अपनी बात

भाजपा ने जैसे ही महत्वपूर्ण पद का लालच दिया, चम्पाई को हुई ज्ञान-प्राप्ति, सोशल साइट पर दुखड़ा रोया, सहानुभूति बटोरने की कोशिश, इधर प्रदेश भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं, भगदड़ यहां भी

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता व राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन को कुछ घंटे पहले ही ज्ञान की प्राप्ति हुई है। यह ज्ञान की प्राप्ति तब हुई, जब भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें महत्वपूर्ण पद देने का ग्रीन सिग्नल दिया। ऐसे भी जब कोई राष्ट्रीय पार्टी किसी क्षेत्रीय दलों के प्रमुख नेताओं को जब कोई लालच देती हैं, तो उसे ज्ञान की प्राप्ति होती ही हैं, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं है।

इधर भाजपा के इशारों पर नाचनेवाले कई मीडियाकर्मी तो अभी से उछलने-कूदने लगे है कि इसका असर झामुमो पर पड़ेगा, भाजपा अब कोल्हान में मजबूत हो जायेगी। लेकिन जो झारखण्ड की राजनीति को समझते-बूझते हैं, वो जानते है कि इसका कोई असर झामुमो के राजनीतिक हैसियत पर नहीं पड़ेगा। हां, इसका विपरीत असर भाजपा पर जरुर पड़ेगा, स्थिति लोकसभा चुनाव में गीता कोड़ा और सीता सोरेन वाली होगी।

भाजपा को यह भी जान लेना चाहिए कि जब शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन को अपनी पार्टी में मिला लेने से जब वे संताल में झामुमो का कुछ नहीं बिगाड़ सकें तो ऐसे हालात में कोल्हान में या अन्य जगहों पर झामुमो का क्या बिगाड़ लेंगे। उसमें भी तब जबकि कोल्हान और अन्य जगहों पर भाजपा कार्यकर्ता खुद ही अपने हाथों से भाजपा के आशियाने को धुआं-धुआं करने में लगे हैं।

झामुमो का कार्यकर्ता तो कल भी हेमन्त सोरेन के साथ था और आज भी हेमन्त सोरेन के साथ हैं। हां, भाजपा के कार्यकर्ता इन दिनों अपने प्रदेशस्तर के नेताओं से खासा नाराज है और हर जगह पर धरना-प्रदर्शन कर आनेवाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का कब्र खोजने का अभियान अभी से चला रखे हैं। ऐसे में अगर आप चम्पाई सोरेन या लोबिन हेम्ब्रम या अन्य झामुमो विधायकों को आप ले भी जाते हैं तो उससे हेमन्त सोरेन को क्या होनेवाला है, झामुमो गठबंधन आज भी उतनी ही मजबूत है, जितनी कल थी।

हां, चम्पाई सोरेन ने भाजपा का रामनामी चादर ओढ़ लेने के बाद अपनी सारी पूर्व की बटोरी सम्मान में खुद से जरुर आग लगा लिया। राज्य की जनता इतनी मूर्ख नहीं कि वो किसी नेता की बातों में आ जाये। आप कहते है कि पांच महीने आपने सरकार चलाई तो भाई ये पांच महीने की सरकार आपने अपने बलबूते पर सत्ता प्राप्त कर तो चलाई नहीं। जनता ने तो जनादेश हेमन्त सोरेन को दिया था।

वो तो जेल जाने के क्रम में हेमन्त सोरेन ने अपना उत्तराधिकारी बनाकर आपको सत्ता सौंपी। हेमन्त चाहते तो अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बना सकते थे। आप कुछ कर भी नहीं सकते थे। लेकिन फिर भी आपको उन्होंने सम्मान दिया। लेकिन आपने उस पद को जागीर समझ लिया और सदा की प्रापर्टी मान ली। ठीक उसी तरह जैसे कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया तो वे समझने लगे कि जदयू के शीर्षस्थ नेता वहीं हो गये। अब बिहार सिर्फ वहीं चलायेंगे।

