अपनी बात

2024 के विधानसभा चुनाव में डूबती भाजपा को चम्पाई सोरेन जैसे तिनके का सहारा, इधर भाजपा कार्यकर्ताओं ने उठाई अंगूली, कहा अपने यहां नेताओं की कमी कि नेता बाहर से आयात किये जा रहे हैं

भाजपा आज बहुत खुश है। भाजपा को थोड़ा खुश होने का आज अधिकार भी है। यह खुशी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के बहुत पुराने नेता चम्पाई सोरेन ने उन्हें दिया है। आज धुर्वा के मैदान में भाजपा द्वारा बनाये गये मंच पर चम्पाई सोरेन के साथ भाजपा के राष्ट्रीय दर्जे व प्रदेशस्तर के मध्यम दर्जे के नेता खुब खुश हो रहे थे। खुशियां ऐसी थी कि वे फूले नहीं समा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे 2024 का विधानसभा चुनाव जीत लिये हो।

नीचे मंच पर चम्पाई सोरेन के समर्थक भी मौजूद थे। इन चम्पाई सोरेन के समर्थकों के बीच में विद्रोही24 भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं व सरायकेला के समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं को ढूंढने का प्रयास किया, पर अफसोस की मंच पर भाजपा के मध्यम दर्जे के राष्ट्रीय नेता तो मौजूद थे, लेकिन भाजपा का एक भी कार्यकर्ता नीचे मौजूद नहीं था।

विद्रोही24 ने जब इसके कारण का जांच पड़ताल करना शुरु किया तो पता चला कि जिस खुशी में भाजपा के मध्यम दर्जें के नेता पागल हो रहे हैं, इन नेताओं को सबक सिखाने के लिए भाजपा के कार्यकर्ता भी अपना लंगोट कस रहे हैं। आज ही की बात है, जमशेदपुर के विभिन्न समाचार पत्रों में एक खबर छपी है। जमशेदपुर के ही सांसद के विधानसभास्तरीय सांसद प्रतिनिधि चंद्रशेखर मिश्र का बयान है।

वे कहते है कि झारखण्ड प्रदेश में भाजपा नेताओं की कमी है क्या? यह बयान उन्होंने अपने फेसबुक एकाउंट पर भी अपलोड किया है। इसके बाद इन्हीं के फेसबुक एकांउट पर कई भाजपा कार्यकर्ताओं ने कमेंट्स भी किये हैं। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो कटाक्ष भी किया है वो भी यह लिखकर कि भाजपा के बड़े नेताओं को अपने ही नेताओं पर अब भरोसा नहीं रहा। इसलिए वे विपक्षी के दिग्गजों को अपने यहां आयात कर रहे हैं। चंद्रशेखर मिश्र की यह पोस्ट भाजपा के स्थानीय नेताओं की नींद उड़ा दी है।

जमशेदपुर की ही एक तेजतर्रार पत्रकार कहती है कि पांच साल पहले झामुमो से एक नेता भाजपा में आये थे। वे सरायकेला से भाजपा से लड़ने की तैयारी भी कर रहे थे। नाम हैं- रमेश हांसदा। कभी वे पूर्वी सिंहभूम से झामुमो के जिलाध्यक्ष भी थे। वे शिबू सोरेन के करीबी भी थे। अब चूंकि चम्पाई सोरेन ने पाला बदला है तो निश्चय है कि उनके लिए अब भाजपा में टिकट के लिए दरवाजे बंद हो गये। ऐसे में वे कुछ न कुछ करेंगे ही, नया रास्ता ढुंढेंगे ही। इसलिए नुकसान तो भाजपा का ही होगा।

