अपनी बात

एक थे वो ‘वाजपेयी’ और एक ये, उनकी बोली से शहद टपकती और इनके मुंह से गालियां, दूसरी ओर पार्टी के बेशुमार पैसों पर गुलछर्रे उड़ाने में लगे भाजपा के उद्दंड नेताओं के प्रति कार्यकर्ताओं के अंदर धधक रहा दावानल

प्रकाश मिश्रा घाटो, जिला रामगढ़ के बहुत पुराने भाजपा कार्यकर्ता हैं। जिलाध्यक्ष और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य भी रह चुके हैं। लोकसभा चुनाव अभियान से पूर्व प्रदेश प्रभारी रामगढ़ प्रवास पर पहुंचे थे। वाजपेयी के साथ स्वनामधन्य आदित्य साहू, राज्यसभा सदस्य थे जिनके नाम झारखंड विधानसभा चुनाव में सबसे कम [मात्र 2200, सन् 2009] वोट लाने का कीर्तिमान जुड़ा हुआ है।

वाजपेयीजी और प्रकाशजी में पार्टी को लेकर चर्चा शुरू हुई। साहूजी और वाजपेयी चाहते थे कि मिश्रा जी हां में हां मिलावें। लेकिन मिश्राजी, मिश्राजी ठहरे। सो, वाजपेयी जी के तर्कों को काटते हुए पार्टी हित के उपायों का युक्तियुक्त प्रतिपादन करने लगे। इनका कहना था कि पार्टी को कुछ कमियों और विकृतियों से पिंड छुड़ानी होगी, अन्यथा ‘नुकसान’ होगा।

बस इतने पर वाजपेयीजी आपा खो बैठे और तैश में मिश्राजी को लक्ष्य कर जो बोले, वह बहुत मजेदार है –“जो पार्टी को नुकसान पहुंचाने की बात करेगा, ‘हम उसके मुंह में मुत्त देंगे।” मिश्राजी से भयानक कहा-सुनी हो गई और उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया। ज्ञातव्य है कि इसके पहले भी जमशेदपुर के कार्यकर्ता बैठक में वाजपेयीजी अपनी आत्मकथा बतलाते हुए गर्व के साथ यह कह चुके हैं – “जब मैं उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष था, तब अधिकारियों को ‘मां-बहन’ करने में कोई देर नहीं करता था।”

वाजपेयी जी का एक ‘रमचेला’ है – डालटनगंज में रहता है। राजनीतिक परजीवियों की प्रजाति का है। वाजपेयी जी और आरएसएस के प्रचारकों की गणेश परिक्रमा कर प्रदेश महामंत्री बन चुका है। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि गाली ही इस छुटभैये के मुंह का ‘आभूषण’ है। ठसक के क्या कहने? सूत्रों ने बताया कि कौए के स्वर के प्राकृतिक अवदान से अलंकृत इस व्यक्ति ने चार दिन पूर्व बरही (हजारीबाग) में एक पुराने संघ-भाजपा के कार्यकर्ता पर रौब झाड़ते हुए कुछ असंसदीय प्रवचन दे डाला। इसपर इनकी ठसक की सरेआम बैठक में ऐसी की तैसी हो गई। इससे पहले कोडरमा के बहुत पुराने और बुरे दौर के एक कार्यकर्ता रामचंद्र सिंह, जो कि जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं, इनसे यह आदमी बेवजह उलझ गया तो इनकी गर्मी झाड़ दी, रामचंद्र सिंह ने।

इधर बरही, धनबाद आदि के कार्यकर्ताओं ने विद्रोही24 को बताया कि प्रदेश भाजपा के सारे मठाधीश हजारीबाग व धनबाद के एक-दो आलीशान होटलों में ऐश मौज करते हुए “माल महाराज का, मिर्जा खेले होली” वाली लोकोक्ति चरितार्थ कर रहे है। जमीनी कार्यकर्ताओं को डंडे से हांकने में लगे ऐसे तत्व, मात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा अन्य बड़े नेताओं के दौरे पर मंचों, हवाई अड्डे व हेलीपैड पर दांत निपोरने पहुंच जाते है। राजनीतिक पंडित बता रहे हैं कि पार्टी के बेशुमार पैसों पर गुलछर्रे उड़ाने में लगे ऐसे अहंकारी-उद्दंड लोगों के प्रति कार्यकर्ताओं के अंदर दावानल धधक रहा है, जिसमें जलकर पार्टी की विधानसभा चुनाव में जीत की संभावनाओं का राख होना तय है।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि वर्तमान प्रदेश भाजपा में आधे से अधिक प्रत्याशी दलबदलू या दल-तोड़क हैं। ऐसे लोगों के काले कारनामों को संघ-भाजपा के संवेदनशील कार्यकर्ता जानते हैं। ऊपर से ये वाजपेयी जी की गालियां और दीपक प्रकाश, आदित्य साहू, प्रदीप वर्मा, मनोज सिंह जैसे लोगों की दबंगई।

कार्यकर्ता इस बात से मायूस हैं कि जो लोग दल के बुरे दौर में कहीं नजर नहीं आते रहे।  न तो किसी आंदोलन में और न ही संघर्ष में, वे ही आज उनके कर्णधार बन बैठे हैं। यह तो वही बात हुई कि ‘समुद्र – मंथन’ के वक्त जो न तो बासुकी के मुंड की तरफ थे और न ही पूंछ की तरफ, लेकिन मंथन से प्राप्त अमृत को पीने अगली पंक्ति में बैठ गए। इसीलिये अब भाजपा के कार्यकर्ता परस्पर चर्चा करने लगे हैं कि किसके लिए बेकार का खून-पसीना बहाना? अब तो घर पर आराम करना है और भाजपा का यह अंतिम शो देखकर मजे लेना हैं।

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