धर्म

आपके द्वारा किये जा रहे गहरे ध्यान से अगर आपके आचरण में कोई सुधार नहीं हो रहा, तो फिर आपके गहरे ध्यान का कोई महत्व नहीं रह जाता, मतलब स्पष्ट है कि आप सही दिशा में नहीं जा रहेः ब्रह्मचारी गौतमानन्द

केवल गहरा ध्यान ही महत्वपूर्ण नहीं, महत्वपूर्ण यह भी है कि उस ध्यान का आप पर कितना प्रभाव है? आपके व्यवहार में उसका असर क्या है? अगर गहरे ध्यान के बाद भी आपके आचरण में सुधार नहीं, तो फिर गहरा ध्यान करना और नहीं करना दोनों बराबर है। आपके आचरण में छुपी बुराई और आपके द्वारा किये जानेवाले अनुचित व्यवहार भी यह बता देता है कि आप गहरे ध्यान में कभी गये ही नहीं, क्योंकि चित्त में बुराई का होना भी गहरे ध्यान में नहीं जाने का संकेत दे देता है। यह बातें आज योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए ब्रह्मचारी गौतमानन्द ने योगदा भक्तों के बीच कहीं।

उन्होंने कहा कि आप जैसा जीते हैं, वो हमारे ध्यान पर असर डालता है। उन्होंने कहा कि जब कोई हमसे कहता है कि आप अपने व्यवहार पर ध्यान दें, उसमें सुधार लाये, ठीक करें। तो ये बाते हमारे अंदर छुपी अहंकार को चुभती है। जबकि सच्चाई यही है कि सुंदर तरीके से जीने की कला हमें बेहतर इन्सान बनाने में हमारी मदद करती है। जब हम अपने आचरण व व्यवहार को ठीक करने में लगाते हैं तो सही मायनों में हमारा अहंकार जाता रहता है।

उन्होंने कहा कि हमेशा यह याद रखें कि योग हमें सामंजस्यतापूर्ण जीवन जीने की कला सीखाता है। हमेशा आप अपने योगदा से संबंधित गुरुओं द्वारा बताये मार्गों का अनुसरण करें, ये बहुत ही जरुरी हैं। केवल ध्यान करने से आपके अंदर अच्छी भावनाएं नहीं जागृत होंगी। हमेशा आचरण को बेहतर बनाने का अभ्यास करते रहे। उन्होंने कहा कि विचार सही है तो आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होगी और अगर विचार सही नहीं है तो आपके अंदर नकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होगी।

ब्रह्मचारी गौतमानन्द ने कहा कि दूसरों की सेवा, बिना किसी स्वार्थ के दूसरों को अच्छे कामों के लिए मौका देना आपको बेहतर इन्सान बनाने में मदद करती है। आप दूसरों से अपेक्षा रखना छोड़ दें। उससे अच्छा रहेगा कि आप यह देखें कि आपको कैसे कोई काम करना है और क्यों करना हैं? यही एक साधक के महत्वपूर्ण गुण है।

उन्होंने कहा कि ऐसे साधक या मनुष्य ही स्वयं शांतचित्त रहते हैं तथा अपने आस-पास एक बेहतर माहौल को जन्म दे देते हैं। हालांकि मनुष्यों की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होती हैं, वे अवगुणों की ओर ज्यादा और बहुत ही तेजी से आकृष्ट होते हैं, जबकि अच्छे लोग या महान संत हमेशा गुणों को महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि जब हमारे गुरु/ईश्वर आपके अंदर छुपी सारी बुराइयों के बावजूद आपका इतना ख्याल रखते हैं। सिर्फ और सिर्फ आपकी उत्थान के बारे में सोचते हैं तो आप दूसरे के उत्थान व कल्याण के बारे में क्यों नहीं सोच सकते।

उन्होंने योगदा भक्तों को सलाह दी कि जब क्रोध या कोई अवगुण आपको ढंकने या आपके उपर प्रभुत्व जमाने की कोशिश करें तो आप तुरन्त उसका प्रतिकार करें, उस पर काबू पाने का प्रयास करें। यह कहकर कि यह आपका स्वभाव नहीं हैं या वो आप नहीं हैं। अगर आप ऐसा प्रयास नहीं करते तथा लंबे समय तक इस प्रवृत्ति को लेकर नहीं चल सकते तो फिर आप बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि मानव मन हमेशा से अपनों के द्वारा किये गये गलतियों को तो क्षमा कर देता हैं। लेकिन दूसरों के द्वारा किये गये गलतियों को क्षमा नहीं करता और जो दूसरों की गलतियों को क्षमा नहीं करता, उसके प्रति प्रेम नहीं रखता, वो ईश्वर के दिव्य प्रेम को कभी समझ ही नहीं सकता। उन्होंने कहा कि अपनी प्राण शक्ति को हम जैसे-जैसे ध्यान के द्वारा उच्च अवस्था की ओर ले जाते हैं। हमारा विचार भी उच्च अवस्था में आने लगता है।

उन्होंने कहा कि हमेशा याद रखे कि हमारी कई शत्रुएं हैं। जो हमें बेहतर इन्सान बनाने से रोकती है। पहला – स्वाध्याय से दूरी – जब हम गुरुजी के द्वारा लिखी गई पुस्तकों से दूरियां बनाते हैं तो हम अपने विचारों को बेहतर बनाने में बाधक बनने लगते हैं। दूसरा – बुरी आदते। तीसरा – चंचल मन और चंचल विचार, इस चंचल मन को हम योग के द्वारा ही ठीक रख सकते हैं।

इसलिये योगदा द्वारा बताये गये क्रिया योग का जितना हम अभ्यास करेंगे। हम उतनी ही बेहतर स्थिति में चलते चले जायेंगे। चौथा -चंचल प्राणशक्ति मतलब अपने प्राणशक्ति को बेहतर बनाने का हमेशा प्रयास करें, मतलब स्थिर रखने का प्रयास करें। पांचवा – लक्ष्य का अभाव – हमेशा लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखें, हमने शरीर क्यों धारण किया हैं। हमारा लक्ष्य है – सिर्फ और सिर्फ ईश्वर की प्राप्ति और इसके लिए हमें हमेशा जागृत रहना है। इस संकल्प को कभी खोने नहीं देना है।