालें, तो इसका ध्यान आप अवश्य रखें

अगर आप भारतीय है। दिल से भारतीय है, तब आप जैसे ही तिरंगे की कल्पना करते हैं। तो उस तिरंगे में आप क्या-क्या देखते हैं। यही न, तीन रंगों केसरिया, सफेद और हरा रंग से बना एक ध्वज, जिसके सफेद रंग के बीचों-बीच अशोक चक्र हो। लेकिन भाजपावालों के लिए हाथों में लेकर चलनेवाला तिरंगा, ध्वजोत्तोलन करनेवाला तिरंगा का प्रकार कुछ और तथा यात्रा निकालने के लिए कुछ और होता है।

कल रांची के चुटिया में भाजपावालों ने तिरंगा यात्रा निकाली थी। जिस तिरंगा यात्रा में समाज के प्रबुद्ध लोग तो शामिल थे ही, उसमें शामिल थे केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ भी। इस तिरंगा यात्रा को कवर करने तथा उसका छाया चित्र लेने के लिए रांची से प्रकाशित होनेवाली सारे अखबारों की टीम मौजूद थी। इन सब ने इस तिरंगा यात्रा को कवर भी किया और उसे अपने अखबारों में जगह भी दिया।

लेकिन क्या वास्तव में तिरंगा यात्रा इसको कहेंगे, क्योंकि कुछ के हाथों में राष्ट्रीय ध्वज जैसा तिरंगा दिखा। लेकिन कुछ लोगों के हाथों में एक तीन रंगों का तिरंगा जैसा कुछ दिखा, जिसमें केसरिया, सफेद व हरा रंग तो दिखा, लेकिन उसमें अशोक चक्र नहीं दिखा, अब सवाल उठता है कि जब अशोक चक्र ही नहीं तो फिर भारत के करोड़ों दिलों में बसनेवाला यह तिरंगा कैसे हुआ और इस यात्रा को हम तिरंगा यात्रा कैसे कहेंगे?

जो भी व्यक्ति या दल या संगठन या संस्था जब इस प्रकार की यात्रा निकालते हैं, तो वे इस बात का ध्यान रखें कि तिरंगा का मतलब सिर्फ तीन रंग नहीं होता, बल्कि उसमें अशोक चक्र की भी काफी अहमियत होती है। अगर अशोक चक्र ही नहीं तो फिर वो राष्ट्रीय ध्वज कैसे हुआ और राष्ट्रीय ध्वज को भी ले चलने का एक तरीका होता है, उसकी अपनी एक गरिमा होती है। आप एक बड़े से थान को तिरंगा का रुप दे दें और उसे तिरंगा यात्रा का नाम दे दें, हमें नहीं लगता कि यह किसी भी प्रकार से उचित है। अच्छा रहता, लोग रहते और सभी के हाथों में पूर्ण रुप में राष्ट्रीय ध्वज होता और लोग उसे हाथों में लेकर वंदे मातरम्, भारत माता की जय, जय हिन्द का नारा लगाते।