प्रदेश भाजपा नेताओं द्वारा अपनी पत्नियों-बहूओं-भाइयों-बेटों को टिकट दिलाये जाने के बाद कार्यकर्ताओं में बढ़ रहा गुस्सा ने लिया आकार, कई सीटों पर प्रत्याशियों के उपर मंडराया हार का खतरा, झामुमो की बल्ले-बल्ले
प्रदेश भाजपा नेताओं द्वारा अपनी पत्नियों, बहूओं, भाइयों व बेटों को टिकट दिलाये जाने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में बढ़ रहा गुस्सा ने अब आकार लेना शुरु कर दिया है। इस बढ़ रहे गुस्से के आकार लेने के बाद कई सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों के उपर हार का खतरा मंडराने लगा हैं। जिसको लेकर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेताओं को खुशी का ठिकाना नहीं हैं।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते हैं कि हाल ही में झामुमो के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने जो बयान दिया था कि अभी भाजपा को सूची जारी करने दीजिये, उसके बाद तो उनके यहां के लोग आपस में ही लड़ेंगे-भिड़ेंगे और फिर झामुमो की और दौड़ लगायेंगे। ये बात अब सत्य होती दिख रही हैं। जो स्थितियां बन रही हैं। जिस प्रकार कल सूची जारी होने के बाद पोटका की पूर्व भाजपा विधायक मेनका सरदार ने भाजपा से सदा के लिए नाता तोड़ दिया।
ठीक उसी प्रकार आज का समाचार यह है कि सरायकेला-खरसावां के जिला उपाध्यक्ष व भाजपा प्रत्याशी बनने के प्रबल दावेदार रहे गणेश महली ने भाजपा से अपना नाता तोड़ लिया है। उधर भाजपा के एक बड़े नेता रवीन्द्र राय का भी मन डोल चुका है। वे भी कभी भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर सकते हैं। रवीन्द्र राय ने कल ही देर रात विद्रोही24 से बातचीत में कहा था कि वे आज इस बात को लेकर प्रेस कांफ्रेस करेंगे।
उन्होंने विद्रोही24 को आज आमंत्रित भी किया था। लेकिन क्यों नहीं प्रेस कांफ्रेस कर सकें। ये पता नहीं चल पाया। लेकिन ये शत प्रतिशत सत्य है कि आज उनके क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग उनके रांची स्थित आवास पर आकर उन पर दबाव बनाया कि वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े, जीत दिलाने की जिम्मेदारी उनकी रहेगी। आज राज पालिवार भी रवीन्द्र राय के घर पहुंचकर अपनी व्यथा सुनाई।
राज पालिवार ने तो अपने फेसबुक पर साफ लिखा कि भाजपा को मधुपुर में उस कार्यकर्ता को टिकट देना चाहिए था, जिसने सालों से बिना किसी स्वार्थ के अपने खून-पसीने से पार्टी को सींचा है। यह बेहद दुख है कि ऐसे समर्पित कार्यकर्ता की जगह एक धनवान व्यक्ति को चुना गया। टिकट न मिले का व्यक्तिगत दर्द उतना नहीं, जितना यह देखकर पीड़ा होती है कि जिसने पार्टी के लिए सब कुछ त्याग दिया। उसे आज इस कदर नजरंदाज किया गया। यह वास्तव में पार्टी के उस जमीनी कार्यकर्ता के लिए एक करारी चोट है। जो केवल सम्मान और पहचान का हकदार था।
इसी बीच खबर है कि पूरे झारखण्ड में भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं ने भाजपा के प्रदेश स्तर नेता ही नहीं, बल्कि अब तो केन्द्रीय नेताओं के खिलाफ भी आग उगलना शुरु कर दिया है। जमशेदपुर के सौरभ बबलू लिखते है कि नरेन्द्र मोदी, झारखण्ड में परिवारवाद पर बोले तो आप बाघमारा, पोटका, घाटशिला और जमशेदपुर पूर्व उन्हें याद दिला देना।
पूर्व में कोल्हान के डीआइजी रहे और अब भाजपा में राजनीतिक भविष्य तलाश रहे राजीव रंजन सिंह ने अपने फेसबुक पर लिखा है कि एलायंस पार्टियों के साथ सीट बंटवारे की घोषणा के बाद एक गजल का लाइन याद आया, सोचें आपके साथ शेयर करते हैं – बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले। साथियों झारखण्ड में भाजपा जिस तरह से सीट बंटवारा कर रही हैं। उससे हमें लग रहा है कि हम कही 2019 की तरह भाजपा से प्रत्याशी देने के बजाय बाहर के लोगों पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। अभी भी समय है। प्रत्याशी का चयन सही हो। भाजपा की सरकार बनाने के लिए सभी बड़े नेताओं को यह समझना होगा।
