विपक्ष ने सदन नहीं चलने के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास की हठधर्मिता को जिम्मेवार ठहराया
केवल मुख्यमंत्री रघुवर दास की हठधर्मिता के कारण पिछले छः दिनों से विधानसभा ठप है। न तो प्रश्न काल ही चल रहा, न ही बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू अपना पूरा अभिभाषण ही पढ़ सकी, न राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव ही पूरा हो सका, न ही मुख्यमंत्री के बजट पेश करने के दौरान विपक्षी दलों ने बजट भाषण को सुनने में दिलचस्पी दिखाई, न ही वित्तीय वर्ष 2018-19 के आय-व्ययक पर सामान्य वाद विवाद ही हो सका।
पिछले 17 जनवरी से बजट सत्र प्रारंभ हुआ है जो 7 फरवरी तक चलेगा। इनमें छः दिन पूरी तरह से हंगामे के भेंट चढ़ गये, बचे 9 दिन, हमें नहीं लगता कि ये शेष 9 दिन भी विधानसभा ठीक से चल पायेगी, क्योंकि न तो सत्ता पक्ष झूकने को तैयार है और न ही विपक्ष। सत्तापक्ष ने तो जैसे संकल्प ही ले लिया है कि सदन चले या न चले, पर वे विपक्षी दलो के आगे नहीं झूकेंगे और विपक्ष ने भी यह तय कर लिया है कि वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर, प्रशासनिक अधिकारियो की गलत रवैये के मुद्दे पर नहीं झूकेगी और सरकार को इन मुद्दों पर झूका कर दम लेगी।
विपक्ष ने तो पिछले सत्र के दौरान ही तय कर लिया था, कि वह आनेवाले समय में सदन नहीं चलने देगी, जब मुख्यमंत्री रघुवर दास ने विपक्षी दल के नेताओं के खिलाफ विवादास्पद बयान दिया था। दरअसल विधानसभा की गरिमा, उसकी मर्यादा की चिन्ता किसी को नहीं हैं। जिन्हें लोकतंत्र में विश्वास हैं, जिन्हें सदन की चिन्ता हैं, उसकी गरिमा की चिन्ता है, वे जानते हैं कि सदन चलाने की जिम्मेवारी सर्वाधिक सरकार की होती है, पर सरकार ही यह निश्चय कर लें कि सदन चले या न चले, उसकी कोई परवाह नहीं तो यहीं नजारा देखने को मिलता है, जैसा की फिलहाल झारखण्ड विधानसभा में देखने को मिल रहा है।
मुख्यमंत्री को मालूम होना चाहिए कि सदन सरकार की आरती उतारने के लिए नहीं बना है, और न ही विपक्ष कभी उसकी आरती उतारने की चेष्टा करेगा, ये जो ठकुरसोहाती का रोग जो सत्तापक्ष को लग गया है, ये आनेवाले समय में भाजपा के लिए काल बनेगा, इसे कोई नकार नहीं सकता। आज छठे दिन, जिस प्रकार से विपक्ष ने सरकार को अनुराग गुप्ता तथा डीजीपी मामले पर सरकार को घेरा, विधानसभा परिसर में नारेबाजी की, उससे साफ लगता है कि ये टकराव और बढ़ेगा।
आज नया चीज देखने को यह मिला कि आज सत्तापक्ष, विपक्ष के खिलाफ तख्ती लेकर विधानसभा के मुख्य द्वार पर प्रदर्शन के लिए निकल पड़ा, यानी स्थिति पूरी तरह नारकीय हो गयी, जब सत्तापक्ष भी धऱना और प्रदर्शन करने लगे, वह भी विधानसभा के मुख्य द्वार पर, तो समझ लीजिये स्थिति कितना नारकीय हो चुकी है। छः दिन समाप्त हो गये, सदन हंगामें में डूबा है, राज्य सरकार को अपने मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक तथा एडीजी की चिंता ज्यादा सता रही है, शायद वह मान चुकी है कि सदन मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक तथा एडीजी के सम्मान की रक्षा के लिए बनी है, इसलिए कुछ भी हो जाये, जनता की समस्याओं पर चर्चा हो या न हो, पर वह विपक्ष की बात नहीं मानेगी, पर विपक्ष ने भी ठान लिया है कि अगर उनकी बात नहीं सुनी गई तो सदन भी नहीं चलेगी।
ऐसे में, समझ लीजिये कि राज्य की क्या स्थिति है? सत्ता में शामिल वे मंत्री, जो अपने इलाके में अथवा किसी इलाके के दौरे पर जब निकलते हैं, तो उस वक्त उनकी शरीर में, मानो ऐसा लगता है कि विपक्ष की आत्मा प्रवेश कर गई हो, वे सरकार को कोसने से नहीं चूकते और न ही सीएम को पत्र लिखने से चुकते हैं, पर जैसे ही सदन चलना प्रारम्भ होता है, वे जनता को भूल कर, सरकार बचाने पर ज्यादा ध्यान देने लगते है, शायद उस वक्त सदन में उनकी पार्टी की विशेष आत्मा प्रवेश कर जाती हो, ऐसे में विपक्ष तो वहीं करेगा, जो उसे करना चाहिए, और जो लोग इसके लिए विपक्ष को दोषी ठहराते हैं, उन्हें कम से कम अपनी आत्मा से पूछना चाहिए कि वे कितने सत्य के नजदीक है।