अपनी बात

विद्रोही24 की बात सत्य हुई, दीपक के साले संदीप का प्रायोजित ड्रामा खत्म, असम के CM हिमंता बिस्वा सरमा को लेकर जीजा दीपक प्रकाश पहुंचा अपने साले संदीप के घर, साले को हुई ज्ञानप्राप्ति, नॉमिनेशन वापस लिया

अब तो आप सब को पता चल ही गया होगा कि भाजपा के तथाकथित महान चिन्तक, संगठन सर्वोपरि मूल मंत्र का प्रतिदिन 1008 बार जप करनेवाले, अति संवेदनशील युवा राजनीतिक संत, जन-जन के प्रिय संदीप वर्मा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जो चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। नामांकन का पर्चा दाखिल किया था। वो नामांकन पर्चा उसने आज वापस ले लिया। उसकी इस हरकत पर जो संदीप वर्मा टाइप्ड लोग हैं। उसकी वाह-वाह कर रहे हैं। लेकिन जो विद्रोही24 डॉट कॉम के नियमित पाठक हैं। वे जरुर इस बात को जानते होंगे कि विद्रोही24 ने इस बात की संभावना 21 अक्टूबर को ही व्यक्त कर दी थी कि संदीप वर्मा का यह ड्रामा ज्यादा दिनों तक चलनेवाला नहीं हैं।

आज भी आप विद्रोही24 डॉट कॉम पर जाइये तो 21 अक्टूबर को छपे “संदीप को इस बात का मलाल, जब अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा, रघुवर दास की बहू पूर्णिमा, चम्पाई का बेटा बाबूलाल, सजायाफ्ता ढुलू का भाई शत्रुघ्न भाजपा का टिकट पा सकता है तो वो अपने जीजा के रहते टिकट लेने में असफल कैसे हो गया?” नामक हेडिंग से प्रकाशित समाचार में पैराग्राफ नंबर दस देखिये/पढ़िये। जिसमें विद्रोही24 ने साफ लिखा है कि

“राजनीतिक पंडितों की मानें तो राजनीति में कुछ भी हो सकता है। कही ऐसा तो नहीं कि संदीप वर्मा का जीजा दीपक प्रकाश, अपने साले को ही प्रवोक किया हो कि तुम रांची से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ने का एक स्वांग रचो और हम भाजपा के बड़े नेताओं को तुम से बात करने के लिए कहेंगे और उसमें तुम अपनी बड़ी डिमांड रख देना, अगर गेम सही रहा तो देखते-देखते तुम राष्ट्रीय राजनीति में भी छा सकते हो। यही समय है, मौके का फायदा उठाओ। और संदीप अपने जीजा के कहने पर ऐसा नाटक रच दिया हो। ये हो सकता है, क्योंकि दीपक की राजनीति में चालाकी पहली शर्त है।”

और लीजिये। वहीं सब कल हो गया। संदीप वर्मा का जीजा दीपक प्रकाश, असम के मुख्यमंत्री व झारखण्ड विधानसभा भाजपा के चुनाव सह प्रभारी को लेकर अपने दल-बल के साथ संदीप वर्मा के आलीशान महल में पहुंच गया। हिमंता ने संदीप वर्मा की आरती उतारी, उसके घर का सुस्वादु भोजन का स्वाद चखा, डीलिंग की और लीजिये हो गई बात, बन गई बात, जो व्यक्ति दस वोट नहीं ला सकता, जिसका कोई जनाधार नहीं हैं, जिसके पास तो भाजपा के रांची प्रत्याशी सीपी सिंह भी नहीं जाकर कह सकते कि तुम चुनाव मत लड़ो, क्योंकि वे भी संदीप वर्मा की राजनीतिक हैसियत और उसकी दिव्य हरकतों को खूब जानते हैं, क्योंकि सीपी सिंह कोई रांची में रहकर कोदो नहीं दले हैं।

वे भाजपा के सारे राजनीतिक नेताओं  और यहां के पत्रकारों की जन्मकुंडली खंगाले हुए हैं कि कौन क्या हैं? लेकिन बेचारे चुप रहते हैं। नहीं बोलते हैं। उनका यही नहीं बोलना, दूसरों को जुबां दे देता हैं। तभी तो सीपी सिंह ने संदीप वर्मा द्वारा उन पर लगाये गये आरोपों के बावजूद भी एक शब्द नहीं बोले। नहीं तो वे भी कह सकते थे कि हे महापुरुष आप सिर्फ इतना ही बता दो कि आज आपके पास जो अकूत संपत्ति आई हैं। वो कैसे आई हैं? वो कौन हैं, जिसने तुम्हें अलादीन का चिराग थमा दिया। तो संदीप की बोलती बंद हो जायेगी।

आश्चर्य तो यह भी है कि ये केन्द्रीय एजेंसियां विनय चौबे जैसे लोगों के यहां छापेमारी करती है। लेकिन संदीप वर्मा जैसे लोगों से यह क्यों नहीं पूछती कि आप किस देश के राजा पूर्व में रहे हैं? या आप किस टाटा-बिड़ला समूह के परिवार से आते हैं? भाई ये तो पूछना ही चाहिए कि इतनी संपत्ति देखते-देखते कैसे इनके पास आ गई कि अब इनके यहां हिमंता बिस्वा सरमा जैसे लोग हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं, लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे लोग उसके घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करते हैं। आश्चर्य तो यह भी है न कि जिस मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के प्रेस सलाहकार संदीप वर्मा रहे हैं, उसी के प्रेस सलाहकार तो राजेश कुमार सिंह भी रहे। बेचारा राजेश कुमार सिंह आज भी खाक छान रहा है और ये अब निर्दलीय चुनाव लड़ने तक की बात कर रहे हैं। आखिर चुनाव में करोड़ों खर्च करने की ताकत कहां से आ गई भाई?

पत्रकार तो विद्रोही24 भी रहा है। उसे आज तक वो अलादीन का चिराग क्यों नहीं मिला, जो संदीप वर्मा को मिल गया। खैर, संदीप वर्मा अपने जीजा दीपक प्रकाश और असम के मुख्यमंत्री हिमंता के कहने पर चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं। कल इनके आवास पर हिमंता बिस्वा सरमा के साथ नौ महीने तक कारागार की शोभा बढ़ा चुके महान चैनल के महान मालिक भी मौजूद थे। सचमुच भाजपा प्रगति की ओर हैं। ऐसे ही लोग मिलकर झारखण्ड को महान बनायेंगे। मतलब चलनी (हिमंता बिस्वा सरमा) दूसे सूप (हेमन्त सोरेन) के, जिन्हें बहत्तर छेद। सचमुच भाजपा का भगवान ही मालिक है। जिनके साथ एक अच्छा आदमी तक चलने को तैयार नहीं, वो देश व राज्य को क्या बेहतर दिशा दे सकता है। ये तो झारखण्ड का दुर्भाग्य है कि ऐसे लोग चुनाव की दिशा तय कर रहे हैं।

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