एक अनार (रांची विधानसभा) सौ बीमार (भाजपा से टिकटार्थी), दो नंबरी, जीजा-साला से लेकर खांटी संघनिष्ठ/भाजपाई कतार में, टिकट के लिए रांची-दिल्ली के नेताओं के द्वार तक पहुंचे टिकटार्थी
झारखण्ड विधानसभा का चुनाव निकट है। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा से जुड़ा हर दो नंबरी व्यक्ति, दलबदलू नेता/कार्यकर्ता, यहां तक की जीजा-साला भी, खांटी संघनिष्ठ व खांटी भाजपाई तक, जिसने सपने में भी किसी दूसरे दल के बारे में सोचा तक नहीं, सभी चाहते हैं कि उन्हें रांची विधानसभा से भाजपा का टिकट मिल जाये, क्योंकि ज्यादातर भाजपा से जुड़े टिकट की चाहत रखनेवाले टिकटार्थियों का मानना है कि रांची विधानसभा ही एक झारखण्ड में ऐसा सीट है कि जहां से कोई भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेगा।
उसके हाड़ में हल्दी लगना तय है, यानी विधानसभा पहुंचना उसका तय है। लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस बार ऐसा हो ही जायेगा, इसकी संभावना में अब पेंच थोड़ा बहुत लग चुका है। फिर भी भाजपा की टिकट के लिये रांची विधानसभा पर लंबी लाइन लग चुकी है। पिछले दिनों जब भाजपा के कार्यकर्ताओं से रायशुमारी ली जा रही थी। तो टिकट की चाहत रखनेवाले बहुत सारे लोगों ने अपने ढंग से मगजमारी शुरु की थी। किसी ने साउंड सिस्टम देकर किसी कार्यकर्ता को रिझाने की कोशिश की तो किसी को चुनरी और शॉल देकर रिझाने में ज्यादा दिमाग लगाया। अब ऐसा करनेवालों को इससे सफलता मिलेगी या नहीं, इसका जवाब भविष्य के गर्भ में हैं।
हालांकि इस विधानसभा का नेतृत्व लंबे समय से सीपी सिंह ने किया है। सीपी सिंह इसी विधानसभा सीट से जीतकर विधानसभाध्यक्ष भी बने, मंत्री भी बने, अपना रुतबा भी बढ़ाया। पिछली बार जैसे-तैसे चुनाव जीते। इस बार इनको टिकट मिलेगा, इसकी संभावना न के बराबर है, क्योंकि रायशुमारी में इस बार सीपी सिंह पिछड़ते हुए नजर आये।
कुछ लोगों का कहना है कि सीपी सिंह की उम्र हो गई। उन्हें खुद अब चुनाव लड़ने की इच्छा छोड़ देनी चाहिए और दूसरे को इसका मौका देना चाहिए। लेकिन राजनीति एक ऐसी विधा है, जो एक बार इसमें कूदा, वो चाहता है कि जब तक वो जिंदा रहे, इसका मधुर फल आजीवन खाता रहे। ऐसे में सीपी सिंह इस फल से वंचित क्यों रहे? इसलिए इस बार भी सीपी सिंह ने टिकट का दावा ठोक दिया है।
सूत्र बताते हैं कि रांची विधानसभा पर जीजा-साले की भी गिद्ध दृष्टि हैं। जीजा चाहता है कि वो खुद यहां से चुनाव लड़े और जब उनकी सरकार बने (हालांकि ये दिवास्वप्न के सिवा कुछ भी नहीं) तो वो इस राज्य का मुख्यमंत्री बन जाये और अगर मुख्यमंत्री नहीं बने तो कम से कम मंत्री तो जरुर ही बनें। इस जीजा की पहुंच अब रांची से दिल्ली तक हो गई है। इतनी पहुंच हो गई है कि वो किसी को टिकट दिलवा सकता हैं तो कटवा भी सकता है।
