प्रयागराज में लगा महाकुम्भ अर्थात् जाकी रही भावना जैसी, महाकुम्भ देखी तिन तैसी …
गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस जी में एक चौपाई लिखी। चौपाई है – जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।। अर्थात् जिसकी जैसी भावना रही, भगवान राम की प्रतिमा उसी अनुरुप दिखी। वर्तमान में महाकुम्भ मेला जो प्रयागराज में समाप्ति की ओर है, महाकुम्भ को लेकर भी पूरे देश-विदेश में यही भावना दिखाई प्रतीत हो रही हैं। जिसने जिस प्रकार का चश्मा आंखों में लगाया, उस चश्मे के मुताबिक उसने महाकुम्भ मेले को देख लिया और अपनी भावनाओं को सोशल साइट आदि पर उड़ेल दिया।
ऐसे तो कहा जा रहा है कि सारे अखाड़ों के महंत, संत, महात्मा, ऋषि-मुनियों व कल्पवास के लिए आये महात्माओं का समूह महाकुम्भ से अपने तंबूओं को छोड़कर अपने-अपने स्थानों की ओर चले गये। उसके बावजूद भी सुनने व देखने को आ रहा हैं कि गृहस्थों का विशाल समूह आज भी प्रयागराज की ओर जाने को उसी प्रकार लालायित हैं। जिस प्रकार की स्थिति महाकुम्भ प्रारम्भ होने के समय थी।
ऐसे भी 144 वर्षों के बाद लगनेवाले इस महाकुम्भ में कौन स्नान नहीं करना चाहेगा, कौन डूबकी लगाना नहीं चाहेगा, कौन स्वयं को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा, जो महाकुम्भ के महत्व को जानता है। लेकिन जिन्हें महाकुम्भ से कोई मतलब ही नहीं, जो इसके बारे में क-ख-ग भी नहीं जानते, उन्हें महाकुम्भ से क्या लेना-देना, उन्हें तो इस पर कुछ बोलने का अधिकार भी नहीं। लेकिन बोल वे ऐसे रहे है कि वे कितने बड़े आध्यात्मिक संत हैं?
सच्चाई यह है कि अपने घर में अगर कोई कार्य-प्रयोजन हो तो ऐसे लोगों की छट्ठी रात की दूध तक याद आ जाती है और जहां इस बड़े आयोजन में देश की आधी आबादी डूबकी लगाने को एक छोटे से इलाके में आने को लालायित हो, तो वहां तो कुछ न कुछ समस्याएं आयेंगी ही। उन समस्याओं से दो-चार तो हर किसी को होना पड़ेगा, ऐसे भी जिसे जो चीजें प्राप्त करनी हैं, उन्हें वो चीजें इतनी आसानी से तो मिलती भी नहीं। एक मामूली चपरासी की नौकरी के लिए भी लोगों को तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं तो यह तो महाकुम्भ ही हैं।
रांची से गये कई पत्रकारों व बुद्धिजीवियों का समूह प्रयागराज में डूबकी लगाने के बाद जैसे ही लौटे हैं तो वे सोशल साइट पर प्रयागराज की व्यवस्था पर अंगूलियां उठा रहे हैं। योगी सरकार की आलोचना कर रहे हैं। इनका कहना है कि वहां कोई व्यवस्था नहीं थी। इनका ये भी कहना है कि जिस दिन भगदड़ मची थी, उस दिन प्रयागराज में 3000 से ज्यादा लोग मर गये थे। ऐसा वहां के लोग कह रहे थे, दुकानदार कह रहे थे। मतलब इन्होंने देखा नहीं, लेकिन लोग कह रहे हैं, इसलिए वे मान रहे हैं। लेकिन सरकार कह रही हैं, वो नहीं मान रहे हैं। ऐसे भी अफवाह हैं ही ऐसी चीजें, जिसे बढ़ाने या फैलाने के लिए कोई ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडती, ये बिना हाथ-पैर के ही बड़ी तेजी से फैल जाती हैं।
लेकिन इसी रांची से ऐसे लोग भी गये हैं। जिनकी सोच आपको प्रयागराज में लगे महाकुम्भ के बारे में आपके अंदर लोगों द्वारा बनाई गई धारणा को ही बदल देगी। आप जो इस आर्टिकल में उपर फोटो देख रहे हैं। ये फोटो हैं – पश्चिम बंगाल के झालिदा में रहनेवाले 45 वर्षीय अमर कोईरी का। ये प्रतिदिन झालिदा से सब्जी का बोझा लेकर रांची आते हैं और लोहरदगा गेट में सब्जी का बाजार लगाते हैं। ये हमें देखकर कुछ दिन पहले ही बड़े प्रसन्नचित होकर बोले। सर, हम महाकुम्भ नहा कर आ गये।
