भाजपा के मुंह पर कालिख ही क्यों न पुत जाये, भाजपा के कार्यकर्ता भाड़ में ही क्यों न चले जाये, यहां वही होगा जो हिमंता, बाबूलाल, दीपक, प्रदीप व कर्मवीर जैसे नेता चाहेंगे, मतलब भाजपा का दिया बुझना तय
भाजपा के मुंह पर कालिख ही क्यों न पुत जाये, भाजपा के कार्यकर्ता भाड़ में ही क्यों न चले जाये, यहां वहीं होगा जो हिमंता बिस्वा सरमा, बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश, प्रदीप वर्मा व कर्मवीर सिंह जैसे नेता चाहेंगे, मतलब हमें येन-केन-प्रकारेन झारखण्ड की सत्ता चाहिए, कोई शक? कोई शक नहीं। भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों को स्वीकार कर लेना चाहिए कि अटल बिहारी वाजपेयी मर चुके हैं।
लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से कोई राय विचार नहीं ली जाती। यहां वहीं होता है जो मोदी और शाह चाहते हैं और मोदी-शाह ने हिमंता और शिवराज को जिम्मेदारी दे दी हैं, तो ये जिम्मेदारी ये दोनों कैसे निभाते हैं, इसकी गारंटी इन्हें मिल चुकी है। इस गारंटी के तहत ये दोनों वे सारे काम कर रहे हैं, जिससे इन्हें लग रहा है कि अब भाजपा झारखण्ड में मजबूत हो गई। लेकिन सच्चाई क्या है?
सच्चाई दिखाने के लिए हम आपको लिये चलते हैं। 2019 में। 2019 में राज्य में मोदी-शाह प्रिय रघुवर की सरकार थी। उस वक्त जो भी केन्द्र के नेताओं को आइना दिखाता था। उसे केन्द्र सीधे बर्बाद करने में ही दिलचस्पी लेता था, क्योंकि उसे विश्वास हो चला था कि रघुवर दास झारखण्ड में काफी लोकप्रिय है। लेकिन रघुवर दास की लोकप्रियता कितनी थी, इसकी जानकारी सिर्फ विद्रोही24 को थी। विद्रोही24 लगातार ताल ठोककर उस वक्त कह रहा था कि भाजपा का इस बार झारखण्ड से कमान कटना तय है। लेकिन लोकसभा में उस वक्त 12 सीट पानेवाली भाजपा को इतना घमंड था कि पूछिये मत।
साथ ही उसे अपने धनबल पर भी बहुत घमंड था। अखबारों-चैनलों को मुंहमांगी रकम थमाई जाती थी। उन्हें बोला जाता था कि बोलो – हर-हर रघुवर, घर-घर रघुवर। सारे मीडिया एक (विद्रोही24) को छोड़कर सभी बोलते थे – हर-हर रघुवर। घर-घर रघुवर और कुछ अपने मन से हृदय में बोलते थे – भज मन रघुवर। क्योंकि रघुवर दास और केन्द्र की सरकार ने यहां के अखबारों और सारे चैनलों की गोद भराई कर दी थी। इस गोद भराई से प्रसन्न होकर सारे मीडिया हाउस के मालिक बोला करते थे, गीत गाते थे। कहते थे – घूंघट नहीं खोलूंगी, रघुवर तोरे आगे, उमर मोरी जानी, शरम मोहे लागे। घूंघट नहीं खोलूंगी, रघुवर तोरे आगे।
2019 के अखबारों को आप आज भी देखिये। आप ढूंढते रह जाओगे। उसमें उस वक्त के नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन का बयान तक नहीं दिखता। सारे अखबार रघुवर और मोदी तथा भाजपा के अन्य नेताओं के कार्यक्रमों व बयानों से भरे रहते थे। लेकिन उसका रिजल्ट क्या हुआ? झारखण्ड की जनता ने समझ लिया था कि सारी मीडिया हाउस मोदी-रघुवर-शाह व भाजपा के गुलाम बन चुके हैं। इसलिए इस बार सबक सिखाना चाहिए। सबक सिखा दिया। वो कहावत है न कि पंडितजी अपने तो गये ही, जजमान को भी साथ लेकर चल दिये।
रघुवर दास अपने तो गये ही। भाजपा को लेकर भी चल दिये। सरकार गई। मुख्यमंत्री का पद गया। अपमानित हुए सो अलग। उस वक्त रघुवर की इतनी चलती थी कि सरयू राय को उन्हीं के कहने पर जमशेदपुर पश्चिम से टिकट नहीं दिया गया। हार थककर सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्व से लड़ने का ऐलान किया और रघुवर दास बुरी तरह पराजित हो गये। अभी भी भाजपा के सारे लक्षण वहीं दिख रहे हैं। कहनेवाले तो आज भी कहते हैं कि अगर उस वक्त जमशेदपुर पश्चिम से सरयू राय को भाजपा टिकट दे भी देती तो वे जीत पाते, ये कहना मुश्किल था। लेकिन भाजपा के टिकट नहीं देने के कारण सरयू राय की जमशेदपुर पूर्व से जीत पक्की हो गई।
