अपनी बात

कार्यकर्ताओं में बढ़ते आक्रोश ने भाजपा नेताओं की बेचैनी बढ़ाई, नेता प्रतिपक्ष के लायक भी सीट विधानसभा में पा सकें, इसकी तैयारी शुरु, मीडिया से मिल चम्पाई-लोबिन का शिगुफा छोड़ा

दिन-प्रतिदिन पूरे प्रदेश में समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं के अंदर अपने प्रदेशस्तरीय नेताओं के प्रति बढ़ते आक्रोश से रांची से लेकर दिल्ली तक के भाजपा के शीर्षस्थ नेता अंदर से हिल चुके हैं। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करें कि सब कुछ पटरी पर आ जाये। इधर अभी भी भाजपा के कई मोर्चाओं में फेरबदल जारी कर मामले को शांत करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन भाजपा के लिए स्थितियां प्रतिकूल है।

इधर भाजपा ने अपने अंदर चल रहे भाजपा कार्यकर्ताओं के उठा-पटक को शांत करने के लिए एक नया शिगूफा छोड़ा है कि जल्द ही झामुमो से खार खाये लोबिन हेम्ब्रम और वर्तमान में हेमन्त सरकार मंत्रिमंडल में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके चम्पाई सोरन जल्द ही झामुमो छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर सकते हैं।

इस शिगूफे को छुड़वाने में भाजपा के कई दिग्गज और वो मीडिया जो चाहते है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार पूर्ण बहुमत से आये, उन मीडिया ने दिलचस्पी ली है और अपने अखबारों में इसे प्रमुखता से छापा है, ताकि हेमन्त सोरेन की नींद उड़ जाये और उनका ध्यान बंट जाये। इस पूरे प्रकरण पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि चुनाव के वक्त पार्टी छोड़कर आना और जाना कोई नई बात नहीं।

ऐसे भी जो झामुमो छोड़कर जायेंगे, उससे झामुमो का कोई नुकसान नहीं, बल्कि उससे भी ज्यादा नुकसान भाजपा का ही होगा, क्योंकि तब इस बात को और ज्यादा बल मिलेगा कि भाजपा के पास ऐसे नेताओं/कार्यकर्ताओं का अभाव है, जो भाजपा को राज्य में अपने नेताओं के बल पर भाजपा को बहुमत दिला दें।

राजनीतिक पंडित कहते है कि झामुमो को वोट देनेवाला एक अपना वर्ग है। वो न तो चम्पाई सोरेन को देखता है और न ही लोबिन हेम्ब्रम को। वो सिर्फ देखता है कि उनके नेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमन्त सोरेन का क्या आदेश है। बस उस आदेश को देखकर वोट देने चला जाता है।

राजनीतिक पंडित कहते है कि उसके अनेक उदाहरण है। 2019 के विधानसभा चुनाव के पूर्व झामुमो विधायक कुणाल षाड़ंगी ने बहरागोड़ा में पलटी मारी और भाजपा की टिकट पर लड़ गये। नतीजा क्या हुआ, वे चुनाव हार गये, क्योंकि जनता ने कुणाल षाड़ंगी को नहीं, बल्कि 2019 में भी झामुमो को ही चुना।

कभी हेमलाल मुर्मू, अर्जुन मुंडा के कहने पर भाजपा में चले गये। नतीजा क्या हुआ। हारते चले गये। अंत में वे फिर झामुमो में लौटे। कभी सुखदेव भगत, कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में गये। नतीजा क्या हुआ, चुनाव हार गये। अंत में फिर वे कांग्रेस का दामन थामे और आज लोकसभा में हैं।

