अपनी बात

झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास व धनबाद के सजायाफ्ता सांसद ढुलू महतो में अब करवा चौथ का चांद नजर आने लगा जमशेदपुर पश्चिम के जदयू प्रत्याशी सरयू राय को

बात तो सही है। चाहे आप माने अथवा न माने। जमशेदपुर पश्चिम के जदयू प्रत्याशी सरयू राय को अब झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास और धनबाद के सजायाफ्ता सांसद ढुलू महतो में अब करवा चौथ का चांद नजर आने लगा है। वे अब भूलकर भी इन दोनों के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे हैं। बोलेंगे भी कैसे, वे इतने मूर्ख थोड़े ही हैं। बहुत ही विद्वान और राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। वे जानते है कि कौन सी बात, कब और कहां बोलनी हैं। ताकि राजनीति के चाय का असली स्वाद जिंदगी भर उन्हें प्राप्त होता रहे।

याद करिये, 2019 के झारखण्ड विधानसभा चुनाव का समय। जब उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सरयू राय को जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा का टिकट लेने नहीं दिया था। जिसे चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्व से ही निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का संकल्प लिया और उस सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को हार का स्वाद भी चखा दिया। उस वक्त वे रघुवर दास के खिलाफ खूब बोला करते थे।

राजनीतिक पंडित तो यह भी कहते हैं कि अगर रघुवर दास में उस वक्त थोड़ी भी बुद्धि होती और वे उस वक्त भाजपा से सरयू राय को जमशेदपुर पश्चिम से टिकट दिलवा देते, तो सरयू राय जमशेदपुर पश्चिम से स्वयं हार जाते, लेकिन रघुवर दास की बुद्धि की बलिहारी, उन्होंने अपनी बुद्धि से सरयू राय को सुपर स्टार बनवा दिया और सरयू राय सुपर स्टार बनते हुए रघुवर दास को धूल चटा दिया।

जैसे ही सरयू राय जमशेदपुर पूर्व सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा पहुंचे। तब से लेकर एक वर्ष पहले तक रघुवर दास के खिलाफ खुब आक्रामक रहे। वे ईडी, सीबीआई और पता नहीं कई केन्द्रीय एजेंसियों को बार-बार ट्विट कर उनके भ्रष्टाचार में लिप्त होने का सबूत देते रहे। लेकिन  जैसे ही विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आया और जमशेदपुर पूर्व में अपनी हार की निश्चित भनक मिली तो उन्होंने भाजपा में आने की ठानी।

कई बड़े-बड़े नेताओं से संपर्क किया। जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ने का दिमाग लगाया। इसी दौरान वे बराबर, जमशेदपुर पश्चिम से विधायक बने तथा स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के खिलाफ मुखर रहे और आज भी है। लेकिन रघुवर दास के कोपविभाजन के कारण सरयू राय को भाजपा में इंट्री नहीं मिली। ऐसे में उन्होंने पहले तो एक अपनी पार्टी बनाई। नाम भाजपा से ही मिलता जुलता रखा। पार्टी का नाम रखा – भारतीय जनतंत्र मोर्चा और खुद को बाद में जनता दल यू में समर्पित कर दिया।

जनता दल यू को भी सरयू राय के रूप में बैठे-बैठाये एक तेज-तर्रार नेता मिल गया। उधर संयोग ऐसा बना कि केन्द्र में बैसाखी की सरकार बन गई। जिसमें एक बैसाखी जदयू तो दूसरा बैसाखी चंद्रबाबू नायडू की पार्टी बनी। अब भाजपा के पास मजबूरी थी, वो जदयू को नाराज नहीं कर सकता था। जदयू को दो सीटें दे दी। जिसमें एक सीट पर खुद सरयू राय बैठे हैं। भाजपा ने उनका समर्थन कर दिया तो भाजपा वाले भी उनके साथ हैं। जिसका प्रभाव सरयू राय पर यह पड़ा कि वे रघुवर दास के भ्रष्टाचार की कथा और सजायाफ्ता ढुलू महतो के सारे कुकर्म इस चुनाव के दौरान भूल गये, क्योंकि वे जानते हैं कि जहां रघुवर दास और ढुलू पर उन्होंने प्रवचन किया तो उनकी दशा बदलते देर नहीं लगेगी।

जमशेदपुर के लोग अभी भूले भी नहीं है कि हाल ही में रघुवर दास के इशारे पर कुछ ही दिनों पहले ढुलू महतो जमशेदपुर के दौरे पर थे। जिसमें उन्होंने सरयू राय के खिलाफ क्या नहीं कहा। इस पर सरयू राय ने भी प्रतिकार किया था कि ढुलू महतो के कारनामे जगजाहिर है और जब चुनाव होगा तो उनके षडयंत्र के शिकार लोग चुनाव के दौरान उनके इलाके में आयेंगे और इनके षड्यंत्र को बतायेंगे। लेकिन आश्चर्य है कि चुनाव प्रक्रिया अब धीरे-धीरे परवान चढ़ रहा हैं। न तो अब रघुवर दास और ढुलू महतो, सरयू राय के खिलाफ विषवमन कर रहे हैं और न ही सरयू राय इन दोनों पर पूर्व जैसा प्रेम प्रदर्शित कर रहे हैं। हालांकि इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से इन सब के हृदय में उपस्थित जीवाणुओं की जांच की जाये तो भारी संख्या में एक दूसरे प्रति पनप रहे विष स्पष्ट रूप से दिखेंगे। शायद इसी का नाम राजनीति भी हैं।  

याद करिये, 2019 में जब रघुवर दास ने सरयू राय की राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लगाने की कोशिश की थी। तब सरयू राय ने उनका नया नामकरण किया था। नाम रखा था – रघुवर दाग। लेकिन वाह री राजनीति, आज सरयू और रघुवर दोनों को एक दूसरे की जरुरत आन पड़ी हैं। रघुवर को अपनी बहू पूर्णिमा के लिए राजपूतों का वोट चाहिए और सरयू राय को अपनी जीत के लिए रघुवर के जातियों का वोट चाहिए। इसलिए दोनों ने अपनी-अपनी ओर से मुंह बंद कर लिये हैं और इसी में दोनों ने अपनी-अपनी भलाई समझ रखी हैं। लेकिन चुनाव परिणाम जब आयेगा तो चुनाव परिणाम के भविष्य पर ही इन दोनों की आगे की राजनीति का भविष्य दिखेगा कि वो कैसा रहेगा – मित्रवत् या पहले की तरह शत्रुवत्।