भाजपा की बहुप्रचारित युवा आक्रोश रैली की निकली हवा, मात्र पांच से सात हजार की भीड़ ही दिखी, रैली में भीड़ कम देख, कुछ ने रांची में उत्पात मचाने की भरसक कोशिश की, पर नहीं हुए सफल
भाजपा की बहुप्रचारित युवा आक्रोश रैली टायं-टायं फिस्स हो गई है। सामान्य भाषा में कहें तो इनकी रैली की हवा निकल गई। मात्र पांच से सात हजार ही लोग जुटे। इतने कम लोग को देख भाजपा के ही कुछ कार्यकर्ताओं की आंखें फटी की फटी रह गई। कुछ ने उत्पात मचाना चाहा। जब बाबूलाल मरांडी भाषण दे रहे थे तो इनमें से कुछ मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री आवास की ओर जाने का ऐलान किया और उस जगह पहुंचे जहां बेरिकेटिंग की हुई थी।
बेरिकेटिंग के पास पहुंचते ही, इन मुट्ठी भर भाजपा कार्यकर्ताओं ने बेरिकेटिंग के पास लगे कंटीले तारों को हटाने व नष्ट करने का काम शुरु किया तथा देखते ही देखते पुलिस पर बोतलें और पत्थर फेंकने लगे। फिर क्या था। भाजपा कार्यकर्ताओं को कंटीले तारों को नष्ट करता देख, तथा उन्हें बोतलें व पत्थर फेंकता देख, पुलिसकर्मियों ने वाटर केनन का प्रयोग करना शुरु किया और उसके बाद आंसू गैस के गोले दागे, जिसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं के पसीने छूट गये।
आज की रैली को लेकर विद्रोही24 ने पूर्व में ही कह दिया था कि जिस प्रकार की भाजपा में स्थिति हैं। जैसा कि राज्य के सभी जिलों में भाजपा के कार्यकर्ता विद्रोह की स्थिति में हैं, उसको देखकर यही लगता है कि भाजपा का यह रैली अपने मकसद में पूरी तरह फेल रहेगा। वो आज सही हो गया। इस रैली को सफल बनाने के लिए भाजपा के सभी नेता कहने को दिन-रात एक किये हुए थे।
लेकिन अंदरखाने की बात यह हैं कि कोई सही मायनों में दिल से यह रैली सफल हो इसके लिए काम नहीं कर रहा था। जिसका नतीजा यह हुआ कि यह रैली पूरी तरह विफल रही। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपावाले चले थे हेमन्त को घेरने, लेकिन सच्चाई यही है कि ये खुद ही अपने ही लोगों से घिरते चले जा रहे हैं। वादा किया था कि एक लाख लोग इस रैली में शामिल होंगे, लेकिन पहुंचे मात्र पांच से सात हजार।
ऐसे में भाजपा झारखण्ड की विधानसभा चुनाव में कितनी सीटें जीतेंगी, इसका आप स्वयं आकलन कर सकते हैं। राजनीतिक पंडित कहते है कि जितने मंच पर भाजपा के नेता दिख रहे थे, अगर वे ही कम से कम से सौ-सौ लोग भी ले आते तो इनकी इज्जत बच जाती, लेकिन सभी एक दूसरे के मत्थे पर चढ़कर राजनीति करने की सोच बना रखी हैं, ऐसे में यह दृश्य दिखना ही था।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कहने को तो भाजपावाले कहेंगे कि प्रदेश की सरकार ने उनकी रैली में आ रहे लोगों को रांची आने से रोका, लेकिन सच्चाई यही है कि अगर इनकी बातों को भी सही मान लिया जाये तो भी अगर सारी गाड़ियां पहुंच जाती तो उसके बाद भी इस रैली में आनेवालों की संख्या तब बढ़कर सात से दस हजार ही हो पाती। मतलब इसके बावजूद भी भाजपा की रैली का जनाजा निकलना तय था, क्योंकि भाजपा के पास जो वीडियो उपलब्ध हैं, उन वीडियों में भी जिन गाड़ियों को रोके हुआ दिखाया गया है, उन गाड़ियों में बैठनेवाले लोगों की संख्या नगण्य है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा के लोगों को चिन्तन करना चाहिए कि आखिर क्या वजह रही कि इतने दिनों से बड़ी-बड़ी चिन्तन बैठक करने के बावजूद भी यह रैली कोई खास असर नहीं दिखा सकी। आखिर क्या वजह रही कि भाजपा से लोग अब दूरियां बनाने लगे। आखिर क्या वजह रही कि भाजपा के कार्यकर्ता ही इस रैली को असफल करने में लगे थे, जिसमें वे कामयाब भी हुए।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अपनी पीठ थपथपाने से अच्छा है कि भाजपा सच्चाई को स्वीकार करें कि उनकी आज की रैली किसी भी दृष्टिकोण से सफल नहीं रही। न तो वे अपनी बातों को सरकार और न ही जनता के बीच पहुंचाने में सफल रहे। अगर अपनी बातों को अपने ही तक पहुंचाना था तो ये सब लाखों की खर्च करने की क्या जरुरत। अपने घर के ही किसी कोने में स्वयं भाषण दे देते और स्वयं ही सुन लेते। इतनी अफरातफरी की क्या जरुरत थी।
भाजपा की आज की रैली में एक कट्टर भाजपा समर्थक अपने सोशल साइट पर क्या लिखा, जरा उसे देखिये, आपको सब समझ में आ जायेगा … “डर उतना नहीं है, जितना दिखाया गया… कंटीले तार के फोटो और डर के मार्केटिंग के बीच भाजपा झारखण्ड की आक्रोश रैली एक औसत दर्जे की रैली है।
एक लाख का दावा करने वाली पार्टी के इस कार्यक्रम में मैदान में अभी बमुश्किल 10 हजार लोग जुटे हैं, लेकिन लोगों का पैदल आना चालू है। नेताओं की माने तो आधे से अधिक लोगों को जिले के बाहर रोक दिया गया है। मंच पर जरूरत से अधिक भीड़ भी कुप्रबंधन की कहानी कह रही है। कार्यकर्ताओं के लिए एकदिनी इवेंट और सोशल मीडिया के लिए फोटो कलेक्शन का अच्छा प्रोग्राम है।
बड़े नेता (जिन्हें मंच में जगह नहीं मिली) अपनी अपनी गाड़ियों में आराम करते दिख रहे हैं। कुल मिलाकर भाजपाइयों के दावे, उनके बड़बोलेपन के आगे हेमन्त सोरेन की सधी हुई रणनीति भारी पड़ती दिख रही है। अब लोगों का निकलना भी शुरू हो गया है। कुल मिलाकर इतनी तैयारी और प्लानिंग के बाद केवल हेमंत सोरेन को कोसने के कार्यक्रम करके अगर ये लोग सत्ता उखाड़ फेंकने का दावा करते है तो ये महज एक दिवास्वप्न है और कुछ नहीं। जय झारखंड।”