विधानसभा सभागार में आयोजित समयोचित परिसंवाद में गिने-चुने माननीयों ने भाग लिया
झारखण्ड विधानसभा विधायी शोध संदर्भ एवं प्रशिक्षण कोषांग द्वारा ‘सभा वेश्म में आए दिन बढ़ती अव्यवस्था की प्रवृत्ति के कारण एवं निदान’ विषयक परिसंवाद का आयोजन विधायक क्लब सभागार में आयोजित हुआ। विषय बहुत ही सारगर्भित तथा समयोचित था, पर उतना ही आश्चर्य यह रहा कि इस विषय में माननीयों ने कोई रुचि नहीं दिखाई, भाजपा के गिने-जुने विधायक तथा झारखण्ड विकास मोर्चा की ओर से मात्र एक विधायक प्रदीप यादव शामिल हुए, जिनके लिए ये परिसंवाद आयोजित था, उन माननीय श्रोताओं की ज्यादातर कुर्सियां खाली रहीं, जो दुर्भाग्य रहा।
आश्चर्य इस बात की थी कि माननीयों से ज्यादा भीड़ प्रेस दीर्घा में थी। स्वयं जिन्होंने आयोजन कराया था, यानी विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव कार्यक्रम पर विलम्ब से पहुंचे, जबकि सबसे पहले पहुंचनेवालों में झारखण्ड के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी थे, जो नियत समय पूर्वाह्ण 11.30 पर पहुंच चुके थे, उसके बाद धीरे-धीरे गिने-चुने लोग और बाद में स्पीकर दिनेश उरांव पहुंचे, तब जाकर कार्यक्रम आधे घंटे बाद प्रारंभ हुआ।
सर्वप्रथम भाषण देने का मौका मिला, झारखण्ड के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी को। उन्होंने अपने अनुभवो के आधार पर बताया कि जब आप किसी को बोलने नहीं देंगे तथा अपनी आलोचना सुनने की कोशिश नहीं करेंगे तथा हरदम बिरदावली सुनने की चेष्टा करेंगे तो स्थितियां तनावपूर्ण होंगी, सभावेश्म में वह घटनाएं घटेंगी जो आम तौर पर देखी जाती है, या जिसके लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
उन्होंने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा व राज्यसभा में ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो, इसके लिए एक कार्यक्रम करवाये थे, पर फिर वहीं चीज को देखने को मिला, जिसको लेकर उनकी चिंता थी। उन्होंने कहा कि जब आप सत्र छोटे रखेंगे तो लोगों को बोलने का मौका कैसे मिलेगा? और जब मौका ही नहीं मिलेगा तो सदन में घटनाएं घटेंगी आप रोक नहीं सकते।
उन्होंने यह भी कहा सदस्यों में उत्तेजना होना भी चाहिए, उन्होंने एक उदाहरण दिया कि भारत-चीन के दौरान जब सदन में जवाहर लाल नेहरु और डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बीच तनाव आये तब उन तनावों को आप देखिये, उस तनाव के बीच भी लोगों ने मर्यादाएं नही तोड़ी, बल्कि उसका जवाब मर्यादाओं के बीच रहकर दी, जो बताता है कि हमारी सोच और सदन की गरिमा कैसे बरकरार रखनी चाहिए। परिसंवाद में अपनी बात, पूर्व स्पीकर आलमगीर आलम और वर्तमान स्पीकर दिनेश उरांव ने भी रखी।
ये सही बात है जिनके लिए कार्यक्रम रखे गए उनकी उपस्थिति 1/4 भी नही पहुँच पाई आखिर क्यों ये समझने की जरूरत है