सरकार और शिक्षकों के किये पाप, गरीब बच्चे भुगतेंगे, 9000 स्कूलों में लटकेगा ताला
एक समय था, सरकार स्कूल खोलती थी और आज सरकार स्कूल खोलती नहीं, बंद कराती हैं, क्योंकि देश में काफी बदलाव आया हैं। सरकार ने अब नई योजना बनाई हैं, जितना जल्द हो सके, स्कूलों को बंद करो, जो स्कूल बंद हो रहे हैं, वहां काम कर रहे लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट करो और स्कूलों में ताला लटका दो। ये कार्यक्रम जहां-जहां भाजपा की सरकार है, वहां बड़ी तेजी से किया जा रहा हैं, पूर्व में राजस्थान में ऐसा देखने को मिला और अब झारखण्ड में यह तेजी से देखने को मिल रहा हैं। सरकार का कहना हैं कि इन स्कूलों में जब बच्चे हैं नहीं, तो हम ऐसे में इन स्कूलों को क्यों चलायें? बात भी सहीं हैं, जब बच्चे रहेंगे ही नहीं तो किसे पढ़ाया जायेगा? जानवर तो पढ़ेंगे नहीं, और न जानवरों को पढ़ाने के लिए कोई स्कूल ही खोलता हैं।
अब सवाल उठता है कि आज स्कूल जो बंद हो रहे, उसके लिए जिम्मेवार कौन हैं? इसके लिए अगर कोई जिम्मेवार हैं तो वह वहां की सरकार हैं, उन विद्यालयों के शिक्षक हैं, जिन्होंने अपना धर्म नहीं निभाया और इन स्कूलों को बंद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी। ये सरकारी स्कूलों के शिक्षकों और सरकार का वह पाप हैं, जिसे ईश्वर भी कभी माफ नहीं कर सकता। जरा सोचिये, जब ये स्कूलें बंद हो जायेंगी तो गरीबों के बच्चे कहां पढ़ेंगे? उनके सपनों को कौन पूरा करेगा?
एक समय था, जब जिला स्तर पर जिला स्कूल हुआ करते थे, जहां पढ़ना और पढ़ाना शान समझा जाता था, पर अब इन जिला स्कूलों में भी बच्चे नहीं दीखते हैं और इन जिला स्कूलों में पढ़ानेवाले शिक्षकों का समूह कुर्सी तोड़ने तथा राजनीति करने में ज्यादा समय बीताता हैं। पूरी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने का काम यहां के तथाकथित शिक्षकों ने किया। ये शिक्षक इतने बेशर्म हैं, कि जहां ये सेवा दे रहे होते हैं, जहां से वे प्रतिवर्ष लाखों वेतन उठाते हैं, पर इन स्कूलों में अपने बच्चों को नही पढ़ाते, क्योंकि वे जानते हैं कि जब वे खुद तथा उसके शिक्षक मित्र ही जब बच्चों को नहीं पढ़ाते तो उनके बच्चे क्या पढ़ पायेंगे?
