धर्म

एसआरएफ-वाईएसएस के आध्यात्मिक प्रधान स्वामी चिदानन्द गिरि ने रांची में योगदा भक्तों को ‘श्रवण’ के मूल रहस्यों से साक्षात्कार कराते हुए बता दिया कि इस शब्द में डूबने मात्र से व्यक्ति किस प्रकार ईश्वर का हो जाता है

गत् रविवार को योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया एवं सेल्फ रियलाइजेशन फैलोशिप के आध्यात्मिक प्रधान स्वामी चिदानन्द गिरि जी रांची के योगदा आश्रम में थे। उनका आगमन रांचीवासियों और खासकर योगदा भक्तों के लिए परम आनन्द का विषय बना हुआ था। जब स्वामी चिदानन्द गिरि भक्तों के बीच में आये और जब उनका स्वागत स्वामी श्रद्धानन्द गिरि ने माल्यार्पण से किया और इधर जब शंखध्वनि सुनाई दी, तो ऑडिटोरियम में खड़े प्रत्येक श्रद्धालुओं के नेत्रों में गंगा-यमुना उमड़ पड़ी। सभी ने बड़े भावपूर्ण अंदाज में उनका स्वागत किया।

शायद यही कारण रहा कि जब स्वामी चिदानन्द गिरि प्रवचन देने को हुए। तो उनके मुख से यह निकल पड़ा कि इस ऑडिटोरियम में आये एक-एक व्यक्ति असाधारण दिव्य आत्माएं है, जो प्रकाशस्वरुप प्रतिबिंबिंत हो रहे हैं। स्वामी चिदानन्द गिरि के प्रवचन सुननेवालों में भारत के प्रत्येक कोने के लोग थे और कुछ इस पल के साक्षी वे विदेशी भी थे, जो आध्यात्मिक सुख पाने को रांची में मौजूद थे।

स्वामी चिदानन्द गिरि ने जीर्णोद्धार हुए ऑडिटोरियम का नामकरण जैसे ही ‘श्रवणालय’ के रूप में किया। हजारों की संख्या में बैठे योगदा भक्त भाव-विभोर हो उठे और यहीं से श्रवण और श्रवणालय की महत्ता को समझाना स्वामी चिदानन्द गिरि ने शुरु किया। जैसे-जैसे उनके प्रवचन अपने अंतिम छोर तक पहुंच रहे थे। ठीक वैसे-वैसे श्रवण और श्रवणालय की महत्ता से भी लोग दो-चार हो रहे थे, क्योंकि स्वामी चिदानन्द गिरि इन दोनों शब्दों के गूढ़ रहस्यों से सभी को परिचय करा रहे थे।

स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि भारत के ऋषि-मुनियों ने जितना श्रवण के मूल रहस्यों को समझा। वैसा किसी ने समझने की कोशिश नहीं की। यहीं कारण रहा कि आध्यात्मिक तौर पर वे ईश्वर के ज्यादा निकट रहे। उन्होंने कहा कि श्रवण का मतलब सिर्फ सुनना नहीं हैं, बल्कि उसका मनन करते हुए, उसमें रम जाना, ईश्वरीय अनुभूतियों को महसूस करना है।

उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि जब राजर्षि जनकानन्द जी एक बार गुरुजी के साथ ध्यान करने को बैठे, तो जैसे ही प्रार्थना के कुछ शब्द जैसे हैवेनली फादर, मदर, फ्रेंड, बिलवड गॉड कहना प्रारम्भ हुआ। राजर्षि जनकानन्द जी अचेत हो गये। कुछ लोगों ने कहा कि वे अचेत हो गये। लेकिन गुरुजी ने कहा कि वे अचेत नहीं हुए बल्कि वे समाधिस्थ हो गये।

