24 साल झारखण्ड बने हो गये, लेकिन भाजपा अपने कोख से एक अपना खांटी झारखण्डी भाजपाई नेता पैदा नहीं कर सकी, जो राज्य का अपने बल पर नेतृत्व कर सकें, जैसा कि योगी ने कर दिखाया
24 वर्ष हो गये झारखण्ड बने, लेकिन इन 24 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने राज्य से एक भी ऐसा खांटी नेता नहीं दे सकी, जिसे वो कह सकें कि यह उसका शत प्रतिशत विशुद्ध उसकी कोख से जन्मा नेता हैं, जिसने कभी पलटी नहीं मारी हैं, जो दूसरे दल से नहीं आया हैं, यह उसका अपना है, इस पर कोई अंगूली नहीं उठा सकता। जरा देखिये न, वर्तमान को, आपको सब पता लग जायेगा।
रघुवर दास, जो अभी ओड़िशा के गवर्नर है, पूर्व में राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहे हैं। लेकिन ये भी भाजपा के नहीं हैं और न भाजपा इन्हें अपना कह सकती है, ये छात्र युवा संघर्ष वाहिनी जय प्रकाश आंदोलन के समय के प्रोडक्ट है। ये वहीं नेता है, जब मुख्यमंत्री थे, तब इन्होंने अपने भाजपा कार्यकर्ताओं को कभी गले नहीं लगाया, उलटे उन्हें चिरकूट कहने से भी परहेज नहीं की।
अर्जुन मुंडा, ये भी भाजपा से नहीं हैं, बल्कि ये झामुमो प्रोडक्ट है, झामुमो से इन्होंने भाजपा में कदम रखा है। जब बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री थे। तब ये बाबूलाल मरांडी के खासमखास थे। बाबूलाल मरांडी की ही कृपा से ये मुख्यमंत्री बने और बाद में बाबूलाल मरांडी को ही इन्होंने ऐसा किक मारा कि बाबूलाल मरांडी पार्टी छोड़कर नई पार्टी बना ली। पार्टी का नाम था – झारखण्ड विकास मोर्चा।
बाबूलाल मरांडी, ये झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री थे। इनके शासन काल में झारखण्ड जितनी तेजी से विकास किया। उतना अब तक किसी के शासनकाल में नहीं देखा गया। ये जब पहली बार भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री बने थे, तब तो ये खांटी भाजपाई थे, लेकिन जैसे ही इन्होंने अलग पार्टी बनाई, इन्होंने भाजपा की ही खटिया खड़ी की। लेकिन संयोग हैं, आज ये फिर भाजपा में आ गये। प्रदेश अध्यक्ष हैं। अब ये भी शुद्ध भाजपाई नहीं रहे। क्योंकि इन पर भी झाविमो का ठप्पा है।
चम्पाई सोरेन, ये भी भाजपाई नहीं हैं। पूरा जीवन इनका झामुमो में बीता है। पांच महीने मुख्यमंत्री रहे। हमेशा हेमन्त सोरेन का नाम जपते थे। लेकिन जैसे ही हेमन्त सोरेन जेल से निकले। मुख्यमंत्री बनने का इरादा किया। इनके मुंह उसी दिन से फूल गये और भाजपा ज्वाइन कर ली। मतलब ये भी खांटी भाजपाई नहीं हैं।
मधु कोड़ा, ये भी कभी मुख्यमंत्री थे। शुरु में भाजपाई भी थे। जब भाजपा ने टिकट नहीं दिया। इंडिपेंडेंट लड़ गये। संयोग से हाड़ में हल्दी लग गई। इंडिपेंडेंट रहने के बावजूद मुख्यमंत्री बन गये। अपनी पत्नी को सांसद भी बनाया। कभी भाजपा इन्हें भ्रष्टाचार का प्रतीक के रुप में पेश करती थी। आज ये भी भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं। लेकिन इन्हें भी खांटी भाजपाई नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ये भी कही न कही, कई जगहों पर अपना दाल-रोटी चला चुके हैं।
यानी जिस पार्टी में वर्तमान में पांच-पांच पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके लोग आश्रय ले रहे हैं। उस पार्टी में कोई खांटी भाजपाई नहीं हैं। कहीं न कहीं, उन पर बाहरी या दल-बदल का ठप्पा जरुर है। जबकि भाजपा का संगठन बहुत पुराना नहीं तो कोई नया भी नहीं हैं। पूर्व में यही पार्टी जनसंघ के रुप में भी जानी जाती थी। कमाल है कि जिस पार्टी के पास राष्ट्रीय स्तर पर अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, आदित्य नाथ योगी जैसे खांटी भाजपा नेता हैं।
