हार की समीक्षा या संघ-भाजपा के समर्पित स्वयंसेवकों-कार्यकर्ताओं की आंखों में एक बार फिर से धूल झोंकने की कोशिश, अगर यही हाल रहा तो 2029 में भी झामुमो से भाजपा धूल चाटने के लिए तैयार रहे
आज भाजपा प्रदेश कार्यालय में भाजपा के दिग्गज जुटे हैं। ये वे लोग हैं। जो भाजपा के कर्णधार हैं। जो भाजपा के रहनुमा हैं। हार के कारणों का पता लगाने के लिए जुटे हैं। जैसा कि भाजपा भक्त अखबारों व पत्रकारों का कहना है। ये भाजपा भक्त अखबार, पत्रकार व सोशल साइट पर भाजपा के लिए स्पेशल लिखनेवाले लोग तो हार का कारण भी ढूंढ लिये हैं। ये हार का कारण क्या बता रहे हैं। जरा उस पर ध्यान दीजिये। आप उसे पढ़कर हंसते-हंसते लोट-पोट हो जायेंगे और भाजपा के दिग्गज लोग शायद इसी को हार का कारण मानकर पिंड भी छुड़ा लेंगे और कहेंगे कि हो गई हार की समीक्षा।
इन बेवकूफ पत्रकारों व अखबारों/चैनलों व पोर्टलों ने भाजपा के हार का कारण क्या बताया है, तो जरा ध्यान दीजिये। इन्होंने हार का कारण बताया – आरएसएस का आदिवासी इलाकों में कमजोर होना, ईसाई मिशनरियों का प्रभाव बढ़ना, संघ का आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हो जाना, संघ की शाखा नहीं लगना। अब सवाल उठता है कि अगर यही मूल कारण हैं भाजपा के हार का तो फिर 2024 में ही भाजपा लोकसभा की 14 सीटों में से नौ सीटें कैसे हथिया ली? क्या लोकसभा चुनाव के समय ये ईसाई मिशनरियां कमजोर थी और विधानसभा चुनाव के समय मजबूत हो गई? दरअसल न तो ईसाई मिशनरियां कल कमजोर थी और न आज कमजोर हैं और न संघ कल मजबूत था और न आज कमजोर है।
तो गलतियां हुई कहां से? गलतियां हुई भाजपा के नई दिल्ली में बैठे अमित शाह जैसे कर्णधारों से। गलतियां हुई असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से। गलतियां हुई दीपक प्रकाश, प्रदीप वर्मा, आदित्य साहू, रवीन्द्र राय, कर्मवीर सिंह जैसे सत्तालोलुप नेताओं से। जिन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं व संघनिष्ठ स्वयंसेवकों को अपने ठेंगे पर रखा और बाहरी असामाजिक तत्वों पर भरोसा जता दिया।
इन असामाजिक तत्वों ने देखा कि अरे जिसे लोग गृह मंत्री कहते हैं, असम के मुख्यमंत्री कहते हैं, वो तो हमारे इशारों पर नाच रहा हैं। तो उसने इन सारे लोगों को खुब नचाया और अपने साम्राज्य को इन भाजपा के ही नेताओं पर खूब बढ़ाया और फिर दिल्ली खिसक लिया और इन सारे नेताओं को खूब उल्लू भी बनाया। जिस असामाजिक तत्व को राज्य सरकार ने नौ महीने तक जेल की कोठरी में डाला। उसे इनलोगों ने अपना सरताज बनाया। उसके इशारे पर प्रेस कांफ्रेस तक होने लगे। कारपोरेट डिनर से लेकर कारपोरेट ब्रेकफास्ट तक का आयोजन होने लगा।