स्वामी चिदानन्द गिरि जी ने इस दृष्टांत के माध्यम से बता दिया कि श्रवण का मूल अर्थ क्या होता है? वे कहना चाहते थे कि श्रवण का अर्थ ही है कि जिनके बारे में हम सुन रहे हैं। बस उन्हीं का हो जाना है। जैसा कि राजर्षि जनकानन्द जी के साथ हुआ। उन्होंने दो-चार शब्द ही सुने थे और वे समाधिस्थ हो गये। ये हैं श्रवण का महत्व।

उन्होंने कहा कि ये जो जगह हैं। यहां मैं जब भी होता हूं। तो पाता हूं कि मैं स्वयं को परिवर्तित महसूस कर रहा हूं। अपने महान गुरु के आशीर्वाद से अनुप्राणित हो रहा हूं। आप भी गुरुजी के टीचिंग, उनके बताये मार्ग, उनके द्वारा सीखाये गये क्रियायोग के बारे में जानने, सुनने का प्रयास करिये, ताकि आप भी बेहतर दिशा में आध्यात्म की सर्वोच्च शिखर पर पहुंच सकें। ये सभी के लिए आसान है।

स्वामी चिदानन्द गिरि जी ने कहा कि श्रवण का मतलब है कि हम अपने अंदर की सारी बुराइयों को, उससे उत्पन्न होनेवाली तनावों को सदा के लिए दूर करें। इस श्रवणालय में आकर आप गुरुजी के बताये पाठों को स्मरण करने का प्रयास करें। उन पाठों में छपे शब्दों के मूल रहस्यों को जानने की कोशिश करें, ताकि आप आध्यात्मिक अनुभवों को जान सकें, समझ सकें।

उन्होंने कहा कि आप हमेशा गुरुजी को विजुयलाइज्ड करें, उन पर खुद को एकाग्र करें, गुरुजी द्वारा बताये जा रहे गाइडलाइन्स को महसूस करें तथा प्रतिदिन के नियमित ध्यान, प्राणायाम, क्रिया के उपरांत गुरुजी के पाठमाला का अध्ययन अवश्य करें, यह मानते हुए कि वे शब्द गुरुजी स्वयं आपके समक्ष बोल रहे हैं और उन्हें आप आत्मसात् कर रहे हैं। फिर आप स्वयं महसूस करेंगे कि आप गुरुजी के कितने निकट हैं? उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर आपके निकटतम से भी निकट है और प्रियतम से भी प्रिय हैं।

इसके पूर्व स्वामी अच्युतानन्द गिरि ने ऐसी भक्ति रसधारा बहाई, जिसमें सभी योगदा भक्तों ने डूबकी लगाई। यह भक्ति रसधारा ऐसी बही, जैसे लगा कि प्रयागराज में अवस्थित अमृत की बूंदें कुछ पल के लिए श्रवणालय में योगदा भक्तों के बीच भजन के रूप में छिड़की जा रही हो। खासकर ‘अंधेरा काले पंछी समान, दूर उड़े और दूर उड़े … ’ शायद यही कारण रहा कि हमारे पास बैठे एक योगदा भक्त के मुख से यह निकल पड़ा कि भारत भी गजब का देश है। कौन, कहां और कब कुम्भ स्नान का आनन्द ले लें, कुछ कहां नहीं जा सकता?

कार्यक्रम की शुरुआत के पहले स्वामी चिदानन्द गिरि जी का परिचय करा रहे योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के वरीय उपाध्यक्ष स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने बताया कि स्वामी चिदानन्द गिरि पिछले 45 वर्षों से संन्यासी का जीवन व्यीत कर रहे हैं और संस्था के संपादकीय विभाग का कुशल नेतृत्व कर रहे हैं। स्वामी चिदानन्द गिरि जी के ही प्रयासों से भारत व विश्व की अन्य भाषाओं में प्रेमावतार परमहंस योगानन्द जी की पाठमालाओं एवं उनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथों का अनुवाद संभव हो सका है। साथ ही ऑनलाइन पाठयक्रम व ध्यान आदि का शुभारम्भ किया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *