धर्म

रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम में धूमधाम से मना योगावतार लाहिड़ी महाशय का आविर्भाव दिवस, स्वामी अमरानन्द के भजनरूपी गंगा में गोता लगाते दिखे योगदा भक्त

रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम में आज योगावतार लाहिड़ी महाशय का आविर्भाव दिवस धूमधाम से मनाया गया। योगावतार लाहिड़ी महाशय के आविर्भाव दिवस को देखते हुए आज योगदा सत्संग सोसाइटी द्वारा एक विशेष ऑनलाइन सामूहिक ध्यान की भी व्यवस्था की गई थी। जिसमें पूरे भारतवर्ष के योगदा भक्तों ने इसमें स्वयं को जोड़कर सामूहिक ध्यान का लाभ उठाया।

इसके बाद योगदा सत्संग आश्रम में ही स्थित शिव मंदिर के पास वैदिक मंत्रों के साथ लाहिड़ी महाशय का जन्मोत्सव योगदा संन्यासियों के साथ मिलकर योगदा भक्तों ने मनाया और प्रसाद ग्रहण किये। इस अवसर पर स्वामी अमरानन्द ने भजन की एक ऐसी गंगा बहाई, जिसमें सभी लोगों ने गोता लगाकर स्वयं को धन्य करने का प्रयास किया।

ज्ञातव्य है कि कि योगदा सत्संग परंपरा के परमगुरुओं में से एक, योगावतार लाहिड़ी महाशय, हिमालय के महान अमर योगी महावतार बाबाजी के शिष्य थे। महावतार बाबाजी ने पूरे संसार से लगभग विलुप्त हो चुका क्रिया योग का प्राचीन विज्ञान लाहिड़ी महाशय को बताया था तथा इस क्रिया योग को सभी सच्चे साधकों में दीक्षा देने का निर्देश दिया।

लाहिड़ी महाशय के जीवन की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उन्होंने हिंदू, मुस्लिम, और ईसाई सभी धर्मों के आध्यात्मिक साधकों को क्रिया दीक्षा दी। वे एक गृहस्थ-योगी थे, जो अपने सभी पारिवारिक दायित्वों और सामाजिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए भी भक्ति और ध्यान का संतुलित तथा संयमित जीवन व्यतीत करते थे।

वे समाज के सांसारिक जीवन जी रहे हजारों पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बने।  उन्होंने समाज के पतित-दलितों के हृदयों मे आशा की नई किरण जगायी। स्वयं सर्वोच्च ब्राह्मण जाति के होते हुए भी उन्होंने क्रिया योग के विज्ञान का द्वार सभी के लिए खोला। लाहिड़ी महाशय के बाद क्रिया योग युक्तेश्वर गिरि के पास से होता हुआ, प्रेमावतार परमहंस योगानन्द जी के पास पहुंचा और फिर परमहंस योगानन्द जी ने क्रिया योग को जन-जन तक पहुंचा दिया।

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