जिन पत्रकारों को कोई नहीं जानता था। उन पत्रकारों को ये लोग माथे लेकर नाचने लगे और जो इनको मार्ग बताता था उसे अपना शत्रु मान लिया और उसे कह दिया कि ये तो झामुमो का प्रवक्ता है। ये तो झामुमो से हर महीने पैसे लेता है। ये तो झामुमो का भोंपू हैं और नतीजा क्या निकला, जिसे ये गाली देने में लगे थे, जिसे ये अपने मीडिया ग्रुप से बाहर का रास्ता दिखाया। उसी की बात 2019 की तरह, 2024 में भी अक्षरशः सही हो गई और अब 2029 में भी सही होगी। लिख लीजिये। झामुमो गठबंधन अगली बार 65 से भी अधिक सीटें जीतेगा, क्योंकि भाजपा सुधरनेवाली नहीं हैं। ये अब भी उसी राह पर चल रही हैं, जैसा कि ये पहले चल रही थी।
जबकि दूसरी ओर झामुमो को देखिये। सारे अखबार, चैनल, पोर्टल तक झामुमो चुनाव परिणाम के आने-आने तक खिलाफ रहे। जितना इन सभी ने भाजपा को सपोर्ट किया। उतना तो झामुमो का किया ही नहीं। मैं दावे के साथ कहता हूं कि रांची के अखबारों-चैनलों व पोर्टलों में हेमन्त सोरेन अपने और अपने पार्टियों के नेताओं के लिए न्यूज के लिए तरस गये, लेकिन किसी ने ईमानदारी पूर्वक पत्रकारिता धर्म का निर्वहण नहीं किया।
एक अखबार प्रभात खबर तो जिस दिन मोदी रांची में थे। उस दिन मोदी विशेषांक ही निकाल दिया। एक पेज में हेंडिग तक दे दी। मोदी जी को जयश्रीराम। बताइये, जब अखबार मोदी जी को जयश्रीराम लिखना शुरु कर दें। वहां अब हार के बाद कोई अखबार, मीडिया या उसमें काम करनेवाला पत्रकार अब यह लिखे कि हार का कारण ईसाई मिशनरियों का बढ़ता प्रभाव हैं तो इससे साफ स्पष्ट होता है कि वो भाजपा की दलाली कर रहा हैं।
आश्चर्य तो यह भी है कि पता नहीं कैसे राज्य निर्वाचन आयोग, अपने यहां ऐसे-ऐसे पत्रकारों को अपने यहां बुलवाकर सम्मानित भी कर दिया। उन्हें सुंदर-सुंदर गिफ्ट भी दिये। ये कहकर कि इन्होंने बहुत अच्छे ढंग से चुनाव को कवरेज किया। जबकि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि राज्य निर्वाचन आयोग ने अपने धर्म का निर्वहण ठीक ढंग से नहीं किया। जिसका उदाहरण/समाचार विद्रोही24 ने कई बार अपने पोर्टल पर दिया।
पर यहां तो सभी को अपनी ठकुरसोहाती पसंद हैं, तो पत्रकार भी, राज्य निर्वाचन आयोग की ठकुरसोहाती में लगा रहा और इस ठकुरसोहाती के बदले राज्य निर्वाचन आयोग ने भी एक दिन भोज-भात देकर सुंदर-सुंदर गिफ्ट इन्हें थमा दिये। पत्रकार खुश, राज्य निर्वाचन आयोग खुश। इधर कार्यक्रम समाप्त हुआ। उधर कई मूर्धन्य पत्रकार राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा तथाकथित सम्मान का फोटो भी फेसबुक पर डाल दिये, जिनमें दोनों का दांत निपोड़ता चेहरा भी नजर आया।
