जातीयता के मुद्दे पर भाजपा बेनकाब, CM रघुवर ने शुरु की जातिवादी राजनीति
महात्मा गांधी जब तक जिन्दा रहे, जात-पात, अस्पृश्यता, छुआछूत से आजीवन लड़ते रहे। सामाजिक समरसता के लिए उनका जीवन एक संदेश हैं, उनके इस बहुमूल्य जीवन पद्धति से बलिहारी होकर रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने उन्हें महात्मा घोषित किया, और आज उस महात्मा को जाति में तौला जा रहा हैं, उन्हें एक जाति विशेष का बताया जा रहा है, और उस जातीय रैली में भाजपा का नेता, राज्य का मुख्यमंत्री भाग लेकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हैं, वह लोगों को बता रहा है कि वह एक मुख्यमंत्री के रुप में नहीं, समाज के सदस्य के रुप में आया है, आप सभी को कैसे आरक्षण मिले, इस दिशा में सरकार काम कर रही है। वाह रे मुख्यमंत्री, आपने तो वह काम करना प्रारंभ कर दिया, जिस काम को देखकर, महात्मा गांधी, पं. दीन दयाल उपाध्याय और लोकनायक जयप्रकाश नारायण की आत्मा आज जरुर कराह रही होगी।
याद करिये, ये मुख्यमंत्री रघुवर दास, लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की उपज हैं। ये वहीं लोग हैं, जो कहते है कि जयप्रकाश नारायण ने जाति तोड़ों-बंधन तोड़ों का नारा दिया था और आज यहीं लोगों जातिवाद की गंदी राजनीति के वटवृक्ष को और मजबूती प्रदान कर रहे हैं। ये वहीं लोग हैं, जो लालू यादव को इसी बात के लिए कटघरे में रखते हैं, और खुद जातीय रैली में भाग लेकर शान बघारते हैं, याद करिये, 2014 का लोकसभा चुनाव, जहां आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार के हर इलाके में जाकर जातीयता पर चोट करते थे और लोगों से जाति-पांति से उपर उठकर मतदान करने की बात करते थे, और आज उन्हीं की पार्टी का एक राज्य का मुखिया जातिवाद का बीज बो रहा हैं।
कमाल देखिये, वह इस जातीय रैली में महात्मा गांधी के चित्र पर माल्यार्पण कर लोगों को क्या संदेश दे रहा हैं? आप इस बात को समझिये। क्या झारखण्ड में सिर्फ इन्हीं की जाति के लोगों ने वोट दिया था, जिसके बल पर ये चुनाव जीत गये और मुख्यमंत्री बन गये? अगर ऐसा नहीं है, तो फिर राज्य की जनता को निर्णय लेना होगा कि आखिर वह कैसा झारखण्ड बनाना चाहते है? ऐसा झारखण्ड जो जाति-पांति में बंटा हो, या सभी का हो। आज तक झारखण्ड में जितने भी मुख्यमंत्री बने, किसी ने भी जातिवाद का ऐसा खेल नहीं खेला, जैसा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खेलना प्रारंभ किया है, ऐसे में झारखण्ड की जनता को आज ही संकल्प लेना होगा, कि वे कैसा झारखण्ड बनाना चाहते है? जातियुक्त या जातिमुक्त।
कमाल है, संघ की एक राजनीतिक इकाई है – भाजपा। अगर आप संघ में जाये तो आपके बगल में बैठकर कौन खाना खा रहा हैं, कौन पत्तल उठा रहा हैं? पता नहीं चलेगा, और आज उसी संघ की एक राजनीतिक इकाई – भाजपा के लोगों को देखिये, कैसे जातिवाद का गंध फैला रहे हैं, यानी हाथी के दांत खाने को कुछ और दिखाने को कुछ।
झारखण्ड के युवाओं को चाहिए कि इस प्रकार की राजनीतिक जातिवादी खेल से स्वयं को अलग करें और एक जातिमुक्त झारखण्ड निर्माण के लिए आगे बढ़े, नहीं तो इस जातिवाद के चक्कर में, न तो राज्य का भला होगा और न देश का। एक बात और, महात्मा गांधी या कोई भी महापुरुष जो देश के लिए मरा, वह किसी जाति का नहीं होता, वह सभी का होता है, उस पर सभी का अधिकार हैं, क्योंकि वह मानव मात्र का है।
बहुत ही दुखद स्थिति है और चिंतनीय भी जातिवाद ने पहले ही भारत का विकास और भाग्य को अवरुद्ध कर रखा है और जिन बुराइयों और कुरीतियों से लड़ने का आह्वान माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया था उनके सभी संकल्पों का सत्यानाश करने के लिए और भाजपा का पूर्ण विनाश करने के लिए कुछ तथाकथित विद्वान और महाज्ञानी लोग लग गए है और वह दिन भी दूर नहीं जब इनके इन क्रियाओं का प्रतिक्रिया जनता देगी बस इंतजार करि करिए ।
राजेश कृष्ण
रांची