आज आप किसी गांव या मुहल्ले में चले जाइये और सरकारी स्कूलों की स्थिति देखिये। सरकारी स्कूलों के भवन दांत निपोड़ते नजर आयेंगे। कई गांवों और मुहल्लों में महीनों तक असली टीचर दिखाई नहीं पड़ेंगे और वहां ये असली टीचर उसी गांव-मुहल्ले के बेरोजगार युवकों को पांच-छह हजार रुपये देकर अपना काम कराते नजर आयेंगे। कई गांवों-मुहल्लों में ये टीचर पकड़े जाने के भय से एक दिन पहले का अवकाश का आवेदन स्कूल में जमा करके जायेंगे और फिर दूसरे दिन अपने मन-मुताबिक आकर पुराने अवकाश वाली आवेदन को फाड़कर या जलाकर समाप्त कर देते हैं, ये सिलसिला बहुत दिनों से चला आ रहा हैं। सरकारी स्कूलों में तो खिचड़ी और पशु गिनों अभियान ने तो स्कूलों का बेड़ा गर्क कर दिया हैं।
हम दावे के साथ कह सकते हैं कि पूरे झारखण्ड में सरकारी स्कूलों को बर्बाद करने में शिक्षकों और सरकार की एक बहुत बड़ी भूमिका हैं, अब आनेवाले समय में शायद ही कोई सरकारी स्कूल दिखेगा, जब लोग कहेंगे कि ये सरकारी स्कूल हैं, सरकारी स्कूलों की स्थिति ठीक सरकारी दवाखानों और अस्पतालों की तरह इन बेईमानों ने कर दिया हैं। एक समय था, जब सरकारी स्कूलों से पढ़कर ही कई नेताओं ने देश का नेतृत्व किया और आज उन्हीं नेताओं ने इस सरकारी स्कूलो का श्राद्ध कर दिया। दरअसल इन सरकारों ने अपने दायित्वों को समझा ही नहीं, ये तो विधायक, सांसद और मंत्री इसलिए बनते है कि उनके परिवारों का सात पुश्तों तक इंतजाम हो जाये, तो ऐसे में इन विद्यालयों के शिक्षकों ने भी ऐसा ही सोच लिया और स्कूलों को बेड़ागर्क करने का अच्छा इंतजाम कर लिया, अब नतीजा सामने हैं। धिक्कार हैं ऐसे मंत्रियों, विधायकों, सांसदों, सरकारों और शिक्षकों को।
इधर झारखण्ड की स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने राज्य के 9 हजार विद्यालयों को निकट के दूसरे विद्यालयों में समायोजित करने की तैयारी शुरु कर दी है। किन-किन विद्यालयों को समायोजित किया जाये, उसके भौतिक सत्यापन के लिए एक कमेटी भी गठित कर दी गई हैं। कमेटी इसके लिए निम्नलिखित बिदुंओं पर विचार कर रही हैं। वैसे प्राथमिक/मध्य विद्यालय, जिनमें 20 से कम विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं और एक किलोंमीटर की परिधि में अन्य विद्यालय स्थित हो। वैसै प्राथमिक/मध्य विद्यालय, जिनमें 21 से 60 छात्र पढ़ाई कर रहे हो, तथा पांच सौ मीटर की परिधि में अन्य विद्यालय स्थित हो। वैसे विद्यालय, जिनमें 21 से 40 विद्यार्थी नामांकित हो, तथा एक किलोमीटर की परिधि में दूसरा विद्यालय स्थित हो। वैसे मध्य विद्यालय, जिनमें प्राथमिक स्तर पर 60 से अधिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर 60 से कम विद्यार्थी अध्ययनरत हो तथा दो किलोमीटर की दूरी में दूसरा मध्य/उच्च विद्यालय स्थित हो। एक ही परिसर में संचालित दो या उससे अधिक विद्यालय।
स्कूल बंद हो रहे हैं, विभाग स्कूलों में ताला लटका रहा हैं, स्कूल सिमटता जा रहा हैं, और शिक्षा सचिव ने बड़े ही गर्व से कहा कि इन स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षक, रसोइया तथा अन्य सेवाओं में लगे लोगों की नौकरी नहीं जायेगी, बल्कि उन्हें दूसरी जगह समायोजित किया जायेगा। ये बयान इसलिए आया है कि इस स्कूलों में नौकरी कर रहे लोग बवाल न कर दें तथा इनके बवाल के चलते जो स्कूल बंद करने की सरकार की योजना है, उस पर ग्रहण न लग जाये। सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2016 में सरकार द्वारा लगभग 1200 प्राथमिक व मध्य विद्यालयों को समायोजित कर दिया गया था, तो चलिए, अपने-अपने इलाकों में स्कूल बंद करने का अभियान चलाकर, बेईमान सरकार और यहां के बेईमान एवं भ्रष्ट शिक्षकों का सम्मान बढ़ाये, इनका मनोबल बढ़ाएं। आश्चर्य है कि जिन अटल बिहारी वाजपेयी ने सर्व शिक्षा अभियान चलाया, जिनके समय में स्कूल चले हम का नारा बुलंद हुआ, जिन्होंने बच्चों को कुपोषण से दूर करने के लिए मध्याह्न भोजन की परिकल्पना की थी, आज उन्हीं के लोग स्कूलों में ताला लटका रहे हैं…