झारखण्ड की जनता की खासियत रही हैं कि वो मंत्री तो दूर, मुख्यमंत्री को भी हराने में तनिक देर नहीं करती। भाजपा को खुद अपने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का चेहरा देख लेना चाहिए। जिन्हें निर्दलीय प्रत्याशी सरयू राय ने बिना किसी लाग-लपेट के जमशेदपुर पूर्व विधानसभा से धूल चटा दिया। आखिर ये सब क्या था। ये झारखण्ड की जनता की बुद्धिमता का परिणाम था। वहां की जनता ने भाजपा के प्रदेश से लेकर दिल्ली तक के नेताओं को यह मैसेज दिया कि आपके लिए रघुवर महान हो सकते हैं, हमारे लिए तो वो विधायक के लायक भी नहीं।

राजनीतिक पंडित कहते है कि भाजपा की स्थिति बहुत ही खराब है। उसके कार्यकर्ता कब उससे दूर चले गये। भाजपा के रांची से दिल्ली तक के शीर्षस्थ नेताओं को पता ही नहीं। ये अभी ख्याली पुलाव पका रहे हैं। इन्हें लग रहा है कि लोकसभा में आठ सीटें जीत ली हैं तो उनका विधानसभा चुनाव में पलड़ा भारी है। जबकि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में आकाश जमीन का अंतर है।

राजनीतिक पंडित कहते है कि यह विधानसभा का चुनाव है। हेमन्त सोरेन की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। उलटे उनकी लोकप्रियता में भारी बढ़ोत्तरी हुई। जब झारखण्ड हाई कोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत पर मुहर लगा दी। आज भी उनके द्वारा शुरु की गई कई योजनाओं ने भाजपा की घिग्घी बंद कर दी है।

ओल्ड पेंशन स्कीम उन्हीं में से एक है। झारखण्ड मुख्यमंत्री मईंया सम्मान योजना की जितनी भाजपावाले खिल्ली उड़ाये पर इसकी महिलाओं के बीच लोकप्रियता ने भाजपा की गिल्लियां उड़ा दी है। शायद इन गिल्लियों को फिर से विकेट पर रखने के लिए, भाजपाईयों ने शिगूफा छुड़वाया है कि लोबिन हेम्ब्रम और चम्पाई सोरेन भाजपा ज्वाइन करेंगे और भाजपा समर्थक अखबार ने उसे प्रमुखता से लिया है।

लेकिन सच्चाई यही है कि अगर चम्पाई सोरेन भाजपा ज्वाइन करेंगे तो वे अपने अब तक के किये कराये राजनीतिक जीवन पर क्या पोतेंगे, वे खुद समझ लें, क्योंकि फिर जनता के सामने उनकी वो इज्जत नहीं रह पायेंगी, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। रही बात, हेमन्त सोरेन की तो उनका दबदबा आज भी कायम है।

आज ही कई भाजपा के कार्यकर्ताओं ने विद्रोही24 को बताया कि वे 20 सालों से भाजपा का झोला ढो रहे हैं। वे जानते है कि वे विधायक या सांसद नहीं बन पायेंगे। लेकिन एक सम्मान जो मिलता था, भाजपा से। वो अब नहीं के बराबर है। अब भाजपा में पैसेवालों, यूनिवर्सिटी में केयर-टेकर का काम संभालनेवालों, बिल्डरों, ढुलू महतो जैसे गरीबों का सुख-चैन लूटनेवालों को इज्जत मिलती है।

ऐसे में वे सोचते है कि क्यों न झामुमो का दामन थामकर, झामुमो को ही मजबूत किया जाये। कई झामुमो के नेताओं से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। अगर इन भाजपा कार्यकर्ताओं को सीएम हेमन्त सोरेन से मिलने का मौका मिल गया तो निश्चय जानिये भाजपा रांची, हटिया, कांके आदि सीटों पर सदा के लिए अपना प्रभाव खो देगी। मतलब वहीं होगा, चौबे गये छब्बे बनने दूबे बनकर आये। बढ़िया से समझा दें कि चम्पाई या लोबिन इन्हें नेता प्रतिपक्ष तक का भी सीट नहीं दिलवा पायेंगे, उलटे जात भी गवायां और भात भी नहीं खाया, वाली लोकोक्ति भाजपा पर चरितार्थ हो जायेगी।