सच्चाई यह है कि भाजपा के हार के ये सब कारण ही नहीं। अगर ईसाई मिशनरियां मजबूत थी तो जयराम महतो की पार्टी के टिकट पर लड़ रहे प्रत्याशियों का समूह इतना वोट कैसे ले आया कि जिससे कई जगहों पर भाजपा की हार हो गई तो कई जगहों पर झामुमो की जीत भी हो गई। दरअसल आपके कार्यकर्ता जो थे। उन्होंने पाला बदल लिया। पाला बदलने का भी कारण आप ही लोग थे। बेचारे क्या करते। आपलोगों ने बाहरी लोगों पर विश्वास करना शुरु किया तो उन्होंने देखा कि सबक सिखाना जरुरी हैं। सबक सिखा दिया। क्या समझते हैं कि आप ही लोग चालाक है। अब कार्यकर्ता भी चालाक हो गया है।
याद करिये। लोकसभा का चुनाव आता है। लोकसभा चुनाव के आने के पूर्व विभिन्न लोकसभा सीटों पर भाजपा का प्रत्याशी कौन होगा? इसको लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं से रायशुमारी करवाई जाती है और फिर होता क्या है। उन भाजपा कार्यकर्ताओं की रायशुमारी जाती हैं तेल लेने और बाद में पता चलता है कि धनबाद से प्रत्याशी होंगे – ढुलू महतो। अब जरा बताइये कि रायशुमारी में धनबाद से लोकसभा के लिए ढुलू का नाम गया था क्या? इसी प्रकार जमशेदपुर से एक नंबर में नाम रहता है – कुणाल षाड़ंगी का और टिकट किसे मिल जाता है तो कुर्मी जाति के नाम पर विद्युत वरण महतो को। आपही लोग हैं न, रांची से लोकसभा के लिए प्रदीप वर्मा का नाम भेज दिया था, बाद में दिल्ली ने सुधारकर रांची से संजय सेठ का नाम ओके किया।
तो भाई लोकसभा में रायशुमारी कराकर आपने तो भाजपा कार्यकर्ताओं को वो चूना लगाया कि भाजपा कार्यकर्ता तो भूले ही नहीं थे। वे तो मौका ढूंढ रहे थे, आपको चूना लगाने का। इसलिए वो चूना लगा दिये। ऐसे मेरे पास कई उदाहरण है। लेकिन मैंने तीन ही उदाहरण देकर इसे आपके समक्ष रखा था और यही हाल आपने विधानसभा चुनाव में भी कर दिया।
उसके पहले आपने क्या किया? जिसे मन किया। उसे जिलाध्यक्ष बना दिया और उस जिलाध्यक्ष ने जिसे मन किया उसे मंडल अध्यक्ष बना दिया और इस मंडल अध्यक्ष बनने-बनाने के चक्कर में भाजपा इतनी नीचे चली गई कि आपको इस पर ध्यान ही नहीं रहा। बस आप मोदी-मोदी चिल्लाते रहे कि मोदी जी की कृपा से आप चुनाव जीत जायेंगे। अरे मूर्खों, लोकसभा के लिए लोगों ने मोदीजी को तो चून ही लिया। हर बार मोदीजी को ही चूनेंगे।
अब पंचायत चुनाव और नगर निगम चुनाव में भी मोदी जी को चुनाव प्रचार करने के लिए तब भेज दीजिये। आप क्यों नहीं समझते कि यहां की जनता महाराष्ट्र या हरियाणा की नहीं। यहां की जनता सबक सिखाना जानती है। यहां की जनता नेता प्रतिपक्ष व मुख्यमंत्री तक को नहीं पहचानती। सभी को उसका औकात बता देती हैं। जीताती हैं तो दिल से और हराती भी हैं तो दिल से। इस बार आप सभी को दिल से हराई हैं। यह कहकर कि आप झारखण्ड के लायक नहीं हैं। जब झारखण्ड के लायक बनेंगे तो देखेंगे। फिलहाल तो हेमन्त ही सही हैं।
