राजनीति

न अपने CM रघुवर को जाम्बवन्त मिला और न वे हनुमान बन सके

भाई बात में तो दम है, न अपने मुख्यमंत्री रघुवर दास को जाम्बवन्त मिला और न वे हनुमान बन सके। याद करिये, दिन रविवार, 15 नवम्बर 2015, रांची का मोराबादी मैदान। अपने सीएम रघुवर एक जनसभा को संबोधित कर रहे हैं। जनसभा को संबोधित करने के दौरान वे कह क्या रहे हैं, जरा ध्यान दीजिये। “मैं शासन नहीं, सेवा करने आया हूं, मुख्यमंत्री का पद सुशोभित करने नहीं आया हूं, राज्य की सवा तीन करोड़ जनता मेरे लिए राम-सीता हैं, मैं रघुवर का दास हनुमान की तरह सेवा करनेवाला हूं।” अब जरा सोचिये क्या आपको लगता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सचमुच में यहां की सवा तीन करोड़ जनता को राम-सीता समझा है, या आपको लगता है कि सचमुच में मुख्यमंत्री रघुवर दास हनुमान की तरह जनता की सेवा कर रहे हैं।

अरे भाई, हनुमान की तरह सेवा करने के लिए आपको पहले हनुमान बनना पड़ेगा, जो आप कभी बन ही नहीं सकते और शायद आपको पता नहीं कि हनुमान को हनुमान बनाने में जाम्बवन्त की अहम् भूमिका थी, अगर जाम्बवन्त नहीं होते तो हनुमान को हनुमान बनाना, उनके अंदर छुपे बल को बताना तथा उसे प्रयोग में लाने की बात करना आसान नहीं था। सारी दुनिया जानती है कि स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति में एक ऊर्जा विद्यमान है, जिस ऊर्जा के बल पर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को निखारता है, पर उस ऊर्जा को ऊर्जान्वित करने के लिए एक ऐसे विशेष पुरुष की उसे जरुरत होती है, जो उसके अंदर छुपी ऊर्जा को क्रियाशील कर दें, जो रघुवर दास जैसे व्यक्ति के आस-पास नहीं हैं, जो भी हैं, सभी क्या हैं? वह तो तीन साल का बीता हुआ कार्यकाल ही बता रहा है।

आज जनता के बीच सीएम रघुवर दास की कोई इमेज ही नहीं। करोड़ों के विज्ञापन पूरे देश में खर्च कर दिये गये, पर जो बिना विज्ञापन पर खर्च किये इमेज एक छोटे से राज्य गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार की है, वह इमेज रघुवर दास की नहीं हैं, उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए।

रघुवर दास को मालूम होना चाहिए कि हनुमान ने कभी भी राम-सीता की बातों की अवहेलना नहीं की, पर आपने जनता की बातों को कभी सुना ही नहीं। नियोजन नीति व स्थानीय नीति को लेकर आम जनता में जो आपके खिलाफ गुस्सा है, वह बताता है कि आप आम जनता को किस रुप में देखते हैं। गढ़वा जाकर अपनी ही जनता को अपमानित करना कोई सीखे, तो उसके आप प्रत्यक्ष उदाहरण है। सीएनटी-एसपीटी में संशोधन को लेकर, जनता की बात नहीं मानना और अपने आप पर अड़े रहना, बाद में राज्यपाल द्वारा बिना हस्ताक्षर किये, लौटाने के बाद संशोधन प्रस्ताव वापस लेना बताता है कि आप जनता को किस नजर से देखते हैं और किसके इशारे पर ऐसा कर रहे हैं, इसलिए अब जबकि आपके पास मात्र दो साल बचे है, ऐसे में आप जनता रुपी राम-सीता को कितना मानते हैं, और कैसे स्वयं को हनुमान बनाकर पेश करते है, एक मौका अभी आपके पास है, लेकिन फिर बात वहीं आती है कि आप हनुमान बनेंगे कैसे? क्योंकि आपके इर्द-गिर्द जाम्बवन्त हैं ही नहीं, और न आप जाम्बवन्त को पहचानते हैं, जो भी आपके पास है, सभी आपके साथ सिर्फ इसलिए लालच में चिपके है, क्योंकि आपके साथ उन्हें रहने पर स्वार्थ सिद्ध होता है।

ऐसे में स्वार्थी व्यक्ति आपको क्या सलाह देगा? वो तो जब सलाह देगा तो अपनी स्वार्थसिद्धि को प्राथमिकता देगा, जिससे अंततः आपकी ही इमेज खराब होगी और जब तक आप सत्ता से हटेंगे, वह स्वयं को आर्थिक रुप से इतना मजबूत कर लेगा कि बिना कुछ किये ही, वह आजीवन करोड़ों में खेलता रहेगा, और आपकी जनता जब तक जिंदा रहेगी, आपको कोसती रहेगी।