अपनी बात

रघुवर की राजनीतिक सक्रियता की ओर कदम बढ़ाने पर राज्य की जनता में भय व्याप्त तो दूसरी ओर उनके समर्थकों व शोषकों में हर्ष की लहर, राजनीतिक पंडितों ने कहा भाजपा अपनी समूल नाश की ओर बढ़ाया कदम

रघुवर दास जिसके आतंक से झारखण्ड को 2019 में मुक्ति मिली थी। राज्य की जनता ने केवल इसकी पार्टी ही नहीं, बल्कि इसे भी जमशेदपुर पूर्व से धूल चटाया था। आज फिर सुर्खियों में हैं। सुर्खियों में ये शख्स इसलिए हैं कि उससे ओडिशा के राज्यपाल से छुट्टी कर दी गई हैं और उस पर केन्द्र की मोदी सरकार कुछ नया दायित्व देना चाह रही है।

रघुवर दास को भी ओडिशा के राज्यपाल पद पर रहने में उतना आनन्द नहीं प्राप्त हो रहा था, जो आनन्द उसे झारखण्ड में रहकर पूर्व में मिला करता था। इसलिए वह पहले से ही दिमाग लगा रहा था कि पार्टी फिर से उसे अपने शरण में लें और उसे तथा उसके समर्थकों को वो सब करने दें, जिसके लिए वो जाने जाते हैं। लीजिये, वो मौका भी उनकी पार्टी के लोगों ने आज से दे दिया है।

वे जल्द ही झारखण्ड में दिखाई पड़ेंगे और वो सब करेंगे, जिनके लिए वे जाने जाते हैं। आपको याद होगा कि जब ये झारखण्ड की सत्ता में थे तो उनके मुख्यमंत्रित्व काल में झारखण्ड के सिमडेगा की रहनेवाली 11 वर्षीया संतोषी भात-भात चिल्लाते-चिल्लाते भूख से मर गई थी। जिस केस पर सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई ने कहा था कि भूख से लोगों का मरना गंभीर बात है, चार सप्ताह में केन्द्र सरकार से इससे संबंधित रिपोर्ट भी मांग गई थी।

याद करिये, इसी के शासनकाल में रांची के चान्हों में एक किसान लखन महतो ने आत्महत्या तक कर ली थी। याद करिये, इच्छिता के पिता जो अपनी बेटी इच्छिता को खो चुका था, जब अपनी बेटी की हत्या की जांच सीबीआई से जांच कराने की मांग को लेकर रघुवर दास के पास पहुंचा था, तब रघुवर ने उसकी बीच सभा में बेईज्जत करते हुए कहा था कि तुम बेटी के नाम पर राजनीति करता है। रघुवर ने उस पिता को बेइज्जत करते हुए मंच से उतरवा दिया था। रघुवर की इस हरकत को देख तो लोग उस वक्त सन्न रह गये थे।

अपने कार्यकर्ताओं को चिरकूट कहना, आइएएस-आइपीएस को भरी सभा में बेइज्जत करना तो उसका बाये हाथ का खेल था। जिस रघुवर को कभी भाजपा के कार्यकर्ताओं ने ही ‘चुपेचाप चचा साफ’ का नारा देकर किनारे करवा दिया था। अब वे केवल उसके राजनीति में फिर से सक्रिय होने को नाम सुनकर कांप गये हैं। उन्हें लग रहा है कि फिर से भाजपा में रघुवर का खूलेआम आतंक दिखेगा। जातिवाद का जहर बोया जायेगा।

रघुवर की जातिवादी राजनीति और उससे जुड़े लोग किसी को भी झूठे केस में फंसाकर, जेल में डलवाने का षडयंत्र करेंगे और बाहर से मजे लेंगे। वैसे आईएएस-आईपीएस की बन जायेगी, जो उसके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। चाहे आम जनता की जान ही क्यों न निकल जाये। लेकिन चूंकि अभी सरकार यहां झामुमो की हैं तो राहत इस बात की हैं कि फिलहाल इनकी उतनी नहीं चलेगी, जितनी इनकी उस वक्त चलती थी, जब वे सत्ता में थे।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि रघुवर का सक्रिय राजनीति में आना, चाहे वो केन्द्र की राजनीति करे या प्रदेश की राजनीति करे, यह शुभ संकेत नहीं हैं। यह आम जनता के लिए खतरे का संकेत हैं। इस व्यक्ति पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यह अपनी स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकता है। झारखण्ड इसके शासनकाल में जितना नीचे गिरा, उतना कभी नहीं गिरा। अपने विरोधियों के लिए अनुचित शब्दों का प्रयोग, वो भी विधानसभा में करना, गढ़वा में ब्राह्मणों के खिलाफ आग उगलना और उसके बाद पूरे प्रदेश में ब्राह्मणों द्वारा इसके खिलाफ आंदोलन खड़ा करना, जनता अभी तक भूली नहीं हैं।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि रघुवर दास अगर केन्द्र की राजनीति करते हैं तो इसका मतलब है कि पूरे देश से भाजपा साफ और अगर झारखण्ड की राजनीति करते हैं तो पूरे प्रदेश से भाजपा का समूल नाश तय हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि ऐसे भी भाजपा के लिए वर्तमान समय ठीक नहीं चल रहा। प्रदेश में हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने इनलोगों को कहीं का नहीं छोड़ा हैं।

स्थिति ऐसी है कि उनके पार्टी का विधायक दल का नेता कौन होगा? अभी तक निर्णय नहीं कर पाये हैं। कल तक जो पार्टी आदिवासी व दलित प्रेम का मुखौटा लेकर घूम रही थी, आज अमर कुमार बाउरी के हार जाने और बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में हुए चुनाव के बाद बुरी तरह से पूरे राज्य में पीट जाने के बाद फिर से वैश्य की राजनीति की ओर मुड़ गई हैं। मतलब, भाजपा ने सिद्ध कर दिया कि उसके लिए आदिवासी और दलित कुछ भी नहीं, उनके लिए पहला और आखिरी पसंद वैश्य वर्ग है। उसके बाद ही कुछ और है।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर यही स्थिति रही तो आनेवाले समय में भाजपा का नाम लेनेवाला कोई नहीं होगा। क्योंकि रघुवर दास को तो बोलने तक नहीं आता। किससे कब और कहां कौन सी बात बोली जाती है। आज तक उसे नहीं आया। ये जहां भी गये, जिस पद पर गये, इनके और इनके लोगों ने उस पद को कलंकित किया। अगर आपको विद्रोही24 की बातों पर भरोसा नहीं तो जाकर ओडिशा का राजभवन जाकर देख आइये, जहां रघुवर दास का बेटा ललित दास ने वहां के एक कर्मचारी के साथ कैसा सलूक किया?

कहने और लिखने को तो बहुत है। लेकिन इतना जान लीजिये, रघुवर दास के झारखण्ड की राजनीति में सक्रिय हो जाने से जो आदिवासी, दलित पहले से भाजपा से दूर हो गये थे, अब तो सवर्ण भी इनसे सदा के लिए दूर हो जायेंगे और रघुवर दास तथा भाजपा, झारखण्ड प्रदेश में कहीं दिखाई नहीं पड़ेंगे। इनका नामलेवा भी कोई नहीं बचेगा।

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