इधर जमशेदपुर से खबर है कि पोटका में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को टिकट दिये जाने के बाद वहां विरोध के स्वर और तेज हो गये हैं। बड़ी संख्या में वहां भाजपा के कार्यकर्ता मीरा मुंडा का विरोध सोशल साइट और मीडिया में अब करने लगे हैं। जो अब तेजी से वायरल भी हो रहा है। समाचार यह भी है कि जमशेदपुर पूर्व से भाजपा का टिकट पाने में लगे अभय सिंह के घर रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू पहुंची। जहां अभय सिंह की मां ने पूर्णिमा साहू के हाथों में अच्छी खासी राशि थमाई। जिसका फोटो अभय सिंह ने अपने फेसबुक पर लोड किया।
जिसमें बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ताओं ने अपनी पीड़ा लिखी है और यह साफ कर दिया है कि यहां भाजपा की हार अब तय है। भाजपा को कोई पराजित होने से नहीं बचा सकता। शेखर प्रशांत लिखते हैं कि इस सीट पर भाजपा ने गलती कर दी, इस सीट पर फिर हारेगी भाजपा, हम तो आपको (अभय सिंह को) उम्मीदवार मानकर चल रहे थे, पता नहीं क्या पैमाना है पार्टियों को टिकट देने का, ये सीट तो लड़ने से पहले ही भाजपा हार चुकी।
धीरज झा लिखते हैं कि 2019 से ज्यादा खराब हाल नहीं हुआ तो देख लीजियेगा। पूर्वी में जनसेवक बहुत थे पर यहां परिवारवाद चलाया गया। जिसका परिणाम बीजेपी बहुत बुरी तरह भुगतेगी। गंगा प्रसाद सिंह लिखते हैं कि भाजपा सिद्धांत से भटक गई। प्रधानमंत्री/गृह मंत्री हर जनसभा में परिवारवाद पर गहरी चोट विपक्ष को देते हैं। आज जब खुद पर आई तो परिवारवाद नहीं दिखा? मैं सनातनी हूं। किसी पार्टी का नहीं हूं। सिद्धांत पर चलता हूं। मेरा कहना एकमात्र यह है कि जमशेदपुर पूर्व विधानसभा में जमीन से जुड़े भाजपा के कार्यकर्ता है।
जिनमें मेरे अतिप्रिय अभय सिंह, अमरप्रीत सिंह काले, शिवशंकर सिंह प्रमुख हैं। जिनसे मेरा पुराना सरोकार है। क्या इनमें क्षमता नहीं थी? हमेशा ये समाज के निम्नस्तर तक के व्यक्तियों से जुड़कर सबका भला किये हैं। जिस बहू को टिकट दिया गया, उनकी उपलब्धि क्या है? समाज के लिए योगदान क्या है? यही ना कि राज्यपाल की पुत्रवधू हैं। इस उपलब्धि से चुनाव जीत पाना मेरे विचार से नामुमकिन लगता है। भाजपा पुनः आत्मघाती कदम जमशेदपुर पूर्व विधानसभा में उठाया है, जिसका पश्चाताप उन्हें फिर होगा। हृषीकेष पांडेय लिखते हैं कि हार जायेगी 100%।
उधर रांची के एक चैनल में कार्य कर रहे एक पत्रकार निलय सिंह ने तो फेसबुक पर साफ लिख दिया कि भारतीय जनता पार्टी ने पांच सीटें इंडिया गठबंधन को दिवाली के तोहफे के रूप में दे दी हैं। परिणाम के बाद बात कीजियेगा। राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि जब टिकट बांटने में इतनी उदारता दिल्ली और प्रदेश के भाजपा नेताओं ने कर दी तो एक विवादास्पद न्यूज चैनल के मालिक को भी टिकट क्यों नहीं थमा दिया, जिसके घर जाकर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शरमा और नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी ने भाजपा के महान संत मीडिया प्रभारी शिव पूजन पाठक के साथ भोग लगाया। उसे भी दे देते तो भाजपा की पूर्णाहुति भी हो जाती।
लेकिन, छोड़िये, जो भाजपा के केन्द्र व राज्य के नेताओं ने इस चुनाव में जो प्रत्याशी जनता के सामने प्रस्तुत किये हैं। कार्यकर्ता तो हिसाब-किताब लेकर बैठ ही गये हैं। जनता भी सबक सिखाने को छटपटा रही हैं और वो इंतजार कर रही है कि कब 13 व 20 जनवरी आये और वोटिंग मशीन का बटन दबाकर अपना फैसला सुना दें। इधर जब से भाजपा ने अपनी ओर से प्रत्याशियों की सूची जारी की है। झामुमो नेताओं व कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई हैं। उन्हें लगता हैं कि भाजपा ने उन्हें कई सीटें तो ऐसे ही तोहफे में दे दिये हैं। जिसका वे शुक्रगुजार भी अभी से हैं।
कई भाजपा के नेता व कार्यकर्ता सीएम आवास और झामुमो कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं। कई तो पत्रकारों की परिक्रमा कर रहे हैं कि वे सीएम से मिलवा दें ताकि उनका भी उद्धार हो जाये। लेकिन उन्हें ये सौभाग्य मिलता नजर नहीं आ रहा। झामुमो ने बड़ी ही ठोक-बजाकर इस बार कैंडिडेट उतारने का फैसला किया है। जो उसकी जीत में सहायक भी बन रही हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा ने जो भूल कर दी हैं। उस भूल को सुधार पाना, अब भाजपा के लिए भी टेढ़ी खीर हैं।