हमनें पूछा कैसे गये? सुना है वहां बहुत भीड़ हैं, लोगों को बड़ी दिक्कत हो रही हैं, कई दिनों से लोग भूखे हैं, सड़क जाम है, रेल में बड़ी भीड़ हैं, तुम कैसे गये और कैसे आये? अमर कोईरी ने बताया – सर ये जो भी आप सुन रहे हैं, सब बेकार की बाते हैं, सब बकवास है, हम तो वसंत पंचमी के दिन ही वहां डूबकी लगाये। हमलोग पूरे परिवार के साथ गये थे। कोई दिक्कत नहीं हुआ। वहां सरकार ने अच्छी व्यवस्था की थी। जगह-जगह पर शौचालय, पानी पीने की व्यवस्था, कई संत-महात्माओं द्वारा लंगर भी लगाये गये थे। हमलोगों तो कोई दिक्कत ही नहीं हुआ। आराम से ट्रेन से गये। प्रयागराज उतरे। चल दिये। कुम्भ नहाने। कुम्भ नहाये और फिर संत-महात्मा के कुटिया में इधर-उधर घुमने लगे। जहां देखे कि भोज-भात चल रहा हैं। वहां बैठकर सबलोग प्रसाद पाये। कोई दिक्कत ही नहीं हुआ और फिर आराम से ट्रेन पर बैठे, झालिदा पहुंच गये।
अमर कोईरी तो इतना प्रसन्न है कि वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी का प्रशंसक बन बैठा है। वो कहता है कि इतना बड़ा मेला का आयोजन करना कोई मजाक बात नही हैं। वो कहता है कि वो सात आदमी के साथ प्रयागराज गया था। जब कुम्भ नहाया तो जैसे लगा कि दुनिया का सारा सुख मिल गया। नहाते तो हम रोज हैं। लेकिन कुम्भ, जहां गंगा मइया, जमना मइया, सरस्वती मइया विराजमान है, नदी के रूप में और वहां अमृत के साथ स्नान करने का फल, कितना आनन्द दिया। वो हम समझ सकते हैं सर, दूसरा क्या समझेगा?
अमर कोईरी की ये बात सुनकर, हमें उस विदेशी महिला की सोशल साइट पर वायरल वीडियो याद आ गई, जो भावविभोर होकर महाकुम्भ स्नान की अपनी भावनाओं को प्रदर्शित कर रही थी। आज भी उक्त विदेशी महिला की वीडियो सोशल साइट पर वायरल हैं, आप यू-टयूब पर देख सकते हैं। ऐसे कई वीडियो आपको यू-ट्यूब पर देखने को मिल जायेंगे।
रांची में ही एक सब्जी विक्रेता जो महिला है। जब मैं उसके पास सब्जी खरीदने गया था। तो वो मुझसे पूछी थी कि सर क्या आप कुम्भ नहाने जायेंगे। तो मैंने उससे कहा कि मैं तो नहीं जा रहा और मेरे लिए अभी जाना संभव नहीं। उसने तड़ाक से जवाब दिया कि सर जिंदगी में खाना-पीना-सोना तो लगा रहेगा। 144 वर्ष के बाद महाकुम्भ आया है। पता नहीं आनेवाले समय में हम रहेंगे या नहीं। लेकिन वर्तमान में तो हमारे समय में ये महाकुम्भ आया हैं। हम तो जाना चाहेंगे। पता नहीं हमारा बाप-दादा महाकुम्भ नहाया कि नहीं, नहाया। हम तो इ मौका नहीं छोड़ेंगे और जायेंगे, जरुर।
उधर लोहरदगा गेट में ही सब्जी बेचनेवाली राधा ने प्रोग्राम बना लिया है कि वो चाहे जो हो, प्रयागराज जायेगी, कुम्भ नहायेगी. जीवन सफल करेगी। वो महाकुम्भ जाने की तैयारी करने लगी है। उसने पता लगा लिया है कि आनन्दविहार एक्सप्रेस प्रयागराज होते हुए जाती है। उसने व्यवस्था करना शुरु कर दिया है। वो जायेगी, जरुर जायेगी। महाकुम्भ स्नान का फल प्राप्त करेगी। किसी ने ठीक ही कहा है कि जाकी रही भावना जैसी …। आपको लगता है कि जाने में कष्ट होगा, महाकुम्भ नहाने में कष्ट होगा, तो निश्चित मानिये कि आपको कष्ट से सामना होगा और अगर आपने सब कुछ प्रभु पर छोड़ दिया हैं तो आपकी महाकुम्भ यात्रा पर भला किस की हिम्मत की भृकुटि तान दें।