धर्म

परमहंस योगानन्द जी की 132वीं जयन्ती की धूम, योगदा आश्रम में बही भक्तिरस धारा में डूबे लोग, दिन भर चला भंडारा, 11000 से भी अधिक लोगों ने लिया भाग, संन्यासियों व योगदाभक्तों के प्रेमानन्द की वर्षा में भींगी रांची

आज प्रेमावतार महायोगी परमहंस योगानन्द जी की 132वीं जयंती है। योगदा संन्यासियों व योगदा भक्तों हीं नहीं, बल्कि परमहंस योगानन्द के प्रेमानुभूतियों में डूबे लोगों के लिए आज का दिन सबसे खास दिन होता है। वे दौड़ पड़ते हैं, इस आनन्द में गोता लगाने के लिए योगदा सत्संग आश्रम की ओर, वे तब तक प्रेमानन्द की वर्षा में गोता लगाते रहते हैं, जब तक स्वयं को तृप्त न कर लें। ऐसे भी परमहंस योगानन्द जी की जयंती में कौन ऐसा व्यक्ति होगा, जो यहां आकर डूबना नहीं चाहेगा।

आज योगदा सत्संग आश्रम में बड़ी संख्या में योगदा भक्त जुटे। भारत के दूसरे राज्यों से भी लोग आज के विशेष दिन को अपने मन में सदा के लिए बसा लेने के लिए योगदा सत्संग आश्रम पहुंच चुके थे। इन सब ने प्रातः कालीन वेला में ध्यान केन्द्र में जाकर विशेष ध्यान किया तथा स्वामी श्रद्धानन्द गिरि द्वारा दिये गये परमहंस योगानन्द जी का विश्व परिवर्तक मिशन विषयक प्रवचन का लाभ उठाया।

इसके बाद धीरे-धीरे सभी की पांव शिव मंदिर की ओर चल पड़े। वहां परमहंस योगानन्दजी की विशेष जन्मदिन मनाने की तैयारी की गई थी। शिव मंदिर में बड़ा सुंदर ही परमहंस योगानन्द जी की विशेष चित्र को सुसज्जित कर रखा गया था। जहां पहले से ही बैठे ब्रह्मचारी शांभवानन्द, भक्तिरस धारा बहाये जा रहे थे। उनके साथ इस अवसर पर स्वामी शंकरानन्द, ब्रह्मचारी कैवल्यानन्द, ब्रह्मचारी प्रह्लादानन्द व ब्रह्मचारी गौतमानन्द भी उपस्थित थे। जो भक्तिरस धारा को और सुशोभित कर रहे थे।

जैसे ही ब्रह्मचारी शांभवानन्द ने गुरुकृपा हि केवलम्, गुरु कृपा हि केवलम्, गुरु योगानन्द शरणम्, गुरु योगानन्द शरणम्, गुरु योगानन्द शरणम् भजन गाया। मानो ऐसा लगा कि उनके साथ प्रकृति भी झूम रही हो और वो अपने महायोगी परमहंस योगानन्द जी के इस विशेष जन्म दिन पर कह रही हो, गुरुजी आपकी जय हो। यही नहीं इसके बाद तो भक्तिरस धारा थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। वहां बैठे सारे योगदा भक्त उस भक्तिरस धारा में स्वयं को समाहित कर रहे थे।

ब्रह्मचारी शांभवानन्द एक से एक भजन प्रस्तुत किये जा रहे थे। उनके मुक्तकंठ परमहंस योगानन्द जी को आज समर्पित थे। उन्होंने फिर गाया – गुरुदेव योगानन्द आओ, हम चरण शरण में आये हैं, हमें पार लगा जाओ, गुरुजी पार लगा जाओ…, जय गुरु, जय गुरु, जय गुरु जय, परमहंस योगानन्द जय गुरु जय…, हे आदिदेव गुरु शंकर पिता, हे सृष्टि तांडव रचयिता नटराज राज नमो नमः…, गुरु का ध्यान करो, मन में प्रेम भरो, गुरु की शरण में रहो, सदा तुम गुरु की शरण में रहो, सबका सहारा सद्गुरु नाम, योगानन्द सद्गुरु नाम, गुरुनाम बेड़ा पार करो, गुरु नाम सब दुख दूर करें, ओम् गुरु, ओम् गुरु, ओम् गुरु…

उसके बाद करुणामय गुरुदेव योगानन्द परमहंस आनन्दरुप प्रेम अवतारा…, संतों सतगुरु आया त लखाया… आदि भजन प्रस्तुत किये, लेकिन जैसे ही गुरु शरणम्, गुरु शरणम्, गुरु शरणम्, गुरु शरणम्, गुरुदेव योगानन्द शरणम्… गाया, मानो ऐसा लगा कि सारे महिला, पुरुष, बच्चे, संन्यासियों के साथ-साथ वहां के सारे वृक्ष-लताएं सस्वर गाने लगी हो। पूरा वातावरण योगानन्दमय हो चला था।

उधर दूसरी ओर योगदा संन्यासियों का समूह विभिन्न वैदिक मंत्रों से यज्ञ में आहूतियां डाल रहे थे। यज्ञ से निकलने वाली लपटें पूरे वातावरण को पवित्र कर रही थी। इधर जैसे ही योगानन्द जी की आरती उतारी गई और उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की गई। सारे योगदा भक्तों के नेत्र देखने लायक थे। भाव-विभोर हुई उनकी आंखें, अपने प्रिय गुरुदेव परमहंस योगानन्द को निहार रही थी और उसके बाद शुरु हुआ भंडारा।

भंडारा जैसे ही शुरु हुआ। बड़ी संख्या में पूरे रांची के लोग यहां आने शुरु हुए। परमहंस योगानन्द जी के प्रसाद को ग्रहण किया। अच्छी व्यवस्था थी। बड़ी संख्या में योगदा भक्तों ने अपनी उपस्थिति से योगदा संन्यासियों की सहायता से सभी को भंडारे के आनन्द से अवगत कराया। पूरे परिवार के साथ आये रांचीवासियों ने छककर परमहंस योगानन्द के जन्मोत्सव के अवसर पर चल रहे भंडारे का आनन्द उठाया। भंडारे का प्रसाद ग्रहण करने के लिए लगी लंबी कतारें इनकी भावनाओं को स्पष्ट रुप से परिलक्षित कर रही थी।

बता दें कि पिछले तीन जनवरी को भी, गुरुदेव परमहंस योगानन्दजी के सम्मान में, आश्रम ने सेवा गतिविधियां भी आयोजित की थी, जिसमे रांची के कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के लिए कॉलोनी में गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन भी कराया गया था। जहां ये कार्यक्रम आयोजित किय गये, वहां 10 जनवरी को उसी कॉलोनी में कंबल भी वितरित किए जाएंगे। याद रहें कि परमहंस योगानन्दजी ने 1917 में वाईएसएस की स्थापना भारत और पड़ोसी देशों में, क्रिया योग – एक पवित्र आध्यात्मिक विज्ञान जिसका उद्भव सहस्राब्दियों पूर्व भारत में हुआ था, की सार्वभौमिक शिक्षाओं को उपलब्ध कराने हेतु की थी।

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