23 अगस्त की भाजपा की रैली को रांची के जिन-जिन अखबारों ने शानदार ढंग से भाजपा के समर्थन में खुद को पेश किया, उनकी गोद भाजपावालों ने 25 अगस्त को फुल पेज विज्ञापन से भर दी
23 अगस्त को भाजपा की ओर से रांची के मोराबादी मैदान में युवा आक्रोश रैली थी। जो पूरी तरह से विफल रही। भाजपा ने घोषणा की थी कि इस रैली में पूरे प्रदेश से एक लाख युवा शामिल होंगे। लेकिन सच्चाई यही थी कि इस रैली में पांच से सात हजार लोग ही शामिल हुए, जिसमें युवाओं की संख्या नदारद थी। फिर भी रांची से प्रकाशित होनेवाले भाजपा समर्थित प्रमुख अखबारों ने इनके समाचारों को इस प्रकार से आम जनता के सामने पेश किया। जैसे लगा कि यह रैली सचमुच अपने उद्देश्यों में सफल रही।
भाजपा समर्थित अखबारों के इस उदारता को देख भाजपा के प्रदेश कार्यालय में बैठनेवाले मूर्धन्य नेताओं ने भी दिल खोलकर इन अखबारों पर विज्ञापन के माध्यम से धन लूटाएं और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। रांची से प्रकाशित प्रभात खबर, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान को प्रथम पृष्ठ पर फुल पेज का विज्ञापन 25 अगस्त को दिया गया।
जिसको इन अखबारों ने भाजपा के प्रदेश कार्यालय में बैठनेवाले मूर्धन्य नेताओं के प्रति हृदयतल से आभार व्यक्त करते हुए अपने-अपने अखबारों में जगह दी। 25 अगस्त को छपे इन विज्ञापनों ने झारखण्ड की जनता को एक संदेश भी दे दिया कि अब चुनाव जीतने के लिए अखबारों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए, उन्हें अपने इशारों पर नचाने के लिए बड़े-बड़े दल कौन-कौन से उपाय निकालेंगे।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो बड़े-बड़े अखबारों को अपने इशारों पर नचाने का सर्वोत्कृष्ट उपाय है – विज्ञापन के माध्यम से उन्हें अपनी ओर खींचना। जिसमें फिलहाल भाजपा आगे दिख रही है। लेकिन राजनीतिक पंडित यह भी कहते हैं कि जिस प्रकार से विज्ञापन के लालच में आकर पत्रकारिता हो रही हैं। इसका आभास देश के अन्य राज्यों की जनता को हो या न हो।
लेकिन झारखण्ड की जनता को इसका ऐहसास कब का हो चुका हैं। अगर इसका ऐहसास नहीं होता तो 2019 में हेमन्त सोरेन की सरकार सत्ता में नहीं आती, बल्कि रघुवर दास फिर से मुख्यमंत्री बन जाते। पर झारखण्ड की जनता ने अखबारों को दूर से ही प्रणाम किया और अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए रघुवर से खुद को किनारा कर हेमन्त को चुन लिया।
राजनीतिक पंडित कहते है कि यह वो समय था, जब हेमन्त सोरेन नेता विरोधी दल होने के बावजूद भी अखबारों में नहीं दिखते थे, न ही अखबारों में उनके बयान दिखाई पड़ते थे, जबकि दूसरी ओर भाजपा के नेताओं के बयानों से अखबारें पटी होती थी। इसलिए झारखण्ड में 2024 के विधानसभा चुनाव में भी विज्ञापन का झंडा बुलंद होगा, इसी विज्ञापन के आधार पर या अखबारों तथा यहा काम करनेवाले मठाधीशों/पत्रकारों को मुंहमांगा बख्शीश देकर फिर से सत्ता हासिल कर लेने का जो दिवास्वप्न जो दल देख रहे हैं, उन्हें इस बार भी निराशा हाथ लगेगी। ये गांठ बांध कर रख लें, तो ज्यादा बेहतर होगा।