चम्पाई सोरेन को अपने पार्टी में शामिल कर भाजपा ने एक नया आफत मोल लिया

हाल ही में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता रह चुके कुणाल षाड़ंगी ने भाजपा को बाय-बाय कर दिया है तो आपको क्या लगता है कि भाजपा में सब कुछ ठीक-ठाक है। नुकसान भाजपा को ही हैं। हाल में झारखण्ड मुख्यमंत्री मंईंयां सम्मान योजना को लेकर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन यहां आये थे, जिसमें भाजपा के बास्को बेसरा खुब चाव से उसमें भाग लिये। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से मिले। खुब बातचीत भी की। जो यहां चर्चा का विषय भी बना रहा। मतलब, क्या लगता है कि भाजपा मे चम्पाई सोरेन चले गये तो भाजपा जीत ही जायेगी। अरे भाजपा के लिए एक बहुत बड़ी आफत है, जो भाजपावालों ने खुद ही ले ली।

जमशेदपुर के एक वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता ने विद्रोही24 को बताया कि चम्पाई सोरेन के भाजपा ज्वाइन करने से झामुमो को कोई नुकसान नहीं होगा। दरअसल उसे फायदा ही हो गया। ऐसे भी पिछले दो-तीन चुनाव को देख लिया जाये, तो चम्पाई बड़ी मुश्किल से वहां से चुनाव जीते हैं। इसलिए इस बार भी चुनाव जीत ही जायेंगे, कहना मुश्किल है। भाजपा कार्यकर्ता ने कहा कि पिछली बार ही गणेश महाली भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत जाते। लेकिन चूंकि ये गणेश महाली का व्यवहार भी कुछ भाजपा के दबंग सांसद ढुलू महतो की तरह है। इसलिए सरायकेला की जनता ने गणेश महाली की जगह चम्पाई सोरेन को जीता दिया। नहीं तो भाजपा अगर सही व्यक्ति को टिकट दे देती, तो चम्पाई सोरेन को हारने से कोई रोक नहीं सकता था।

भाजपा का यह नया राजनीतिक अभियान, उसी के लिए खतरे की घंटी

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जिस प्रकार की राजनीतिक अभियान भाजपा ने शुरु की है। वो उसके लिए ही खतरे की घंटी है। भाजपा कार्यकर्ता इस प्रकार की घटना से असहज हो रहे हैं। असहज तो पहले भी थे। जब भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने भाजपा के प्रदेश कार्यालय को धर्मशाला बना दिया और बाहर के नेताओं को बुलाकर सम्मान देना शुरु किया। नतीजा ये हुआ कि भाजपा के कार्यकर्ता अब बोलते कम और परिणाम भुगतवाने पर ज्यादा ध्यान देने लगे। 2019 का विधानसभा चुनाव परिणाम उसी की देन है।

पीएम मोदी के नाम पर लोकसभा की आठ सीट जीतनेवाली भाजपा को सता रहा हेमन्त सोरेन का डर

राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि पीएम मोदी के नाम पर लोकसभा की आठ सीट जीतनेवाली पार्टी को हेमन्त सोरेन का इतना डर सता रहा है कि वे डूबते को तिनके का सहारा वाली लोकोक्ति अपना रहे हैं। यहां डूबने में भाजपा और तिनके के रुप में चम्पाई सोरेन को आराम से रख सकते हैं। राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते है कि भाजपा को और भी झामुमो से नेता चाहिए तो उसे उन्हें ले लेना चाहिए, ताकि झामुमो के अन्य पुराने कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने का सौभाग्य मिल जाये और वे फिर से 2024 में विधायक बनकर आ जाये, क्योंकि भाजपा के जो लूर-लक्षण हैं, वे ठीक नहीं हैं। उन्हें तो खुद पर विश्वास नहीं, तो वे जीतेंगे क्या?

इधर झामुमो के हौसले बुलंद है। झामुमो की राजनीतिक ताकत का इसी से अंदाजा लगा लीजिये कि चम्पाई सोरेन द्वारा इतनी नौटंकी करने के बाद भी झामुमो के किसी भी नेता (चाहे वो छोटा हो या बड़ा) ने उनके खिलाफ कोई गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं दिया है। जैसा कि भाजपा में होता है। अगर यही हाल भाजपा में होता, भाजपा का कोई नेता झामुमो में शामिल होता तो ये देखते उसके खिलाफ क्या-क्या बोलते? लेकिन झामुमो इसमें भी भाजपा से बाजी मार ले गई दिख रही है।