मरी हुई पार्टी में जान फूंकने की असफल कोशिश करने निकले नीतीश
झारखण्ड में जनता दल यूनाईटेड पूरी तरह से मृत है। सच्चाई यह है कि जनता दल यूनाईटेड का एक भी विधायक झारखण्ड में नहीं, जबकि एक समय ऐसा था कि यह पार्टी और इसके लोग सत्ता को अस्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, झारखण्ड निर्माण के बाद पहली बार बनी बाबू लाल मरांडी सरकार को अस्थिर करने और उसे सत्ता से हटाने का श्रेय इसी के नेताओं को जाता है, और शायद इसी का पाप है कि यह पार्टी उसके बाद से जो लुढ़कती गई, वह लुढ़कती ही जा रही हैं।
फिलहाल इस पार्टी में एक भी नेता ऐसा नहीं, जो स्वयं अपनी ओर से एक भी विधानसभा की सीट निकाल सकें, लोकसभा तो बहुत बड़ी बात है। चूंकि पूर्व में एकीकृत बिहार में कुर्मियों के एकमात्र नेता नीतीश कुमार माने जाते थे, जो झारखण्ड के कुर्मी नेता थे, वे भी नीतीश कुमार को ही अपना नेता मानते थे, पर झारखण्ड निर्माण के बाद, जो कुर्मी नेता बचे, वे स्वयं को नीतीश से कम मानते ही नहीं। ऐसे भी कुर्मी जातियों का वोट झारखण्ड में झामुमो, भाजपा और आजसू में समान रुप से बंट जाता हैं, जिसके कारण भी जदयू का जो इस जाति से जातीय आधार बनता था, वह पूर्णतः खिसक गया है।
जदयू के जो वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो है, पूर्व में बाघमारा विधानसभा से जीता करते थे, पर वहां भाजपा के ढुलू महतो ने पिछले दो बार से ऐसी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है कि जलेश्वर महतो अब शायद ही वापसी कर पायें, स्थिति जदयू के लिए झारखण्ड में बड़ी विकट है, नीतीश कुमार कुछ भी कर लें, यहां उनका चलनेवाला नहीं।
आज जो उनका विधानसभा में कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ, वहां आधी-अधूरी भरी कुर्सियां बताती है कि यहां के जो जदयू के नेता हैं, उनकी पूरे झारखण्ड में कैसी पकड़ हैं? एक समय था कि इसके नेताओं का बोलबाला हुआ करता था, इंदर सिंह नामधारी, मधु सिंह, रामचंद्र केशरी, लालचंद महतो, बच्चा सिंह, रमेश सिंह मुंडा आदि नेता, नीतीश कुमार को अपना नेता मानते थे। इनमें से रमेश सिंह मुंडा, मधु सिंह तो इस दुनिया में नहीं रहे, पर जो जीवित भी हैं, वे नीतीश कुमार को अपना नेता मानने को किसी भी हाल में तैयार नहीं, ऐसे में नीतीश कुमार झारखण्ड में कमाल दिखा पायेंगे, संभव नहीं लगता।
नीतीश कुमार अगर ये सोचते है कि जैसे उन्होंने बिल्डरों और उनकी बिरदावली गानेवाले पत्रकारों पर कृपा लूटाकर, तथा बड़ी ही चालाकी से लालू प्रसाद यादव के साथ गठबंधन कर, अपनी सीएम की सीट बिहार में मजबूत कर ली, ठीक उसी प्रकार वे चालाकी करके झारखण्ड में बेहतर स्थिति में पहुंच जायेंगे, तो ये फिलहाल झारखण्ड में संभव नहीं, क्योंकि न तो बिहार के बिल्डर विधायक और न पत्रकार से सांसद बने जदयू नेता की झारखण्ड में चलती है, ऐसे में नीतीश कुमार को सही मायने में जमीनी स्तर के नेताओं व कार्यकर्ताओं को ढूंढना पड़ेगा, नहीं तो इस प्रकार की खुशफहमी पालनेवाले कार्यकर्ता सम्मेलन में भाग लेकर, स्वयं को ताकतवर नेता घोषित करने से उनकी ही मिट्टी पलीद होगी।
नीतीश कुमार को यह भी जान लेना चाहिए कि जदयू से कही ज्यादा ताकतवर लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद झारखण्ड में मजबूत है, क्योंकि इनके पास जमीनी स्तर के नेता व कार्यकर्ताओं की एक लंबी फेहरिस्त है। आनेवाले लोकसभा-विधानसभा चुनाव में राजद अगर अकेले भी लड़ेगा तो उसकी सीटें आयेगी पर जदयू गठबंधन के साथ भी चुनाव लड़ेगा तो वह जीत पायेगा या नहीं कहना मुश्किल हैं, क्योंकि न तो आपके पास कार्यकर्ता और न जमीनी नेता।