‘बटेंगे तो कटेंगे’ का रट लगानेवालों भाजपाइयों, कभी तुमने सोचा कि अगर छठ मनाने को झारखण्ड से बिहार और यूपी गये लोग 13 नवम्बर के पहले नहीं लौटे, तो क्या होगा? किसे खामियाजा उठाना पड़ेगा?
‘बटेंगे तो कटेंगे’ का रट लगानेवालों भाजपाइयों, तुम ये क्यों नहीं सोचते कि जो लोग झारखण्ड से बिहार और उत्तर प्रदेश छठ मनाने को गये हैं, वो अगर 13 नवम्बर के पहले नहीं आये, तो वे मतदान से वंचित रह जायेंगे और इसका खामियाजा किसी दूसरे दल को नहीं, बल्कि तुम्हारी पार्टी को ही भुगतना पड़ेगा। आपने और चुनाव आयोग ने झारखण्ड में जल्द चुनाव हो, इसके लिए तो खुब जोर लगाया, माथापच्ची की। लेकिन ये सोचने की कोशिश नहीं की कि झारखण्ड की धर्मप्राण जनता के सामने जब महापर्व छठ – कार्तिकपूर्णिमा और चुनाव के बीच किसी को चुनने को कहा जायेगा तो वो महापर्व छठ – कार्तिक पूर्णिमा को ही चुनेगी। मतदान उनके लिए दूसरी प्राथमिकता होगी।
जरा भाजपा के नेता ही खुद सोचे। छठ तो आठ नवम्बर तक था। अब नौ नवम्बर को गोपाष्टमी है। दस नवम्बर को अक्षय नवमी है। बारह नवम्बर को देवोत्थान एकादशी है। पन्द्रह नवम्बर को कार्तिक पूर्णिमा और गुरुनानक जयंती है। ऐसे में इन प्रमुख दिनों में कोई जो अपने गांव-घर गया हैं। इन महत्वपूर्ण तिथियों को कैसे नजरंदाज कर सकता है। भाजपा के लोग तो खुब हिन्दू धर्म/सनातन धर्म की रट लगाया करते हैं। क्या उन्हें ये नहीं पता कि हिन्दू धर्म/सनातन धर्म में महापर्व छठ, गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, कार्तिक पूर्णिमा का क्या महत्व है।
क्या इन्हें ये नहीं पता कि महापर्व छठ का ही एक ऐसा समय होता हैं, बिहार व उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए, जब वे बहुत दिनों के बाद अपने परिवारों तथा इष्ट मित्रों से मिलते हैं। ऐसे में वे छठ मनायेंगे और सीधे वोट देने यहां चले आयेंगे। ऐसा कभी हुआ हैं क्या? अरे मूर्खों जिनका परिवार छितराया हुआ हैं और यही वक्त होता हैं यानी छठ से लेकर कार्तिक पूर्णिमा जिसे लोग गंगा स्नान भी कहते हैं, आपस में मिलने का, एक दूसरे का सुख-दुख समझने का।
कोई अपनी मां से, कोई अपने पिता से, कोई भाई से, कोई बहन से, कोई अपनी पत्नी से बहुत दिनों के बाद, वो भी कोई मुंबई, तो कोई अहमदाबाद, तो कोई बेंगलूरु से तो कोई झारखण्ड के विभिन्न शहरों से बिहार व यूपी को गया हैं। भला वो अपने लोगों को छोड़कर इतना जल्दी कैसे आ जायेगा। अरे मूर्खों जब आप उत्तर प्रदेश में होनेवाली विधानसभा के उपचुनावों की तारीख में बदलाव करा देते हो, तो यही बात यहां क्यों नहीं लागू करवाई? आखिर ये कौन ऐसी बुद्धि हैं, जो झारखण्ड के लिए अलग और उत्तर प्रदेश के लिए अलग इस्तेमाल होती हैं।
अरे मूर्खों, कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का क्या महत्व हैं। देवोत्थान एकादशी के दिन गंगा स्नान का क्या महत्व हैं। यह जानना है तो गंगा के तट पर बसे बिहार के पटना, बक्सर, आरा, मुंगेर, खगड़िया, भागलपुर, कटिहार, लखीसराय, समस्तीपुर, वैशाली, सारण के निवासियों से जाकर पूछ लो कि इस दिन कहां-कहां से लोग दूर-दूर गांवों, कस्बों व मुहल्लों से गंगा के तट पर पहुंचते हैं। उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों की ओर उमड़ते हैं, जहां से होकर गंगा बहती है। ऐसे समय में चुनाव की तिथियों की घोषणा करवाना मूर्खता नहीं तो और क्या है?
आप जो खुद को बहुत बढ़िया समझने की जो भूल कर रहे हो। जान लो। ये सारे के सारे वोटर तुम्हारे ही तो थे। जो तुम्हारी मूर्खता के कारण तुम्हें प्राप्त नहीं होंगे। हालांकि इसी बात को कुछ दिन पहले झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने उठाया था। लेकिन तुम लोगों को उसमें भी राजनीति ही लग रही थी। अब झाल बजाते रहो।
विद्रोही24 के पास डाटा उपलब्ध है। बहुत सारे लोग जो झारखण्ड से बिहार और यूपी को गये हैं। वो बिना कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान किये बिना नहीं लौटेंगे। जब तक उनकी अपनों से मिलने की प्यास तृप्त नहीं होंगी। वे नहीं लौंटेंगे। अब इसमें घाटा किसका हुआ। समझते रहो। इसमें तो दस प्रतिशत ही वोटर झामुमो गठबंधन के होंगे। ज्यादातर वोटर तो तुम्हारे ही थे, जो तुम्हारी गलत सोच के कारण अब उनके वोट तुमको नहीं मिलेंगे। ये ध्रुव सत्य हैं। मतलब हर तरफ से तुम गये, काम से।
एक अपराधी प्रवृत्ति का आदमी गुंडा की तरह ही बोल बोलेगा