लेकिन परिणाम क्या हुआ। हर व्यक्ति को अपनी औकात का पता होना चाहिए। उसे क्या मिलेगा, क्या मिलना है। उसका आकलन कर लेना चाहिए। अब तो भाजपा में आप चले गये। क्या भाजपा आपको झारखण्ड का मुख्यमंत्री बनायेगी? आप भाजपा में जा रहे हैं, कम से कम यही घोषणा आप अपने पक्ष में करवा लीजिये। ताकि पता चलें कि आपने जो पाला बदलने का इरादा किया है। वो ठीक हैं।

लेकिन आपको नहीं मालूम कि भाजपा एक ऐसी पार्टी है कि वहां जाकर कोई आगे बढ़ नहीं सका, ये तो मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की कृपा थी कि आप मुख्यमंत्री भी बन गये। देखना है कि भाजपा में जाकर आप क्या बनते हैं। अगर कुछ नहीं बनते तो आपकी ओर जगहंसाई होगी। फिर आप सोशल साइट का सहारा लेकर दुखड़ा रोयेंगे। राजनीतिक पंडित की मानें तो विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति गड्डमगड्ड हैं।

भाजपा येन केन प्रकारेन सत्ता प्राप्त करने के लिए दिमाग लगा रही हैं। वो कहते हैं न कि डूबते को तिनके का सहारा। वो ही दिमाग लगा रही हैं। उसे जो कोई कह दे रहा है। मान ले रही हैं। उसे पता ही नहीं कि न्यूटन की तीसरी गति क्या कहती है कि क्रिया तथा प्रतिक्रिया बराबर एवं विपरीत दिशा में होती है। अभी भाजपा में ही कई ऐसे नेता बैठे हैं, जो कब झामुमो से हरी सिग्नल मिले और चले जाये की स्थिति में हैं।

क्योंकि वे जान चुके है कि झारखण्ड में भाजपा का सत्ता में आना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। अब ऐसे में चम्पाई सोरेन भाजपा को कितना राजनीतिक काजू खिलायेंगे, ये चम्पाई जाने। फिलहाल चम्पाई सोरेन का राजनीतिक आंसू से सना इस पत्र को पढ़िये, और खुद आकलन करिये कि चम्पाई ने क्या अच्छा किया या क्या बुरा किया?

“जोहार साथियों,

आज समाचार देखने के बाद, आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं। किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे।

इसी बीच, 31 जनवरी को, एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद, इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन ( 3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी।

जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था। झारखंड का बच्चा- बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया। इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।

क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया।

पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता?

जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते।

कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था। बैठक के दौरान मुझ से इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था।

पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया।

मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि – “आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है।” इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं।

एक बात और, यह मेरा निजी संघर्ष है इसलिए इसमें पार्टी के किसी सदस्य को शामिल करने अथवा संगठन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जिस पार्टी को हमने अपने खून-पसीने से सींचा है, उसका नुकसान करने के बारे में तो कभी सोच भी नहीं सकते। लेकिन, हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि…

आपका,

चम्पाई सोरेन”

One thought on “भाजपा ने जैसे ही महत्वपूर्ण पद का लालच दिया, चम्पाई को हुई ज्ञान-प्राप्ति, सोशल साइट पर दुखड़ा रोया, सहानुभूति बटोरने की कोशिश, इधर प्रदेश भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं, भगदड़ यहां भी

  • Abhishek Shastri

    Champai Soren ne JMM chhodkar apni credibility khud se khatm kar liya hai. agar vo BJP join kar lete hain to unki sthiti bhi Geeta Koda aur Sita Soren wali honi hai. Jharkhand Tiger kehlane wale Champai Soren asal me awsarwadi, swarth ki rajneeti karne wale bhagode nikle.

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