आज उस पार्टी में झारखण्ड से कोई भी भाजपा का खांटी नेता नहीं हैं। स्थिति तो ऐसी है कि इन नेताओं को सुनने के लिए इस राज्य में ही एक भीड़ तक नहीं जुटती। कभी विधानसभा चुनाव में ही भीड़ जुटाने के लिए इन्हीं पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों में से एक नेता को हीरोइन का आश्रय लेते विद्रोही24 ने देखा है। जब वो भाजपा में नहीं थे।
स्थिति तो ऐसी है कि वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष, प्रदेश अध्यक्ष तक दूसरे दलों से आये लोग हैं। कल तक जिस झामुमो नेता को अपने यहां बुलाकर भाजपा से लड़वाकर भाजपा विधायक बनवाया, सचेतक बनवाया। वो पार्टी छोड़कर बीच मझधार में कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा का हजारीबाग से चुनाव लड़ गया। ऐसी हालत हो गई है, भाजपा की।
जबकि इसी देश में कई राज्य ऐसे हैं, जहां के भाजपा के खांटी नेताओं ने राष्ट्रीय स्तर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। उन्हीं में से एक हैं, गुजरात से नरेन्द्र मोदी तो उत्तर प्रदेश से आदित्यनाथ योगी। दोनों खांटी संघी, दोनों खांटी भाजपाई। इन दोनों से कहिये कि संघ का प्रार्थना सुना दें। तो ये प्रार्थना भी सुना देंगे। लेकिन झारखण्ड के इन पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों जो आज स्वयं को भाजपाई प्रुव्ड करने में लगे हैं। जरा इनसे संघ प्रार्थना पूछ दीजिये, तो ये सभी बगले झांकने लगेंगे।
दुर्भाग्य भाजपा का है, यहां ऐसा नहीं कि भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता या संघनिष्ठ भाजपाई नहीं हैं, दरअसल उन्हें कभी मौका ही नहीं दिया गया और न ही वे इन चालाक लोगों के जैसे बढ़ने की कोशिश की। उन्हें जो दायित्व मिला, उसमें वे आगे बढ़ते गये। नहीं बढ़ने का मौका मिला तो जहां तक वे थे। उसी में संतुष्ट रह गये। जबकि चालाक लोगों ने अपने पास प्राप्त संसाधनों का सही इस्तेमाल किया और भाजपा तथा संघ के उन स्वार्थी तत्वों को अपने में मिलाने की कोशिश की तथा इसमें सफल भी रहे।
आज वे राज्यसभा जाकर आनन्द भी प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन फिर कह रहा हूं कि ऐसे लोगों कि इतनी भी ताकत नहीं कि युवा आक्रोश रैली के नाम पर पांच से सात हजार भीड़ भी जुटा सकें। पुलिस की लाठियां या आंसू गैस के गोलों का सामना भी कर सकें। अब ऐसे में, जहां ऐसे लोगों की पूछ हो, वो पार्टी किसी अन्य दल का क्या मुकाबला करेगी।
राजनीतिक पंडित तो ठीक ही कहते है कि एक ओर भाजपा की ओर से पांच-पांच पूर्व मुख्यमंत्री और दूसरी ओर दूसरे राज्य से एक पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री तथा एक असम के वर्तमान मुख्यमंत्री खड़े हैं, जबकि दूसरी ओर जो इनके खिलाफ तीर-धनुष लेकर खड़ा हैं यानी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन हैं। अकेले इनके दांत खट्टे कर दिये हैं। मतलब झारखण्ड में भाजपा की ओर से इतने महारथियों के बावजूद हेमन्त सोरेन का बाल बांका करने की भी हिम्मत इनमें नहीं हैं।
एक भाजपा के ही वर्तमान मुख्यमंत्री को तो देखा गया कि हेमन्त सोरेन से मुकाबला करने के लिए एक ऐसे व्यक्ति के घर चले गये, जो नौ महीनें तक जेल में रहा। जिसके चैनल पर खुद गृह मंत्रालय ने कड़ी टिप्पणी की है। खुद भाजपा के ही एक पूर्व मुख्यमंत्री को कहा जाय कि उस जेल गये व्यक्ति के घर जाये, तो वे नहीं जायेंगे, क्योंकि वे उसके खिलाफ कभी काफी मुखर भी रहें हैं, पत्राचार भी किये हैं। लेकिन भाजपा में ही कई ऐसे नेता हैं, जो आजकल उसकी जय-जयकार करने में लगे हैं। शायद घटियास्तर की राजनीति करना ही भाजपा के वर्तमान चरित्र में शामिल हो गया है। ऐसे में पांच पूर्व मुख्यमंत्री हो या सात, हेमन्त सोरेन और उनकी पार्टी को क्या फर्क पड़ता है। जनता की अदालत में तो वो आज भी मजबूती से खड़ा है। भला उसे किसी का क्या डर?