आपलोगों ने तो ऐसे-ऐसे काम किये हैं कि उससे झामुमो को ही फायदा हुआ। जो-जो लोग झामुमो के लिए सिरदर्द बने हुए थे। पता नहीं आप किस चिलगोजे के कहने पर अपनी पार्टी में शामिल करते चले गये। नतीजा देख लीजिये। चम्पई सोरेन को छोड़कर सभी की हालत क्या हैं? आपको क्या लगता है कि आप हरिनारायण राय, निरंजन राय, मधु कोड़ा, कमलेश सिंह, भानुप्रताप शाही आदि लोगों को गले लगायेंगे और हेमन्त सोरेन को आंखे दिखायेंगे तो जनता आपके साथ हो जायेंगी। नहीं न। यहां की जनता महाराष्ट्र व हरियाणा की जनता नहीं हैं। फिर कह रहा हूं। समझने की कोशिश कीजिये।
जरा पूछिये। उन नेताओं से कि चुनाव के नाम पर जो दिल्ली से भारी-भरकम राशि झारखण्ड में झोंकी गई। वो राशि कहां हैं? किसके पास हैं? आखिर वो भाजपा कार्यकर्ताओं तक क्यों नहीं पहुंची। आखिर वो राशि भाजपा प्रदेश स्तरीय नेताओं के पास ही क्यों रहीं? यह इसलिए मैं लिख रहा हूं कि कई इलाकों में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने विद्रोही24 को बताया कि उन्हें पैसे नहीं मिले। आखिर वे कौन हैं, जो अपनी बहू, अपने साले, अपनी पत्नी, अपने भाई, अपने बेटे के लिए मगजमारी करते हैं। लेकिन भाजपा व संघनिष्ठ कार्यकर्ताओं को पेट और पीठ दोनों पर हमले करते हैं। जिस दिन ये जान लीजियेगा और जिस दिन इसका इलाज कर दीजियेगा, आप झारखण्ड में मजबूत हो जाइयेगा।
लेकिन ये भी मैं कह देता हूं कि जब तक दीपक प्रकाश, आदित्य साहू और प्रदीप वर्मा जैसे लोग आपकी पार्टी में रहेंगे। आपकी पार्टी रसातल में चलती चली जायेंगी। उसके लिए हेमन्त सोरेन या उनके लोगों को कुछ भी करने की जरुरत नहीं। आप फिलहाल झारखण्ड में कहीं नहीं हैं। अगर आपको लगता है कि आपने 21 सीटें जीती हैं तो यह भी आपकी भूल हैं। वो भी हेमन्त सोरेन ने आपको उधार में दे दी हैं। क्योंकि लोकतंत्र में एक विपक्षी दल भी होना चाहिए।
कमाल करते हैं। ईसाई मिशनरियां की बात करते हैं। ईसाई मिशनरियां ही जयराम महतो को कह दी थी कि तुम सारे सीटों पर अपना उम्मीदवार दे दों। क्या ईसार्ई मिशनरियां ही कह दी थी कुर्मियों को, कि आप अपना वोट सुदेश महतो की पार्टी को न देकर, जयराम महतो को दे दो। अरे भाई कहां से ये सब दिमाग लाते हो?
अंत में चिलगोजों से दूर रहिये। ये चिलगोजे आपकी पार्टी में भी हैं और पत्रकारों में तो ये भरे पड़े हैं। अगर चिलगोजों के नाम चाहिए, जिनके कारण आपकी पार्टी पूरे प्रदेश से बिला गई तो उसके लिए विद्रोही24 से सम्पर्क करिये। प्रमाण के साथ बतायेगा कि आप पूरे प्रदेश से क्यों बिला गये? इस आर्टिकल में तो कुछ बिंदुओं को हमने रखा हैं। ऐसे कई बिंदु हैं। जो हमारे पास हैं। जो आपको जानना चाहिए। लेकिन आप हमसे सम्पर्क करेंगे कैसे? आपके पास तो बुद्धिजीवियों की भरमार हैं। हैं न। तो भाई 2029 में फिर से हार का मंथन करने के लिए तैयार रहिये। तथास्तु।