भाजपा के सारे नये-पुराने कार्यकर्ता भ्रष्टाचारी/दागी/बाहरी नेताओं को भाजपा में शामिल करने-कराने को लेकर अंदर ही अंदर नाराज है। इस बार सभी ने संकल्प कर लिया है कि इन सारे हिमंता बिस्वा सरमा, बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश, प्रदीप वर्मा, कर्मवीर सिंह जैसे लोगों की चौकड़ी को मटियामेट कर देना है। लेकिन मूर्ख भाजपाइयों को समझ नहीं आ रहा। उन्हें लग रहा कि ये दागी/बाहरी नेता ही उन्हें इस विधानसभा चुनाव रूपी भवसागर से पार करायेंगे। जबकि ये सारे दागी/बाहरी नेता जो अभी भाजपा की घूंघट वाली चुनरी ओढ़ने के लिए बेकरार हैं। कुछ तो शामिल हो चुके हैं। कुछ पंक्तिबद्ध हैं। ये दरअसल आउटडेटेड हैं। जनता इन्हें पहले ही नकार चुकी है। इनकी हार तय है। चाहे वो जिस पार्टी से लड़ें।
भाजपा का ही एक कार्यकर्ता नाम नहीं छापने की शर्त पर विद्रोही24 को बताता है कि जब मोदी जी झारखण्ड में इतने ही लोकप्रिय हैं और मोदी के कारण ही राज्य की जनता भाजपा को वोट देगी तो फिर कमलेश सिंह, हरिनारायण राय, ढुलू महतो जैसे नेताओं पर इन्हें इतना भरोसा क्यों हो रहा हैं? आखिर हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र के भाजपा नेताओं के भारी विरोध के बावजूद भी कमलेश को भाजपा नेताओं नें पार्टी में क्यों शामिल किया? वहां के कार्यकर्ता तो साफ कहते है कि कमलेश ने अपने कार्यकाल में कई भाजपा कार्यकर्ताओं को झूठे केस में फंसाकर जेल भिजवाया। ऐसे में इसके अंडर में रहकर भाजपा का काम कैसे किया जा सकता है?
राजनीतिक पंडित कहते है कि झारखण्ड में हेमन्त सोरेन को इस बार हरा पाना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर है। हेमन्त सोरेन के जीतने का मूल कारण उनका जनता व अपने कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ाव है। वे उन्हें भी नहीं भूलते, जिन्होंने विपत्तिकाल में उनका साथ दिया। जिसका प्रभाव यह है कि उनके चाहनेवाले जहां भी हैं। उनकी मदद करने के लिए दिलोजां से तैयार हैं।
राजनीतिक पंडित तो यह भी कहते है कि विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद झारखण्ड को दो पार्ट में लेकर एक पार्ट में कल्पना सोरेन और दूसरे पार्ट में हेमन्त सोरेन अकेले दौरा कर दें तो भाजपा के बड़े-बड़े नेता इन दोनों के आगे पानी भरते नजर आयेंगे। ऐसे भी भाजपा की परिवर्तन रैली हो या युवा आक्रोश रैली, इनकी रैली में जनता नजर कहां आई, और अगर कुछ कहीं नजर आई भी तो उनके चेहरे पर उत्साह या जोश कहां था? भला बुलाई गई भीड़ और स्वयं के द्वारा आई भीड़ में अंतर नहीं होता क्या?
इधर भाजपा के कई कार्यकर्ताओं ने इन सारे नेताओं के खिलाफ व इनकी गंदी गतिविधियों पर सोशल साइट पर कैंपेन चला रखा है। कुछ तो खोलकर इनकी पोल पट्टी खोल रहे हैं। लेकिन इन्हें लग रहा है कि उनका प्रचार हो रहा है। एक रांची से ही चलनेवाले लोकल चैनल जो विवादास्पद रहा है। जिसका मालिक जेल भी जा चुका है। उसके घर जाकर भाजपा नेताओं का भोजन करना, टिकटार्थियों से मिलना भाजपा कार्यकर्ताओं में चर्चा का विषय बना हुआ है।
राजनीतिक पंडितों का साफ कहना है कि इस बार हेमन्त सोरेन को भाजपा को हराने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ेगा, इस बार उनका काम भाजपा के कार्यकर्ता ही आसान करेंगे। इसका प्रमाण देखना है तो भाजपा प्रदेश कार्यालय का फेसबुक देख लीजिये, जहां लाइक, कमेन्टस और शेयर के टोटे पड़े हुए हैं, जबकि हेमन्त सोरेन का कल का कांटाटोली ओवरब्रिज के उदघाटन का पोस्ट सभी की नींद उड़ा चुका है। समझनेवाले के लिए एक इशारा काफी है और न समझनेवाले के लिए, आप समझते रहिए।