अपनी बात

झारखण्ड में भाजपा है कहां, यदि होती तो उनके शीर्षस्थ नेता निरंजन राय या कमलेश राम के घर जाकर नाक नहीं रगड़ते, साथ ही पूरे प्रदेश से पार्टी का सफाया नहीं होता, अब तक ये नेता प्रतिपक्ष घोषित कर चुके होते

भाड़े के ट्रोलर और भाड़े के पोस्टर चिपकानेवाले और फेसबुक तथा इंस्टाग्राम आदि पर अपनी स्तुति करवानेवालों की फौज खड़ी कर न तो कोई पार्टी आगे बढ़ी हैं और न कोई नेता। ये सारे लोग और वो पार्टी उस दिये की लौ की तरह होते हैं, जिसमें प्रकाश तभी तक रहता हैं, जब तक उस दिये में तेल या बाती रहता है यानी जैसे ही तेल व बाती खत्म तो दिये का अस्तित्व समाप्त हो जाता हैं। उसी प्रकार ट्रोलर, पोस्टर चिपकानेवाले तथा स्तुति करनेवालों की फौज गायब, तो वो पार्टी और वो नेता भी पूरी तरह समाप्त हो जाता है।

शायद यही कारण है कि भाजपा ने जब तक अपने पैसों की बदौलत भाड़े के ट्रोलर और भाड़े के पोस्टर चिपकानेवालों तथा अपनी स्तुति करवानेवालों की फौज खड़ी कर रखी थी, तब तक तो वो विधानसभा चुनाव के दौरान मैदान में थोड़ा-बहुत दिखी और जैसे ही ये सब गायब हुए, पार्टी और उनके नेता भी उसी तरह गायब हुए जैसे गदहे के सिर से सींग। आज सच्चाई यही है कि भाजपा व उसके नेताओं के पास उतने भी कार्यकर्ता नहीं, जितना की वो दावा करती है। गिनती के कार्यकर्ता ही अब उसके कार्यक्रमों में दिख रहे हैं।

हाल ही में भाजपा ने संगठन महापर्व के नाम पर लोगों को भाजपा से जुड़ने का प्लान बनाया। लेकिन सच्चाई, भाजपा के नेताओं को ही पता है कि उनके संगठन महापर्व अभियान की हवा निकल गई। स्थिति ऐसी है कि अभी झामुमो अपने यहां इस प्रकार का कोई भी अभियान शुरु करें तो वहां लोगों की लाइन लग जायेगी, उसका मूल कारण हैं कि झामुमो के नेताओं व कार्यकर्ताओं का आम जनता से सीधा जुड़ाव।

शायद यही कारण है कि राजनीतिक पंडितों का एक बड़ा समूह अब साफ कहता है कि भाजपा अब झारखण्ड में हैं कहां? यदि भाजपा झारखण्ड में होती तो उसके बड़े-बड़े नेता अपने प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को धनवार सीट पर जीत दिलाने के लिए निरंजन राय के घर हेलीकॉप्टर से जाकर नाक नहीं रगड़ते।

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कांके जाकर कमलेश राम के घर जाकर नाक नहीं रगड़ते और उसके बावजूद कांके सीट पर भाजपा हार का मुंह नहीं देखती, या पूरे प्रदेश में इतनी बड़ी हार का सामना भाजपा को नहीं करना पड़ता। अब तक ये नेता प्रतिपक्ष का नाम भी घोषित कर चुके होते।

भाजपा के बड़े-बड़े राष्ट्रीय स्तर के नेता विवादास्पद व जेल से लौटे चैनल के मालिक अरुप चटर्जी के घर जाकर उसका आशीर्वाद नहीं लेते, उसके यहां भोजन नहीं करते और उसके सलाह मशविरे पर पार्टी का कार्यक्रम नहीं बनाते और उसके आगे मत्था नहीं टेकते, जैसा कि भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं व प्रदेश के नेताओं ने किया और सभी ने देखा भी।

निरंजन सिन्हा जैसे लोग अपने लीगल नोटिस में इस बात का जिक्र नहीं करते कि भाजपा सांसद दीपक प्रकाश के घर पर महगामा सीट से भाजपा का टिकट दिलाने के लिए उसकी डा. विवेक कुमार के बीच 24 लाख रुपये की डील हुई थी। ये अलग बात है कि बाद में निरंजन ने इसको लेकर माफी भी मांगी। लेकिन इस मामले को लेकर जिस दीपक प्रकाश ने दैनिक भास्कर और उसके संवाददाता से माफी मांगने की लीगल नोटिस भेजी थी।

न तो दैनिक भास्कर और न ही उसके संवाददाता विनय चतुर्वेदी ने ही माफी मांगी। उलटे विनय चतुर्वेदी ने तो दीपक प्रकाश को ही अपने जवाब में इस बात की जिक्र कर दी कि दीपक प्रकाश ने जो उन पर एक करोड़ की सांसद निधि मांगने की बात का आरोप जो उन पर लगाया हैं, वे कभी भी इस मामले को लेकर उन्हें कानूनी नोटिस थमा सकते हैं।

यदि भाजपा सचमुच में सही रहती या यहां मजबूत होती तो रघुवर दास के समर्थकों की टीम रघुवर दास को प्रोजेक्ट करने का नया स्वांग जो आज यहां रचवा रही हैं, उसका नाटक नहीं करती, वह भी ये जानते हुए कि ये स्वांग टांय-टांय फिस्स होनेवाला है। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि जहां-जहां रघुवर दास ने अपने पांव रखें हैं, उस जगह पर भाजपा पूरी तरह बाद में साफ हो गई।

जैसे 2014 में रघुवर को झारखण्ड का सत्ता सौंपी, इस व्यक्ति ने हाथी उड़ाने की सनक में पूरी पार्टी को ही झारखण्ड से उड़वा दिया। यहीं नहीं ये व्यक्ति ओडिशा का राज्यपाल बना, वहां भी रहकर उसने राजभवन की गरिमा नष्ट कर दी। जब रघुवर के बेटे ललित दास ने राजभवन के एक अधिकारी के साथ मार-पीट कर डाली और ये समाचार पूरे देश में सुर्खियां बटोर ली।

यदि भाजपा सचमुच में यहां रहती तो अपने कार्यकर्ताओं के पीठ पर छुरा नहीं घोपती। जिन कार्यकर्ताओं से वो पार्टी का टिकट किसे मिले, जो रायमशविरा कर रही थी, उसकी बात मानती, न कि मनमर्जी ढंग से धनलोलुप लोगों के बीच टिकट बांट कर अपना सत्यानाश करवा लेती।

आज तो स्थिति ऐसी है कि ये कुछ भी कर लें। आनेवाले पन्द्रह-बीस सालों में भाजपा कहीं भी झामुमो के आगे टिकती नहीं दिखती। चाहे रघुवर की जगह पर उनकी बहू पूर्णिमा दास को ही झारखण्ड के मुख्यमंत्री के रूप में ये प्रोजेक्ट क्यों न कर डालें। भाजपा के लोगों को पता ही नहीं कि झारखण्ड की नदियों के तटों पर जाकर झारखण्ड की जनता ने कब का इनके नेताओं का पिंडदान कर दिया है और उसका मूल कारण भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं का अपने सिद्धांत व चाल-चरित्र से खुद को पीछा छुड़ा लेना और घटिया व स्वार्थी लोगों के महत्वकांक्षाओं के आगे नतमस्तक होकर वो सारे कार्य करना है, जो झारखण्ड की जनता के हितों के प्रतिकूल हैं।

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