अपनी बात

संदीप को इस बात का मलाल, जब अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा, रघुवर दास की बहू पूर्णिमा, चम्पाई का बेटा बाबूलाल, सजायाफ्ता ढुलू का भाई शत्रुघ्न भाजपा का टिकट पा सकता है तो वो अपने जीजा के रहते टिकट लेने में असफल कैसे हो गया?

बेचारा संदीप वर्मा। जानते हैं ये महाशय हैं कौन? इनका सोशल साइट खंगालिये तो ये अपने बारे में परिचय देते हुए लिखते हैं कि वे वर्तमान में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य है। पूर्व में रिलायंस ग्रूप ऑफ इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष व सांसद रहे परिमल नाथवानी के सलाहकार, पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन ग्रीवान्स कमीशन के पूर्व कमीशनर व मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार भी रह चुके हैं। मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार मतलब ये मत समझ लीजियेगा कि आदित्य नाथ योगी जैसे मुख्यमंत्री के सलाहकार रह चुके हैं, ये वहीं भ्रष्टाचार शिरोमणि झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के सलाहकार रह चुके हैं।

जो आजकल भाजपा में रहकर अपनी सेहत सुधार रहे हैं। साथ ही अपनी पत्नी गीता कोड़ा को कभी एमपी का टिकट दिलवा देते हैं तो कभी एमएलए का टिकट दिलवा देते हैं। ऐसे भी भारत में केवल भाजपा ही एक ऐसा दल हैं। जिसमें प्रवेश कर लेने मात्र से ही समस्त अपराधिक जगत से मुक्ति मिल जाती है। अगर आप भ्रष्ट हैं तो आपको केन्द्रीय एजेंसियां भी नहीं सताती हैं। इसलिए पूरे देश में आजकल भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की पहली पसन्द अगर भाजपा हैं तो ऐसे ही नहीं हैं।

संदीप वर्मा ने अपना परिचय तो सोशल साइट पर दे दिया। लेकिन ये नहीं बताया कि उसके जीजा का नाम दीपक प्रकाश है। जो वर्तमान में भाजपा से राज्यसभा के सांसद हैं। पूर्व में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। आज भी पूरी भाजपा उन्हीं के इशारों पर चलती है। भाजपा में किसे कहां बिठाना है और किसे रसातल में भेजना है। ये सारा काम दीपक प्रकाश ही, वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह और महामंत्री प्रदीप वर्मा जैसे लोगों के साथ मिलकर करते हैं। मतलब साफ है कि दीपक प्रकाश को आज के डेट में नजरंदाज कर भाजपा में रह लेने की ताकत किसी में नहीं हैं।

वैसे ऐसे महान जीजा के महान साले संदीप वर्मा को इस बात का दुख है कि भाजपा में परिवारवाद चल रहा है। वे कल संवाददाता सम्मलेन कर दुख जता रहे थे कि भाजपा में अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को टिकट दिया गया, रघुवर दास की पुतोहू पूर्णिमा साहू दास को टिकट दे दिया गया। झामुमो से भाजपा में आये चम्पाई सोरेन खुद सरायकेला से और अपने बेटे बाबूलाल सोरेन को घाटशिला से टिकट दिलवा दिया। सजायाफ्ता ढुलू ने अपने भाई शत्रुघ्न को बाघमारा से टिकट दिलवा दिया। जिसको लेकर भाजपा के सारे कार्यकर्ताओं में आक्रोश हैं।

लेकिन उन्होंने अपने मुखारविन्द से ये नहीं बताया कि वे भी परिवारवाद में ही आते हैं। उनके जीजा का नाम दीपक प्रकाश है। वे अपने जीजा की ही कृपा से अब तक बड़े-बड़े पद प्राप्त करते आये हैं। नहीं तो, वे बताएं कि उन्हें सुरखाब के पर निकले हुए हैं क्या? वे निवर्तमान विधायक सीपी सिंह के खिलाफ जमकर बोले और अपनी टिकट की दावेदारी रांची विधानसभा से कर दी। लेकिन अपने बारे में ये नहीं बताया कि उन्होंने जो रांची में अकूत संपत्ति बनाई हैं। वो कैसे बनाई? आखिर मधु कोड़ा के मुख्यमंत्रित्व काल में तो दो-दो पत्रकार सलाहकार बने थे। एक राजेश कुमार सिंह और दूसरे संदीप वर्मा। आखिर जो अलादीन का चिराग संदीप वर्मा के हाथों लगा, वो ही अलादीन का चिराग राजेश कुमार सिंह के हाथों क्यों नहीं लगा?

आखिर आप सहारा के मामूली रिपोर्टर होकर, देखते ही देखते करोड़ों-अरबों में कैसे खेलने लगे? आखिर वो कौन सी तकनीक है, जिस तकनीक को पाकर आप जैसे लोग करोड़ों-अरबों में खेलने लगते हैं। लेकिन राजेश कुमार सिंह को आज भी खाक छानना पड़ता है। हे संदीप वर्मा जी। जरा हमको भी वो तकनीक बताइये न। ताकि हम और पत्रकारों को आपकी ये दिव्य तकनीक बता सकें कि किस तकनीक से संदीप वर्मा बना जा सकता है।

