अपनी बात

रांची में दुर्गा पूजा का मतलब अलबर्ट एक्का चौक स्थित दुर्गा बाड़ी, जहां शास्त्रोक्त ढंग से की जानेवाली देवी पूजा की प्रधानता आपकी दिव्य चेतना को आह्लादित कर देती हैं

अगर आप रांची में हैं। अगर आप सही मायनों में जगतजननी के अनन्य भक्त हैं। आपकी माता पर अगाध श्रद्धा हैं। तो आपके पांव स्वतः उस ओर खीचें चले आयेंगे। जहां मां सही मायनों में विराजती हैं। जहां वो अपनी अद्भुत छवि से सभी को अपनी ओर आकृष्ट करती हैं। जहां आकर आपकी दिव्य चेतना आह्लादित हो उठती हैं और अगर आपको पंडाल व बाह्याडम्बर पर विश्वास है तो फिर आपके लिए पग-पग पर वो सब कुछ उपलब्ध हैं, जो आप पाना या देखना चाहते हैं।

यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि हमेशा की तरह इस बार भी रांची के अलबर्ट एक्का चौक स्थित दुर्गा बाड़ी में वही पूजा देखने को मिली जिसका अनुभव लोग हमेशा से करते रहे हैं। ऐसे तो इस स्थान पर बंगाली समुदाय का ही वर्चस्व हैं। लेकिन पूजा की प्रधानता, शास्त्रोक्त विधि से मां की आराधना, अगर रांची में कही होती हैं तो यहीं होती हैं। यहां मां की आराधना में किन्तु-परन्तु नहीं होता।

यहां अगर षष्ठी है तो है। सप्तमी है तो है। अष्टमी है तो है। नवमी है तो है। विजयादशमी है तो है। यहां उसी विधान से पूजा होगी। जिसकी प्रधानता है। जबकि और जगहों पर पूजा समितियों की प्रधानता, पंडालों के निर्माण, प्रतिमा की उपस्थितियों को लेकर पूजा की प्रधानता गौण हो जाती है। लेकिन दुर्गा बाड़ी में वही होगा, जो नियमानुकूल है। जो शास्त्रोक्त है। यहां किसी की नहीं चलती।

शायद यही कारण है कि यहां जब आप पहुंचेगे और मां की प्रतिमा के समक्ष खड़े होंगे तो अगर आप मां के भक्त हैं तो ऐसी स्थिति में आपके पांव सावधान की मुद्रा में स्वतः आ खड़े होंगे। आपकी आंखे स्वतः बंद हो जायेगी। आपके दोनों हाथ स्वतः एक दूसरे से जुड़कर हृदय पर आकर स्थित हो जायेंगे और आप ध्यानस्थ होकर मां की स्तुति करने लगेंगे। यह हैं शास्त्रोक्त विधि से जहां पूजा होती हैं उसकी प्रधानता।

मैं जब भी अकेले या अपने परिवार के साथ मां की प्रतिमा देखने के लिए निकलता हूं तो भले ही सभी जगह जा पाउ अथवा नहीं। लेकिन दुर्गाबाड़ी जाना नहीं भूलता, क्योंकि मैं यहां पर स्थित मां के अलौकिक छवि को देख स्वतः परम आनन्द में समा जाता हूं। ऐसी मनोहारि छवि मां की कहीं देखने को नहीं मिलती। मां और उनके परिवारों की पारम्परिक प्रतिमा, घंटियों से निकलती मधुर ध्वनियां, ढोल-नगाड़ों की गूंज आपको दूसरी दुनिया में ले जाती हैं।

जहां आप होते हैं और मां होती हैं। लेकिन जैसे ही आप दुर्गा बाड़ी से निकलते हैं। आप पायेंगे कि आप उस अलौकिक दुनिया से मुक्त हो गये। ये सब होता हैं – पूजा की प्रधानता से। अगर आप कहीं भी रहकर विधिवत् पूजा अर्चना करेंगे तो वो दिव्य शक्ति आपके पास पहुंचेंगे ही, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं। लेकिन जब आप पूजा की प्रधानता को छोड़कर प्रतिमा व पंडाल में ज्यादा दिमाग लगायेंगे तो प्रतिमा और पंडाल तो भव्य बनेंगे ही, लेकिन मां वहां उपस्थित होंगी ही, इसकी संभावना कम ही रहती है। इसलिए दुर्गाबाड़ी में जो मां का अद्भुत सौंदर्य़ व अलौकिक छवि जो दिखाई पड़ती हैं, वो सिर्फ और सिर्फ वहां होनेवाली वो शास्त्रोक्त विधि से पूजा के कारण हैं, जो दुर्गा बाड़ी को औरों से अलग करती है।

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