प्रदेश अध्यक्ष और संगठन मंत्री तो उसके इशारे पर चलते हैं। इसलिए अगर वो चुनाव लड़ने की ठान लेता हैं तो लोग उसे नजरंदाज भी नहीं कर सकते। लेकिन सूत्रों का कहना है कि जीजा चाहता है कि अगर उसे टिकट नहीं मिले तो कम से कम उसके साले को टिकट मिल जाये। साला भी बहुत प्रतिभाशाली है। बहुत कम ही समय में, वो रांची के विभिन्न इलाकों में कई अट्टालिकाओं को मालिक हो गया है और वो भाजपा कार्यकर्ताओं को कुछ चटाता भी रहता है, जिससे उसके संग कुछ भाजपा कार्यकर्ता जो खांटी नहीं हैं, चिपके रहते हैं।
सूत्र बताते हैं कि रांची विधानसभा से पूर्व राज्यसभा सांसद अजय मारु भी हाथ-पांव मार रहे हैं। वर्तमान केन्द्रीय मंत्री व रांची सांसद संजय सेठ उनके पीठ पर हाथ रखे हुए हैं। लेकिन उन्हें टिकट मिल ही जायेगा, इसकी संभावना कम दिखाई पड़ रही है। पूर्व डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय भी टिकट की लाइन में हैं। अपने व्यवहारों व कार्यकुशलता के कारण ये काफी लोकप्रिय भी है।
इसी प्रकार टिकट प्राप्त करने की इच्छा रखनेवालों में बाल मुकुन्द सहाय, राकेश भास्कर, प्रतुल नाथ शाहदेव, रमेश सिंह, सत्यनारायण सिंह, रमेश पुष्कर के नाम भी शामिल है। कुछ लोग इसमें मुनचुन राय का भी नाम शामिल कर रहे हैं। महिलाओं में आरती सिंह और उषा पांडेय का भी नाम आ रहे हैं। लेकिन इतना तय है कि रांची से किसी भी महिला को टिकट नहीं दिया जायेगा। जब भी मिलेगा तो पुरुष उम्मीदवार को ही टिकट मिलेगा।
विद्रोही24 को जो गोपनीय जानकारी मिली है। उस जानकारी में अब तक यही बात आई है कि रांची से इस बार किसी दलबदलू या किसी अन्य दल से आये व्यक्ति को टिकट नहीं मिलेगा और न ही रिश्तेदारी निभानेवालों को टिकट मिलेगा। इस बार केन्द्र और संघ से जुड़े लोगों ने निश्चय कर लिया है कि रांची विधानसभा से उनका उम्मीदवार वहीं होगा, जो खांटी भाजपाई होगा या खांटी संघनिष्ठ होगा।
अब अगर आप भाजपा को निकट से जानते है या संघ को नजदीक से जानते है, तो समझ जाइये कि इस बार रांची से किसे टिकट मिलेगा। हालांकि इस बार रायशुमारी में भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी अपनी बातें बड़ी जोरदार ढंग से रखी है। जिसके कारण रांची विधानसभा का सर्वमान्य हल निकाल पाना भाजपा नेताओं के लिए टेढ़ी खीर हैं, क्योंकि भाजपा में रांची विधानसभा सीट से टिकट पाने की इच्छा रखनेवालों में कई संघनिष्ठ व खांटी भाजपा कार्यकर्ता व नेता पंक्तिबद्ध है।
साथ ही जब इस बात की घोषणा होगी कि रांची से कौन चुनाव लड़ेगा तो कइयों को निराशा होगी, वे कई दिनों तक सो नहीं पायेंगे। शायद बीमार भी पड़ सकते हैं। इसलिए फिलहाल सभी को बेचैनी धरे हुए हैं और ये बेचैनी की बीमारी का इलाज किसी नेता अथवा पत्रकार के पास नहीं हैं, जो इन्हें ठीक कर दें। फिलहाल, जीजा-साला, दो नंबरी भाजपाई, दलबदलू भाजपाई, खांटी भाजपाई व संघनिष्ठ भाजपाई को पहचानिये और मजे लीजिये।