हे संदीप वर्मा जी। आप ये भी बताइये न कि जब आपको मधु कोड़ा जाते-जाते सूचना आयुक्त बनाने का जो प्रण किया था। वो आप सूचना आयुक्त बनते-बनते कैसे रह गये? आखिर आज के राज्यसभा के उप-सभापति यानी तब के रांची से प्रकाशित प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश ने आपकी कैसी बैंड बजाई थी? प्रभात खबर के प्रथम पृष्ठ पर आपकी दिव्यता का कैसा वर्णन किया था कि आप उस वक्त मुंह छिपाते फिर रहे थे और तब के राज्यपाल ने आपकी सूचना आयुक्त बनने के प्रस्ताव पर ही विराम लगा दिया था। जानते है, संदीप वर्मा जी। आपके महान व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में विद्रोही24 खूब जानता है। उतना जानता है कि जितना आपके जीजा दीपक प्रकाश भी नहीं जानते।

सच्चाई यह है कि संदीप वर्मा ने कल प्रेस कांफ्रेस कर भाजपा के दिग्गजों को चुनौती दी हैं कि वो निर्दलीय लड़ेगा। अरे उसे लड़ने दीजिये। वो दस वोट भी नहीं ला सकता। सच्चाई यह है कि उनके जीजा दीपक प्रकाश भी अकेले निर्दलीय चुनाव लड़ लें तो दस वोट भी नहीं प्राप्त कर सकते। दरअसल इन दोनों की सारी रोजी-रोटी भाजपा से ही चलती है। सच्चाई तो यह भी है कि ये किसी भी जिंदगी में भाजपा को नहीं छोड़ सकते। अगर इन्होंने भाजपा छोड़ दिया तो ये खुद ब खुद कहीं के नहीं रहेंगे। इसलिए ये संदीप कल गीदड़ भभकी दिखा रहा था। कही इस गीदड़ भभकी से कुछ प्राप्त हो जाये तो क्या गलत है।

आश्चर्य तो हमनें कल ये देखा कि खुद को जनता के बीच औरों से बेहतर बतानेवाला आधुनिक पत्रकार, अपने यू-ट्यूब चैनल पर उस संदीप वर्मा से ऐसे बात कर रहा था कि जैसे वो महात्मा गांधी से बात कर रहा हो। यही नहीं वो पत्रकार संदीप वर्मा से बात कर खुद को कृतार्थ हुआ भी समझ रहा था। मतलब गिरावट किस कदर भारत में आई हैं। उसका जीता जागता प्रमाण उक्त पत्रकार और संदीप वर्मा का वो वीडियो है। जिसे संदीप वर्मा ने अपने सोशल साइट पर भी शेयर किया है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो राजनीति में कुछ भी हो सकता है। कही ऐसा तो नहीं कि संदीप वर्मा का जीजा दीपक प्रकाश, अपने साले को ही प्रवोक किया हो कि तुम रांची से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ने का एक स्वांग रचो और हम भाजपा के बड़े नेताओं को तुम से बात करने के लिए कहेंगे और उसमें तुम अपनी बड़ी डिमांड रख देना, अगर गेम सही रहा तो देखते-देखते तुम राष्ट्रीय राजनीति में भी छा सकते हो। यही समय है, मौके का फायदा उठाओ। और संदीप अपने जीजा के कहने पर ऐसा नाटक रच दिया हो। ये हो सकता है, क्योंकि दीपक की राजनीति में चालाकी पहली शर्त है। इस चालाकी में प्रदीप वर्मा जैसे महामंत्रियों की सहमति तो आम बात है।

राजनीति पंडित तो ये भी कहते है कि कभी आजसू में अपनी राजनीतिक प्रैक्टिस शुरु करनेवाला और अब भाजपा में आकर देखते ही देखते प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बन जानेवाला दीपक का साला, सीपी सिंह जैसे राजनीतिक व्यक्ति पर टीका टिप्पणी करता हैं तो शोभा नहीं देता। राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते है कि जितनी तेजी से संदीप वर्मा बिना किसी योग्यता के अगर राजनीति में तरक्की कर रहा हैं तो उसका सीधा श्रेय उसके जीजा दीपक प्रकाश को जाता है। नहीं तो भाजपा के लोग ही बताये कि जितनी तेजी संदीप वर्मा ने आर्थिक और राजनीति क्षेत्र में दिखाई हैं। उतनी तरक्की कितने युवाओं ने अब तक भाजपा में रहकर दिखाई है। बता दें। बतायेगा भी कैसे? इसके लिए भी बोल्ड कैरेक्टर चाहिए, जो भाजपा के किसी नेता में नहीं हैं।

इस संदीप की हरकत तो ये देखिये कि आज भी यह व्यक्ति आदर्श आचार चुनाव संहिता का खूलेआम उल्लंघन कर रहा है। लेकिन चुनाव आयोग इसकी हरकतों पर कोई संज्ञान नहीं ले रहा। पता नहीं वो कौन सा इससे रिश्तेदारी निभा रहा है और अगर यही गलती सामान्य लोग करें तो चुनाव आयोग उस पर एक्शन ले लेगा। जरा देखिये, आज भी चुटिया के कई मुहल्ले में इसके बैनर-पोस्टर लगे हुए हैं, लेकिन इसने उन पोस्टरों-बैनरों को हटवाया नहीं हैं। आखिर ये सब क्या है? आश्चर्य तो यह भी है कि जब कोई पत्रकार इससे इंटरव्यू लेता है तो वहीं सवाल पूछता है, जो संदीप को पसन्द है। मतलब वो गाना है न। – जो तुमको हो पसंद वहीं बात करेंगे, तुम दिन को कहो रात, तो हम रात कहेंगे …