ऐ हवा, उन्हें होली की शुभकामनाएं, मेरी ओर से दे आ…
ऐ हवा,
उन्हें होली की शुभकामनाएं,
मेरी ओर से दे आ…
जो भारत की सीमाओं की सुरक्षा में लगे हैं…
जो देश की आर्थिक संप्रभुता को सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न कल-कारखानों में अपने श्रम की आहुति दे रहे हैं…
जो अपने परिवारो की खुशियों के लिए, अपने परिवार से दूर रहकर, अपने अरमानों का गला घोंट रहे हैं…
जो आतताइयों के अत्याचार से, झूठे आरोपों में जेलों में बंद हैं…
जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी गलत के आगे सर नहीं झूकाया हैं…
जिन्होंने कभी देश को धोखे में नहीं रखा, और अपनों के लिए सर गवायां हैं…
मेरी होली, उन पर बलिदान…
मेरी होली, उन पर कुर्बान…
ऐ हवा,
उनलोगों के गालों को स्पर्श करते हुए,
उन्हें प्यार से गुलाल जरुर लगाना,
और बताना,
कि वे जहां हैं, जैसे हैं, कैसा महसुस कर रहे हैं…
तुम्हारे आने का इंतजार रहेगा…
तुम वादा की पक्की हो…
सांझ ढलने के पहले ही,
अपना वादा निभाने आ गई…
क्या संदेशा लाया उनका,
कैसी हालत में है वो,
क्या उन्हें रंगों के इस पर्व का,
मेरा संदेशा दिया…
जब उनके गालों को छुआ होगा,
तो कैसा लगा होगा तुमको,
जल्द कहो, अपने अनुभव को
हमें भी किसी को सुनाना हैं,
तुम्हारे भाव को,
ऐ हवा,
जन-जन तक अब पहुंचाना हैं…
हवा ने कहा,
उनका कहना हैं,
भारत “सत्यमेव-श्रमेव” में बसता हैं
जब भारत का जन-जन,
रंगों का पर्व मनाता हैं…
तब उनके गालों-बालों में,
बिखरे गुलाल खुद तैर पहुंच ही जाते हैं
प्रेम, प्रेम और सिर्फ प्रेम का,
संदेश उन तक पहुंचाते हैं…
ये तरंगे, दिल तक जाकर,
ऐसी राग बिखेरी हैं…
इसी बिखरी होली राग पर
सबके पांव आज थिरकी हैं…
उन्होंने भी बहुत खुश हो
हमसे संदेश कहलवाया हैं
कहना हवा, उनसे जाकर,
हमने भी होली मनाई हैं…
खुब रंग-गुलाल उड़ाई हैं…