वैलेंटाइन पर भारी पड़ गया शिव और पार्वती का विशेष महापर्व महाशिवरात्रि
14 फरवरी को पूरा विश्व वैलेंटाइन डे मनाता है। इसे देखा-देखी कहिये या पश्चिमी देशों से चलनेवाली मार्डनाइज्ड एयर कह लीजिये, भारत के छोटे-बड़े शहरों को भी अपने जालों में ले लिया हैं। अब आज का युवा ही नहीं, अधेड़ों का समूह भी वैलेंटाइन में डूबकी लगाकर खुद को मार्डन समझने की कोशिश करता हैं। कुछ अखबार और चैनलवाले तो इस दिन का ऐसा इंतजार करते हैं कि जैसे लगता हो कि अगर ये दिन नहीं आये तो दूसरे दिन अखबार छपेंगे ही नहीं, चैनल पर समाचार दिखेगा ही नहीं, क्योंकि इन अखबारों व चैनलों से जुड़े लोगों को आज के दिन में, किशोर-किशोरियों को प्रेमालाप में मग्न या उन्हें अश्लील हरकते करते हुए देखने तथा उनका फोटो खीचने या विजुयल लेने अथवा उसे दिखाने में अंदर का पशुप्रेम वाली कामवासना जो समय-समय पर जागृत होती हैं, उसे तृप्त करने का सुअवसर मिल जाता हैं, एसी में बैठा और नर्म कुर्सियों पर बैठा संपादक के पास भी जब यह दृश्य पहुंचता हैं तो वह इन चित्रों में परम आनन्द को ढूंढ लेता है, पर वह ऐसा एक्टिंग करता है, कि उसके सामनेवाला बैठा व्यक्ति समझे कि उसका संपादक कितना बड़ा संत हैं?
कल वैंलेटाइन डे को लेकर विभिन्न पार्कों व उदयानों में वैलेंटाइन मनानेवाला जोड़ा भी बहुत कम दिखाई पड़ा, क्योंकि इस वैलेंटाइन डे का विरोध करने के लिए बदनाम बजरंग दल तथा शिव सैनिकों के भय से इन जोड़ों ने भी अपना अलग आशियाना ढूंढ लिया, किसी ने सिनेमा हॉल की ओर रुख किया तो कोई अपने ही घर में अपने परिवारों को उल्लू बनाकर एक दिन का प्रोग्राम अपने घर पर ही सेट कर लिया, यानी क्या फर्क पड़ता हैं? वैलेटाइन मनाना हैं तो मनाना है, जिन्हें वैलेंटाइन मनाना था, मनाया और जिन्हें कुछ और मनाना था, उन्होंने वह भी मनाया।
आज कई अखबारों व चैनलों में वैलेंटाइन के फोटो गायब हैं। बजरंग दल व कई और इसका विरोध करनेवाले चेहरे के फोटो अखबारों व चैनलों से गायब हैं।
हर अखबारों व चैनलों में वैलेंटाइन की जगह भोलेनाथ-पार्वती का जोड़ा छाया हुआ हैं। रांची से निकलनेवाले अखबारों के आठ पृष्ठीय पेजों पर भौलेनाथ और पार्वती ने कब्जा जमा लिया हैं। अखबारों व चैनलों की ये मजबूरी हैं, क्योंकि वैलेंटाइन वाले पार्क में थे नहीं, जो लड़कियां थी वह वैलेंटाइन के दिन भोलेनाथ और पार्वती को मनाने में डूबी थी, और जो लड़के थे वे रात में निकलनेवाले शिव जी की बारात की तैयारियों में सुबह से लगे थे, यानी हर गांव-हर मुहल्ला शिव-पार्वतीमय हो उठा था, तो फिर वैलेंटाइन मनाये कौन? और अखबार तथा चैनलवाले दिखाये क्या? और छापे क्या?
अब बात उठती है कि इसी तरह अगर हर साल वैलेंटाइन डे के दिन महाशिवरात्रि मनाया जाने लगे तो कोई बताये कि कितने लोग वैलेंटाइन डे मनायेंगे या उसे याद रखेंगे, पता चलेगा भोलेनाथ के बारात की आंधी में वैलेंटाइन बाबा कहां फेका गये, कहां उनका नाक-मुंह टूट गया पता ही नहीं चलेगा, इसलिए जो आनन्द भारतीय संस्कृति में हैं, भोलेबाबा के साथ समय बिताने में हैं, स्वयं को शिवमय बनाने में हैं, वह वैलेंटाइन में कहां?
सुखद परिवर्तन,
ट्रांसफ़ॉर्मेशन of positive energy.
हर हर महादेव