…फिर कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल करने में देर कैसी?
15 अगस्त 1975 को एक फिल्म रिलीज हुई थी, नाम था – शोले। ऐसे तो उसके सारे संवाद और गाने सुपर हिट हैं, फिल्म की तो बात ही क्या कहना। इसी फिल्म में जय (धर्मेन्द्र), बसंती (हेमा मालिनी) को पाने के लिए पानी की टंकी पर चढ़ जाता हैं और फिर शुरु होती है – नौटंकी और नौटंकी का अंत होता हैं, बसंती की मौसी (लीला मिश्रा) द्वारा हामी भरने से की, वह बसंती की शादी जय से कराने को तैयार है और गांव वाले जय को कहते है कि वह पानी टंकी से नीचे उतर आये क्योंकि बसंती और उसकी मौसी दोनों शादी के मुद्दे पर तैयार हैं, वह पानी टंकी से नीचे उतर आये, और फिर जय पानी टंकी से उतर आता हैं।
कुछ ऐसा ही चक्कर कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति का दर्जा देने को लेकर भी हैं। सच्चाई यह है कि पक्ष हो या विपक्ष अभी भी कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति का दर्जा देने में आना-कानी कर रहे हैं, और यह ऐसा नहीं कि आना-कानी करना, इनका स्वभाव हैं। सच्चाई यह है कि ये दोनों अच्छी तरह जानते है कि ऐसा कभी संभव नहीं, और अगर ऐसा हुआ तो फिर आदिवासियों का कोपभाजन दोनों को बनना पड़ेगा।
आनेवाले समय में आदिवासी कभी भी इन्हें माफ करने की स्थिति में नहीं होंगे तथा झारखण्ड में ऐसे हालात हो जायेंगे कि उसे ठीक कर पाना किसी के बूते की बात नहीं रहेगी, फिर भी इधर कुछ दिन पहले यह देखने को मिला, अखबारों में आया कि कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल करने की मांग को लेकर शैलेन्द्र महतो द्वारा चलाये गये हस्ताक्षर अभियान में भाजपा ही नहीं, बल्कि विपक्ष की झामुमो, कांग्रेस, झाविमो तथा अन्य विपक्षी दलों के विधायकों ने भी हस्ताक्षर किये हैं, जिस आवेदन को शैलेन्द्र महतो के साथ गये एक प्रतिनिधिमंडल ने झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को सौंपा था।
ज्ञातव्य है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को जो पत्र सौंपा गया, उसमें उल्लिखित है कि 23 नवम्बर 2004 को राज्य सरकार ने मंत्रिमंडल में निर्णय लेकर कुरमी जाति को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल कराने को लेकर केन्द्र सरकार से अनुशंसा की थी। जिसको लेकर, छह अगस्त 2005 को जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार के निदेशक राजीव प्रकाश ने राज्य सरकार को पत्र भेजकर मानव जातीय रिपोर्ट का हवाला दिया।
इसमें कहा गया कि कुरमी जाति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति अनुसूचित जनजातियों की स्थिति से अच्छी है, इसलिए इस जाति को यथास्थिति बनाये रखने की आवश्यकता है। प्रतिनिधिमंडल की ओर से बताया गया कि मानव जातीय रिपोर्ट तथ्यहीन है। एचएस रिस्ले के इथनोग्राफिक रिसर्च रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन छोटानागपुर एवं ओड़िशा के कुरमी जाति को जनजाति माना गया, जिसका प्रकाशन 1891-92 में द ट्राइब एन कास्ट ऑफ बंगाल नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया हैं। झारखण्ड के कुरमी जनजाति है।
अगर सच पुछा जाय तो झारखण्ड का हाल भी राजस्थान, हरियाणा और गुजरात जैसा करने की कोशिश की जा रही हैं, जैसे राजस्थान में गुर्जरों, हरियाणा में जाटों और गुजरात में पटेलों ने खुद को आरक्षण में लाने के लिए बड़े आंदोलन किये और उससे राजस्थान, हरियाणा और गुजरात को जो नुकसान झेलना पड़ा, कहीं वहीं स्थिति झारखण्ड में न दीखे, इसकी व्यवस्था पहले से ही हो जाये तो बेहतर हैं, नहीं तो ऐसे ही झारखण्ड डोमिसाइल आंदोलन को लेकर अभी भी जलने की स्थिति में हैं।
अब कुरमी को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल करने को लेकर स्थिति और भयावह न हो जाये। आदिवासी और कुरमी आपस में अपने हक के लिए उलझ न जाये, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, हालांकि कई राजनीतिक दल इस मुद्दे पर अपनी-अपनी रोटी सेंकनी शुरु कर दी हैं, पर उन्हें नहीं पता कि वे आग से खेल रहे हैं, जिसमें वे भी झुलसे बिना नहीं रह पायेंगे।
समाज का सच उसकी आग और उसकी लपट को थामने का उचित मार्गदर्शन, its a wakeupcall for concerned auth. F gvt.