रांची पहुंचे पारा शिक्षकों ने दिखाई ताकत, दी हिंसक आंदोलन की धमकी
अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राजधानी रांची में मानव संसाधन मंत्री नीरा यादव का आवास घेरने आये हजारों पारा शिक्षकों को विधानसभा मैदान के पास ही झारखण्ड पुलिस ने रोक रखा हैं, ये इन पारा शिक्षकों को वहां से आगे बढ़ने नहीं दे रहे हैं, इधर पारा शिक्षकों के भारी संख्या में पहुंचने तथा आंदोलन कर रहे शिक्षकों में से विनोद बिहारी महतो, संजय दूबे समेत कई पारा शिक्षकों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, वहीं पुलिस की इस कार्रवाई से गुस्से में आये पारा शिक्षकों ने सड़क को जाम कर दिया।
पारा शिक्षकों का कहना था कि उनका आंदोलन पूर्णतः शांति से चल रहा हैं, अगर राज्य सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती तथा शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने का प्रयास करती हैं, तो सरकार समझ ले कि यह आंदोलन, हिंसक आदोलन के रुप में भी परिवर्तित हो सकता है, और इसके लिए कोई जिम्मेवार होगा तो वह राज्य सरकार होगी।
पारा शिक्षकों का कहना था कि राज्य में जितनी भी सरकारें बनी, सभी ने पारा शिक्षकों को छला, सभी का यही कहना था कि राज्य में एक पार्टी की सरकार नहीं हैं, इसलिए सारी समस्या हैं, पर अब क्या हैं? केन्द्र में भी भाजपा, राज्य में भी भाजपा और शिक्षकों की समस्याएं जस के तस, इसका मतलब कि सरकार चाहती ही नहीं, कि उनकी समस्याएं खत्म हो। शिक्षक नेताओं का कहना था कि सरकार जान लें कि जब तक उनकी मांगे मान नहीं ली जाती, उनका आंदोलन जारी रहेगा।
शिक्षक नेताओं ने कहा कि सरकार को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा चाहिए, पर कैसे? तो वह पारा शिक्षकों के पेट पर लात मारकर। शिक्षक नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार गिरह पार लें, जल्द ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होने हैं, स्वयं सबक सीखने को तैयार रहे, इस बार पारा शिक्षकों का समूह ऐसा सबक राज्य व केन्द्र सरकार को सिखायेगा कि वे वर्षों तक याद रखेंगे।
शिक्षकों का कहना था कि उन्हें समान काम के लिए समान वेतन से कम मंजूर नहीं है। उनका कहना था कि शिक्षक पात्रता परीक्षा की परीक्षा पास कर चुके अभ्यर्थियों को शिक्षक के पद पर सीधे बहाल किया जाये, शिक्षक पात्रता परीक्षा प्रमाण पत्र की अवधि का विस्तार किया जाये, क्योंकि अन्य राज्यों में इसकी अवधि सात वर्ष हैं, जबकि झारखण्ड में इसे पांच साल ही रखा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि जो स्कूलों के समायोजन की प्रक्रिया सरकार चला रही हैं, उसे अविलम्ब रोका जाये, क्योंकि न तो यह शिक्षक और न ही शिक्षा के लिए बेहतर है।